गुरुवार, 28 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. आलेख
  4. Learn from Sachin

सचिन से सीखें सच्चे संस्कार

सचिन से सीखें सच्चे संस्कार - Learn from Sachin
-प्रज्ञा पाठक

इस प्रगतिशील, किन्तु यांत्रिक युग में अख़बारों के पृष्ठों पर किसी सकारात्मक समाचार के मिलने पर रूहानी ख़ुशी होती है। ऐसा ही एक समाचार 2 अप्रैल के समाचार-पत्र में प्राप्त हुआ--ख्यात क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर ने राज्यसभा से सेवानिवृत्त होने पर अब तक प्राप्त वेतन-भत्ते 'प्रधानमंत्री राहत कोष' में दान कर दिए।

दो पंक्तियों की इस छोटी-सी ख़बर ने मुझे बड़ा सुख पहुँचाया। ये सच्चे अर्थों में महान हो जाना है। स्वहित-चिंतन कदापि गलत नहीं है, किन्तु उसके समानांतर परहित-चिंतन भी चलता रहे, तो सम्बन्धित मनुष्य के मानवीय होने का पता चलता है| कुछ समय पूर्व हुए एक सर्वे के मुताबिक यदि दुनिया के सभी अमीर मिलकर अपनी कुछ सम्पत्ति का दान करें, तो निर्धनता का समूल नाश किया जा सकता है। लेकिन हम सभी जानते हैं कि ये व्यवहार में कभी संभव नहीं होगा क्योंकि सभी के ह्रदय इतने विशाल नहीं होते। सभी को लगता है कि वे अधिकाधिक संपन्न बनें और अपनी आगामी पीढ़ियों की व्यवस्था भी कर दें। सभी की दौड़ 'स्व' से 'स्व' तक की ही है। मानों शेष समाज से उनका कोई नाता ही नहीं है।

अपने बचपन के दिनों की कुछ स्मृतियाँ जेहन में ताज़ा हो उठती हैं, जब घर में सम्पन्नता ना होने के बावजूद नानी और माँ को प्रतिदिन आने वाली सफाईकर्मी से लेकर राह पर बैठे भिक्षुकों तक की चिंता रहती थी। मन में ये भाव रहता था कि अपने दर से कोई क्षुधित ना जाये। वस्त्रों के साथ खिलौने भी तय कर दिए जाते थे। हमें सिखाया जाता था कि जो भी वस्तु तुम्हारे लिए घर आती है, उसमे से एक हिस्सा इन लोगों का है और ये भी कि ये घृणा के पात्र नहीं, संवेदना के अधिकारी हैं।

पर्वों पर भी इनका समान रूप से ख्याल रखा जाता था। अपने सीमित साधनों में असीमित दिल रखा जाता था। ऐसे मानवीयता से लबरेज माहौल में पले मन को आज का परिदृश्य देखकर बड़ा कष्ट होता है। गुज़ारिश इतनी ही कि अपने अपार सागर से कुछ बूँदें ही शेष समाज पर प्रवाहित करके तो देखिये, प्रतिदान में वो आप पर दुआओं का ऐसा सागर वार देगा, जिसमें आपकी पीढ़ियां तर जाएँगी। 'निज' तो बहुत हो गया और उसने सुखी भी किया। अब तनिक 'पर' भी करके देखें तो सही। स्वानुभूत सत्य बांटा है आज आपसे। चाहें तो आप भी जीकर देखें।

अंत में ,बात जहाँ से शुरू की थी, वहीं समाप्त करती हूँ। सचिन जी का दिल से आभार, जो उन्होंने अपने 'बड़े' होने को सार्थक किया। नमन उनके संस्कारों व सोच को....