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रक्षाबंधन पर मार्मिक कविता : मेरी एक बहन होती

रक्षाबंधन पर मार्मिक कविता : मेरी एक बहन होती - poem on rakhi
Rakhi Poem 2022
 
काश! मेरी भी एक बहन होती,
रोती-हंसती और गुनगुनाती।
रूठती-ऐंठती और खिलखिलाती,
मुझसे अपनी हर जिद मनवाती।
राखी बांध मुझे वो खुश होती,
काश! मेरी भी एक बहन होती।
 
घोड़ा बनता पीठ पर बैठाता,
उसको बाग-बगीचा घुमाता।
लोरी गा-गाकर उसे सुलाता,
मेरी बाहों के झूले में वो सोती,
काश! मेरी भी एक बहन होती।
 
सपनों के आकाश में उड़ती,
सीधे दिल से वो आ जुड़ती।
रिश्तों को परिभाषित करती,
होती वो हम सबका मोती,
काश! मेरी भी एक बहन होती।
 
कभी दोस्त बन मन को भाती,
कभी मातृवत वो बन जाती।
कभी पुत्री बन खुशियां लाती,
जीवन की वो ज्योति होती,
काश! मेरी भी एक बहन होती।
 
रक्षाबंधन के दिन आती,
मेरे माथे पर टीका लगाती।
स्नेह सूत्र कलाई पर सजाती,
आयु-समृद्धि का वो वर देती,
काश! मेरी भी एक बहन होती।