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लघुकथा : विश्वास का रिश्ता

लघुकथा : विश्वास का रिश्ता - story on relation and trust
अतुल को बहुत तेज गुस्सा आ रहा था। उसे आश्चर्य हो रहा था कि प्रवीणा उसे कितना गलत समझ रही है।
 
प्रवीणा और अतुल एक ही ऑफिस में काम करते हैं। दोनों के विचार आपस में बहुत मिलते हैं इसलिए दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई। एक-दूसरे से अपने मन की बात बगैर किसी संकोच के कह देते थे। अतुल अपनी शायरी-कविता सभी उसे सुनाता था।
 
अतुल बहुत बिंदास था। वह मजाक में बहुत घनिष्ठ होकर बतियाने लगता था जिससे प्रवीणा को डर लगता था कि कहीं अतुल के मन में कहीं कोई दूसरे भाव तो नहीं हैं किंतु वह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी। उसको डर लगता था कि कहीं उसका पति उनके संबंधों को गलत न समझ ले। एक-दो बार उसने अतुल को परोक्ष रूप से बताने की कोशिश की लेकिन अतुल के मन में कुछ नहीं था इसलिए उसने ध्यान नहीं दिया।
 
'अतुल तुमसे एक बात कहनी थी', प्रवीणा ने डरते हुए कहा।
 
'बोलो प्रिया', अतुल ने उसे चिढ़ाते हुए कहा।
 
'मैं आपसे भाई का रिश्ता बनाना चाहती हूं', प्रवीणा ने झिझकते हुए कहा।
 
अतुल अवाक्-सा प्रवीणा को देख रहा था।
 
'लेकिन मेरे मन में तुम्हारे लिए बहन की कोई भावना नहीं है', अतुल ने गुस्से में कहा।
 
'देखो अतुल, मैं नहीं चाहती कि लोग हमारे रिश्ते को गलत समझें, विशेषकर हमारे परिवार वाले', प्रवीणा ने बहुत धीमे स्वर में कहा।
 
'अच्छा तो तुम मुझे इसलिए भाई बनाना चाहती हो कि लोग कुछ न कहें'। अतुल को बहुत तेज गुस्सा आ रहा था और वह मन ही मन सोच रहा था कि औरतें कितनी संकीर्ण दिमाग की होती हैं।
 
उसने प्रवीणा को समझाया, 'देखो प्रवीणा, रिश्ते डर में नहीं बनते। तुम मुझसे भाई का रिश्ता इसलिए बनाना चाहती हो कि कोई हमारे रिश्ते को गलत न समझे।'
 
'इसलिए भी कि हमारे मन में और कोई दूसरा भाव न पनपे', प्रवीणा ने बात को स्पष्ट करते हुए कहा।
 
'दूसरे भाव से मतलब प्रेम का भाव न', अतुल को हंसी आ गई।
 
'हां', प्रवीणा उसके चेहरे को देख रही थी।
 
'तुम औरतों में यही कमी होती है कि हर बात को शक की निगाह से देखती हो और उसी हिसाब से अपना आचरण करने लगती हो', अतुल ने लगभग डांटते हुए कहा।
 
'तुम्हें क्यों लगा कि मैं तुम्हें प्यार करने लगूंगा सिर्फ इसलिए कि मैं तुमसे अभिन्न होकर बातें करता हूं इसलिए', अतुल को गुस्सा आ रहा था।
 
'मैं तुम्हें समझदार लड़की मानता था किंतु हो तुम भी आखिर औरत ही न', अतुल ने खीजते हुए कहा।
 
'नहीं अतुल, मैं आपकी बहुत इज्जत करती हूं। मैं नहीं चाहती आपको कोई गलतफहमी हो इसलिए', प्रवीणा ने सफाई देते हुए कहा।
 
'इसलिए तुम मुझे भाई बनाना चाहती हो', अतुल ने कटाक्ष किया।
 
'हां', प्रवीणा ने भोलेपन से उत्तर दिया।
 
'प्रवीणा, रिश्ते जब बनते हैं, जब दोनों ओर से मन में वो भावनाएं हों चाहे प्रेम का रिश्ता हो या कोई और रिश्ता। रिश्ते बाजार में बिकने वाली ड्रेस नहीं हैं कि जब चाहो पहन लो और उतार दो। बहुत सोच-समझना चाहिए', अतुल प्रवीणा को समझा रहा था।
 
'और अगर तुम्हारे भाई बना लेने पर भी मेरे मन में तुम्हारे लिए कोई दूसरा भाव रहा तो ये रिश्ते के नाम पर कितनी बड़ी गाली होगी', अतुल बेबाक तरीके से प्रवीणा को समझा रहा था।
 
प्रवीणा को लगा कि अतुल सच कह रहा है। रिश्ते की बुनियाद विश्वास है न कि रिश्तों के नाम कई उदाहरण हैं कि बहन-भाई का धर्म का रिश्ता बना बाद में शादी कर ली या रिश्ते की आड़ में गलत काम कर लिया गया। इससे रिश्तों की बदनामी के सिवा कुछ नहीं है। 
 
'मुझे माफ कर दो अतुल, मैंने तुमको गलत समझा।'
 
'आज से हमारे बीच सिर्फ एक ही रिश्ता है दोस्ती और विश्वास का', प्रवीणा को अपनी गलती का अहसास हो गया था।
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