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नवीन पटनायक या नरेंद्र मोदी? ओडिशा में कौन लहराएगा जीत का झंडा?

नवीन पटनायक या नरेंद्र मोदी? ओडिशा में कौन लहराएगा जीत का झंडा? - Naveen Patnaik
- नितिन श्रीवास्तव
2018 में हॉकी विश्व कप भारत के ओडिशा में चल रहा था और उसी दौरान मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने दर्शकों को एक 'जुमला' दिया।
 
आपण माने खुशी तौ? (आप लोग ख़ुश हैं?)
 
जब भीड़ ने कहा, हां, हां।
 
नवीन ने जवाब दिया, मू बी बहुत खुश। (मैं भी बहुत ख़ुश हूं)
 
ये एक नए नवीन पटनायक थे जो लोगों का मन टटोलना चाह रहे थे और ख़ुद को उनसे जोड़ना भी।
 
इसके कुछ महीनों पहले एक दिन भुवनेश्वर की एक सड़क पर फल के एक ठेले के पास एक बड़ी गाड़ी रुकी। तरबूज़-पपीते बेचने वाला वो व्यक्ति भौंचक्का रह गया जब गाड़ी का शीशा उतरा और अंदर बैठे नवीन पटनायक ने उससे 10 मिनट तक बातचीत की।
 
इस वाक़ए के कुछ महीनों पहले भुवनेश्वर के एक मशहूर बुक स्टोर में नवीन और उनकी पत्रकार-लेखिका बहन गीता मेहता पहुंची थीं, किताबें ख़रीदने। बुक स्टोर में कुछ नौजवान भी मौजूद थे जिन्होंने हिचकिचाते हुए फ़ोन निकाले और मुख्यमंत्री के साथ सेल्फ़ी लेने की दबी हुई पेशकश की।
 
नवीन पटनायक ने एक-एक कर सबके साथ सेल्फ़ी खिंचाई, मुस्कुराते हुए।
 
ये वही नवीन पटनायक हैं जिन्हें 51 साल की आयु में ओडिशा की सियासत विरासत में मिली है। उनके भाई और पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के बड़े बेटे राजनीति से दूर व्यापार में रहते हैं और बहन गीता मेहता साहित्य के बीच।
 
ओडिशा के किसी भी इलाक़े में चले जाइए, नवीन के बारे में राय सभी के पास है। भुवनेश्वर से कुछ मील दूर मुलाक़ात मानस नामक व्यक्ति से हुई जो पेशे से ड्राइवर हैं।
 
उन्होंने बताया, जब हम बड़े हो रहे थे तो कांग्रेस का ज़ोर था, लेकिन उनके लंबे शासन में न तो ठीक से विकास हुआ, न लोगों पर ध्यान दिया गया। उसके बाद फिर नवीन पटनायक आए। लोगों ने बीजेडी को वोट दिया और नवीन मुख्यमंत्री बन गए। फिर भुवनेश्वर समेत कई शहर और गांवों में विकास हुआ और सड़कें बनीं।
 
मैंने मानस से पूछा, क्या इस बार भी नवीन का वही जलवा बरक़रार रहेगा?

उनका जवाब था, इस बार मेहनत करनी पड़ रही है, क्योंकि ओडिशा में मोदी की थोड़ी डिमांड बढ़ रही है और बीजेडी डर जाती है कि हमारा वोट कम होगा।
 
बदल गए नवीन पटनायक
सच्चाई यही है कि अपनी सत्ता के 19 वर्षों के दौरान कम से कम 17 वर्षों तक नवीन पटनायाक ने एक दूसरी छवि के साथ शासन किया था। न तो वे जनता से ज़्यादा मिलना-जुलना पसंद करते थे, ना जनता के बीच जाकर प्रचार करना और न ही ज़्यादा बात करना।
 
भुवनेश्वर में उन्हें लंबे समय से देखते आ रहे जानकारों के मुताबिक़, शाम सात बजे के बाद नवीन काम समेटकर घर के भीतर होते थे और उनका सामाजिक जीवन उस समय से अगली सुबह तक ख़त्म सा हो जाता था।
 
फ़िलहाल मंज़र दूसरा है। उनका घर, नवीन निवास, अब बीजू जनता दल के टॉप नेताओं से घिरा रहता है और बीजेडी का पार्टी ऑफ़िस वीरान सा लगता है क्योंकि सारा एक्शन मुख्यमंत्री निवास पर है।
 
पिछले एक वर्ष से नवीन ने लोगों से मिलने-जुलने का सिलसिला बढ़ा दिया है और उनके क़रीबी लोगों ने उनकी छवि पर काम करना भी।
 
चार बार विधानसभा चुनाव और इसके दौरान लोकसभा चुनाव में डंके बजाने वाले नवीन को इस सबकी ज़रूरत क्यों पड़ी?
 
