Ram Mandir Pran Pratishtha Mahotsav: 22 जनवरी 2024 सोमवार के दिन 500 वर्षों के बाद राम जन्मभूमि अयोध्या में रामलला की मूर्ति स्थापित हो गई है और अब इसकी आज प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। अभिजीत मुहूर्त में रामलला की प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा समारोह हो रहा है। राम लला का नित्य पूजन, हवन, पारायण आदि कार्य, प्रातः शर्कराधिवास, फलाधिवास, प्रासाद का 81 कलशों में स्थित विविध औषधियुक्त जल से स्नपन, प्रासाद का अधिवासन, पिण्डिका अधिवासन, पुष्पाधिवास, सायंकालिकपूजन एवं आरती होगी। आओ जानते हैं रामलला प्राण प्रतिष्ठा की 5 खास बातें।
यजमान : इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गर्भगृह में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल आनंदबाई पटेल, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत सहित कई प्रमुख पुजारी, यजमान, जजमान और साधु संत उपस्थित रहेंगे।
पूजा का विधान :-
1. 121 आचार्य करेंगे प्राण प्रतिष्ठा : जिस मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी वह लगभग 150-200 किलोग्राम की है। 18 जनवरी को, मूर्ति को मंदिर के 'गर्भ गृह' में अपने स्थान पर आसन पर स्थापित किया गया था। भगवान श्री रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा योग का शुभ मुहूर्त, पौष शुक्ल कूर्म द्वादशी, विक्रम संवत 2080, यानी सोमवार, 22 जनवरी, 2024 को आ रहा है। अनुष्ठान का संचालन 121 आचार्य करेंगे। श्री गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ जी अनुष्ठान की सभी प्रक्रिया को पूरा करेंगे और प्रमुख आचार्य काशी के श्री लक्ष्मीकांत दीक्षित होंगे।
2. अधिवास : पहले अधिवास किया जाता है। मूर्ति को एक रात के लिए जल में डुबोया जाता है, जिसे जलाधिवास कहते हैं। फिर अनाज में डुबोया जाता है जिसे धन्यधिवास कहते हैं। इसके बाद मूर्ति का जिलाभिषेक और पंचामृताभिषेक किया जाता है। इस संस्कार में 108 प्रकार की सामग्रियों से स्नान कराया जाता है। जैसे सुगंध, पुष्प, पत्तियां, रस, गन्ना आदि। इसके बाद मूर्ति को अंत में जलाभिषेक करके संपूर्ण मूर्ति को साफ मुलायम कपड़े से पोंछ लेते हैं।
3. श्रृंगार और पूजा : प्रतिमा को सुंदर वस्त्र पहना कर प्रभु की प्रतिमा को स्वच्छ जगह पर विराजित करते हैं। इसके बाद विधिवत रूप से पुष्पों से श्रृंगार, चंदन का लेप आदि करके प्रतिमा को इत्र अर्पित करके सजाते हैं। इसके बाद धूप दीप प्रज्वलित करके स्तुति करते हैं और उनके बीज मंत्रों के साथ नैवेद्य अर्पित करते हैं।
4. पट खुलना : अंत में पट खुलना में कई मंत्रों के द्वारा मूर्ति के विभिन्न हिस्सों को चेतन किया जाता है। सूर्य देवता से नेत्र, वायु देवता से कान और चंद्र देवता से मन को जागृत करने का आवहान किया जाता है। अंतिम चरण में मूर्ति की आंखों पर बंधी पट्टी को खोला जाता है, जिसे पट खुलना कहते हैं। उस वक्त मूर्ति के सामने आईना रखा होता है। मूर्ति सर्वप्रथम आईने में ही देखती हैं। इसके बाद विधिवत रूप से षोडशोपचार पूजन होता है और अंत में आरती करके पूजा का समापन करते हैं।
5. दर्शन का समय : मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा और अन्य समारोह के बाद मंदिर में दर्शन सुबह 7 बजे से दोपहर 11:30 बजे तक और दोपहर 2 बजे से शाम 7 बजे तक किया जा सकेगा। प्रतिदिन 3 आरती क्रमशः सुबह 6.30 बजे, दोपहर 12.00 बजे और शाम 7.30 बजे की जाएंगी।