हिन्दुओं के सबसे बड़े तीर्थ स्थल अमरनाथ के बारे में बहुत कम ही लोग कुछ खास बातें जानते होंगे। यहां अमरनाथ से जुड़ी प्राचीन, पौराणिक और रहस्यमयी जानकारी जरूर जानिए।
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हिन्दू तीर्थ अमरनाथ की गुफा कश्मीर के श्रीनगर से करीब 145 किलोमीटर की दूरी पर हिमालय पर्वत श्रेणियों में स्थित है।
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अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिए 2 रास्ते हैं- एक पहलगाम होकर जाता है और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से जाता है।
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यहां की यात्रा हिन्दू माह अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा से प्रारंभ होती है और श्रावण पूर्णिमा तक चलती है। यात्रा के अंतिम दिन छड़ी मुबारक रस्म होती है।
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अमरनाथ गुफा के शिवलिंग को 'अमरेश्वर' कहते हैं। पौराणिक मान्यता अनुसार इस गुफा को सबसे पहले भृगु ऋषि ने खोजा था। तब से ही यह स्थान शिव आराधना और यात्रा का केंद्र है।
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इस गुफा में भगवान शंकर ने कई वर्षों तक तपस्या की थी और यहीं पर उन्होंने माता पार्वती को अमर कथा सुनाई थी, अर्थात अमर होने के प्रवचन दिए थे।
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गुफा की परिधि लगभग 150 फुट है और इसमें ऊपर से सेंटर में बर्फ के पानी की बूंदें टपकती रहती हैं। टपकने वाली हिम बूंदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। हालांकि बूंदें तो और भी गुफाओं में टपकती है लेकिन वहां यह चमत्कार नहीं होता।
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बर्फ की बूंदों से बनने वाला यह हिमलिंग चंद्र कलाओं के साथ थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक बढ़ता रहता है और चन्द्रमा के घटने के साथ ही घटना शुरू होकर अंत में लुप्त हो जाता है।
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अमरनाथ की यात्रा करने के प्रमाण महाभारत और बौद्ध काल में भी मिलते हैं। ईसा पूर्व लिखी गई कल्हण की 'राजतरंगिनी तरंग द्वितीय' में इसका उल्लेख मिलता है। अंग्रेज लेखक लारेंस अपनी पुस्तक 'वैली ऑफ कश्मीर' में लिखते हैं कि पहले मट्टन के कश्मीरी ब्राह्मण अमरनाथ के तीर्थयात्रियों की यात्रा करवाते थे। बाद में बटकुट में मलिकों ने यह जिम्मेदारी संभाल ली।
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विदेशी आक्रमण के कारण 14वीं शताब्दी के मध्य से लगभग 300 वर्ष की अवधि के लिए अमरनाथ यात्रा बाधित रही। कश्मीर के शासकों में से एक 'जैनुलबुद्दीन' (1420-70 ईस्वी) ने अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी।
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मान्यता अनुसार भगवान शिव ने माता पार्वती को जब अमरत्व का रहस्य सुना रहे थे तब इस रहस्य को शुक (कठफोड़वा या तोता) और दो कबूतरों ने भी सुन लिया था। यह तीनों ही अमर हो गए। कुछ लोग आज भी इन दोनों कबूतरों को देखे जाने का दावा करते हैं।
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शिव जब पार्वती को अमरकथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनवाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा।
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पुराण के अनुसार काशी में दर्शन से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य से हजार गुना पुण्य देने वाले श्री बाबा अमरनाथ के दर्शन हैं। जय अमरनाथ।
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यह भी जनश्रुति है कि मुगल काल में जब कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम किया जा रहा था तो पंडितों ने अमनाथ के यहां प्रार्थना की थी। उस दौरान वहां से आकाशवाणी हुई थी कि आप सभी लोग सिख गुरु से मदद मांगने के लिए जाएं। संभवत: वे हरगोविंद सिंहजी महाराज थे। उनसे पहले अर्जुन देवजी थे।