ज़ाहिर है, भारतीय जनता पार्टी ने नवीन पटनायक के साथ हुए अलगाव के बाद उनके ख़िलाफ़ मोर्चा खोला है और ओडिशा में पैठ बनाने की कोशिश की है।
 
वरिष्ठ पत्रकार संदीप साहू के मुताबिक़, बात गंभीर तब हुई जब 2017 के पंचायत चुनावों में भाजपा को ख़ासी सफलता मिली। उसके बाद से नवीन पटनायक बदले-बदले से नज़र आए हैं।
 
पंचायत चुनाव में झटका और मौजूदा परिवेश में भाजपा से मिलने वाली चुनौती के कारण भी ज़रूर होंगे।
 
भुवनेश्वर में रहने वाली और प्रिंट-डिजिटल मीडिया में लंबे समय से काम कर रहीं कस्तूरी रे को लगता है कि सबसे बड़ी चुनौती है सत्ता विरोधी लहर की और ख़ुद मुख्यमंत्री ने हाल में इसके बारे में बात की है। वे सैकड़ों पब्लिक मीटिंग्स कर रहे हैं और हज़ारों किलोमीटर सड़क पर कैंपेन कर रहे हैं। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ।
 
जानकार बताते हैं कि नवीन पटनायक के क़रीबी सलाहकारों ने पिछले दो वर्षों में इस बात को बख़ूबी भांप लिया था कि भाजपा यहां कितना दमख़म लगाने वाली है।
 
शायद यही वजह है कि नवीन सरकार ने पिछले दो वर्षों में ऐसी 'कल्याणकारी स्कीमें' चालू कीं, जिनसे तमिलनाड की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की यादें ताज़ा हो गईं।
 
अम्मा कैंटीन' की ही तरह ओडिशा में सरकारी 'आहार केंद्र' चल रहे हैं जहां मात्र पांच रुपए में एक व्यक्ति को चावल-दालमा का भोजन परोसा जाता है। राज्य में महिलाओं के लिए सेल्फ़-हेल्प ग्रुप्स बने हैं और सरकार की ओर से सैनिटरी नैपकिंस की सुविधा दी गई है।
 
बीजू जनता दल ने टिकट वितरण के समय भी 33% टिकट महिलाओं को देकर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को चौंका दिया था। ख़ुद नवीन पटनायक एक लक्ज़री बस में प्रचार के लिए निकल पड़े हैं।
 
ग्रामीण इलाक़ों में बीजेडी के वोटर इस बात से प्रफुल्लित ज़रूर दिख रहे हैं कि पहले सिर्फ़ हेलीकॉप्टर से आकर जल्द प्रचार कर भुवनेश्वर लौट जाने वाले नवीन बाबू अब बस के ऊपर खड़े होकर हाथ हिलाते हैं, लोगों का हाल पूछ लेते हैं।
 
कस्तूरी रे को लगता है कि मुख्यमंत्री को आभास है कि इस चुनाव में मुश्किल हो सकती है।
 
मूल वजहों पर बात करते हुए उन्होंने बताया, एक समय था जब बीजेडी में किसी का नाम भ्रष्टाचार से जुड़ने पर उसे पार्टी से निष्कासित कर दिया जाता था। पिछले पांच वर्षों में ये बदला है। चिटफ़ंड स्कैम, माइनिंग स्कैम के कई मामलों में उनके मौजूदा सांसद और विधायकों के नाम आए हैं, लेकिन उनमें से कुछ को टिकट मिल गया है।
 
विपक्षी भी नवीन सरकार के ऊपर आंकड़ों का वार करते हैं।
 
मिसाल के तौर पर महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अत्याचारों में इज़ाफ़ा के आरोप तब बढ़े जब एनसीआरबी के 2016 के डाटा के मुताबिक़ 'डिसरोबिंग ऑफ़ विमन' के मामले में ओडिशा टॉप पर था।
 
हालांकि बीजू जनता दल के शीर्ष नेतृत्व ने हमेशा इन आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए प्रदेश में पिछले बीस वर्षों के दौरान हुए विकास की ही बात दोहराई है।
 
पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा के अनुसार, बीजू बाबू का सपना था ओडिशा को आगे ले जाने का, नवीन बाबू ने उसे आगे बढ़ाया है।
 
नवीन पटनायक बनाम नरेंद्र मोदी
उन्होंने कहा, बीजेडी ने 19 सालों में जो विकास किया है, उसके बिनाह पर हम लोगों के पास जा रहे हैं। जैसे युवाओं के क्षेत्र में हो, महिलाओं के क्षेत्र में हो या फिर कृषकों के क्षेत्र में हो। सभी के लिए पार्टी ने स्कीमें बनाई हैं और उन्हें लागू किया है जिससे प्रदेश के लोगों को लगातार मदद मिलती रही है।
 
लोगों को कितनी मदद मिली है और वोटर किस आधार पर वोट देंगे इस पर तो सिर्फ़ क़यास ही लग सकते हैं। हक़ीक़त यही है कि इन चुनावों में नवीन पटनायक को अपने राजनीतिक करियर का शायद सबसे कठिन चुनाव प्रचार करना पड़ रहा है।
 
मुद्दे की बात यही है कि कलिंग की धरती पर एक बड़ा मुक़ाबला फिर होने को है जिसमें महारथी दो ही हैं। नरेंद्र मोदी और नवीन पटनायक।