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स्वास्थ्य के प्रति कितने जिम्मेदार हैं हम?

स्वास्थ्य के प्रति कितने जिम्मेदार हैं हम? - health story by swami vivekanand
मानव जीवन की सबसे बड़ी और अनदेखी पूंजी यदि कोई है, तो वह है हमारा स्वास्थ्य। 'अनदेखी' इसलिए कहा, क्योंकि हम जब तक हम बिस्तर न पकड़ लें या किसी रोग से गंभीर रूप से ग्रसित न हो जाएं, तब तक कम से कम अपने स्वास्थ्य की चिंता तो नहीं ही करते हैं। हां, केवल अपने बच्चों की स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति हम जरूर अधिक जिम्मेदार होते हैं।
 
स्वास्थ्य के संबंध में स्वामी विवेकानंद ने कहा है- 'तुम गीता का अध्ययन करने के बजाए फुटबॉल के जरिए स्वर्ग के अधिक निकट रहोगे'। आशय यह कि 'अपने लक्ष्य (गोल) के पीछे दोड़ो, मगर अपने स्वास्थ्य को पीछे मत छोड़ो।' कितना सही कहा है स्वामीजी ने!
 
इस संदर्भ में मुझे एक दृष्टांत याद आता है कि एक व्यक्ति के मन में 'नगरसेठ' कहलाने का भाव आया और उसने अपने इस विचार को अपना लक्ष्य बना लिया। दिन-रात अथक परिश्रम किया और वह नगरसेठ बन भी गया। उसकी वाहवाही होने लगी और वह आदरणीय हो गया। लेकिन इस अथक मेहनत के दौरान उसने अपने परिवार और स्वास्थ्य का बिलकुल भी ध्यान नहीं रखा।
 
फिर हुआ यह कि असमय ही उसका शरीर शिथिल पड़ गया और कई लाइलाज बीमारियों का शिकार होकर वह अंतत: चल बसा। उसकी सारी दौलत भी उसके काम न आ सकी। यदि वह अपने लक्ष्य को सेहत का ध्यान रखते हुए पाता तो क्या वह असमय काल का शिकार होता?
 
बस अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत होने के लिए स्वामी विवेकानंद का वाक्य और यह दृष्टांत ही पर्याप्त है- 'समय रहते संभल जाएं। जीवन के सारे उद्देश्य पूर्ण करें किंतु अपने स्वास्थ्य की अनदेखी न करें, क्योंकि हमारे अस्वस्थ होने के लिए कोई और नहीं, हम ही जिम्मेदार होते हैं।' समझना तो होगा ही इसे।
 
वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति की जिंदगी भागमभाग और अथक मानसिक तथा शारीरिक श्रम से जूझ रही है। घर के बड़ों को यदि बेहतर परिवार संचालन के लिए अपने स्वास्थ्य को दांव पर लगाना पड़ रहा है, तो बच्चों को भी अपने करियर की सुदृढ़ता का मानसिक दबाव रहता है, जो कहीं-न-कहीं स्वास्थ्य को तो प्रभावित करता ही है। कई बार छोटी-मोटी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को हम अनदेखा कर देते हैं, जो कालांतर में हमारे लिए बड़ी मुसीबत का कारण बनती है। इनसे समय रहते बचना चाहिए।
 
अच्छे स्वास्थ्य के जो जरूरी नियम बताए गए हैं, आज किसी भी कारण से हम उनका पालन नहीं कर पाते हैं। जिस अनुपात में खानपान होना चाहिए, वह भी अब नहीं हो पाता है। हमारी दिनचर्या ने इसे पूरी तरह से अव्यवस्थित कर दिया है।
 
बिगड़ते स्वास्थ्य के अनेक कारण होते हैं। यहां मैं उनकी चर्चा नहीं करूंगा, क्योंकि आज ये सब जानकारियां हमारी उंगलियों पर मोबाइल/ कम्प्यूटर ने उपलब्ध करा दी हैं, बावजूद इसके हम पढ़कर वजानकर भी उनका पालन नहीं करते हैं जबकि ये अत्यंत जरूरी हैं।
 
कुल मिलाकर कह सकता हूं कि- हमारे स्वास्थ्य का ध्यान हमको समय पर ही रखना चाहिए। इसके लिए कोई और नहीं, हम ही शत-प्रतिशत जिम्मेदार हैं।