75th Republic Day : अरुण की लालिमा फैलने लगी, दसों दिशाओं में भारत की गूंज उठने लगी, वैश्विक रूप से मज़बूत होता भारत अमृत काल की अमृत बेला का नेतृत्व करने लगा, विश्व में भारत भारती का जयघोष होने लगा, क्या अमेरिका, क्या ब्रिटेन, सभी राष्ट्राध्यक्ष अब केवल भारत की नीतियों से चमत्कृत हो रहे हैं। जब पश्चिम अपनी सांध्य बेला में भारत की बांसुरी को सुनकर आनंदित हो रहा है, नीतियों में शिक्षा, जनसंख्या नियंत्रण, स्वरोजगार प्रथम हो रहा है, मेक इन इंडिया और 'स्टार्टअप भारत' वाला प्रभाव अब विश्व को भारत की ओर आकर्षित कर रहा है, साथ-साथ भयाक्रांत भी कर रहा है कि अब भारत एक्सपोर्टर भारत है, जहां इम्पोर्ट कम और एक्सपोर्ट अधिक है।
आर्थिक स्वाधीनता और आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ते कदम देश की आधारभूत लोकतंत्रीय व्यवस्था का ही परिणाम है और इसी कारण अंतरराष्ट्रीय संबंधों में आई मधुरता और वैश्विक रूप से स्वीकार्यता में वृद्धि भारत की गणतंत्रीय सबलता के सर्वव्याप्त यश का ही प्रतिफल है।
भारत की गणतंत्रीय गरिमा भी अपने पचहत्तरवें वर्ष में प्रवेश कर रही है। सन् 1949 को तैयार हुआ व 1950 को लागू हुआ भारत का संविधान 75वें वर्ष में जागृत और निष्कलंक रहा, सब जगह उंगलियां उठीं पर भारत के संविधान से भारतवंशियों की आस्था कम नहीं हुई। भारत के संविधान के निर्माताओं ने प्रथम पृष्ठ पर राम दरबार इसीलिए चुना भी है कि भारत का राजकाज भी राम राज्य जैसा ही न्यायप्रिय, संवेदनशील, सजग और सहानुभूति कारक हो।
प्रधानमंत्री मोदी के अमृतकाल के पंच प्रण के साथ आगे बढ़ता भारत इस वर्ष तो लगभग 500 वर्षीय विवाद का हल भी दे गया, जिसमें लोग अयोध्या में स्थित आराध्य राम की जन्मभूमि पर राम लला के मंदिर निर्माण का साक्षी बनकर गणतंत्र भी राघवमय हो रहा है।
भारत के संविधान पर आस्था इसलिए भी होनी चाहिए क्योंकि जिस संविधान ने यह स्पष्ट किया कि भारत राज्यों का एक संघ है। यह संसदीय प्रणाली की सरकार वाला एक स्वतंत्र प्रभुसत्ता संपन्न समाजवादी लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यह गणराज्य भारत के संविधान के अनुसार शासित है,जिसे संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को ग्रहण किया गया तथा जो 26 जनवरी 1950 को प्रवृत्त हुआ।
भारतीय संविधान की उद्देशिका यह कहती है कि 'हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई॰ (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।'
ऐसे महनीय उद्देश्यों और मनोभावों वाली संरचना से ही भारत की अखंडता अक्षुण्ण है। भारत की आधारभूत मजबूती और संघीय संरचना का केंद्र भारतीय संविधान है। इसी ने गण और तंत्र के बीच मध्यस्थ की भूमिका में पुल बनाकर राष्ट्र को सबल किया है। विगत एक दशक में भारत के संविधान में आश्चर्यजनक परिवर्तन नजर आए, जैसे कश्मीर से धारा 370 का हट जाना और फिर कश्मीर समस्या का हल ही हो जाना, तीन तलाक जैसी विषैली और मुस्लिम स्त्री विरोधी व्यवस्था का ध्वस्त हो जाना, कई सौ बेकार के कानूनों का संविधान से लोपित हो जाना, एक देश–एक विधान–एक निशान जैसी व्यवस्था का निर्माण हो जाना, संविधान प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करके हर व्यक्ति को उसका मौलिक अधिकार रोटी, कपड़ा और मकान मिलना भी राजनीति की उत्कृष्ट मंशा का सुफल है।
इसी के साथ 1884 से न्यायालयों में विचाराधीन रखे जन्मभूमि विवाद को हल करके 22 जनवरी 2024 को मंदिर में राष्ट्रदेव राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करके यह संदेश दे दिया कि भारत विवाद नहीं बल्कि विस्तार चाहता है। आंतरिक या कहें घरेलू विवादों को सिरे से हल करने की राजनैतिक मंशा का हमेशा स्वागत होना चाहिए, वह हो भी रहा है।
संविधान लागू होने के साथ ही बीते 74 वर्ष में भारत ने राजधर्म और प्रजाधर्म का पालन संविधान प्रदत्त शक्तियों की सहायता से ही किया है और इसी राजधर्म के केंद्र में राम राज्य की संकल्पना भी हमेशा रही है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के राज्य की सत्यनिष्ठ, धर्मप्रधान और न्यायपूर्ण राजनीति भारत के बौद्धिक विकास की आधारशिला रही है। इसी आधारभूत संरचना के सहारे आज भारत में रामलला की जन्मभूमि पर उनका मंदिर निर्मित हो पाया है। संवैधानिक शक्तियों और न्यायपालिका के निर्णय ने ही यह बताया कि राघव की जन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण होगा।
राम जन्मभूमि प्राण प्रतिष्ठा के दिन प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा था कि 'ये भारत के विकास का अमृतकाल है। आज भारत युवा शक्ति की पूंजी से भरा हुआ है, ऊर्जा से भरा हुआ है। ऐसी सकारात्मक परिस्थितियां, फिर न जाने कितने समय बाद बनेंगी। हमें अब चूकना नहीं है, हमें अब बैठना नहीं है। मैं अपने देश के युवाओं से कहूंगा, आपके सामने हजारों वर्षों की परंपरा की प्रेरणा है। आप भारत की उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं...जो चांद पर तिरंगा लहरा रही है, जो 15 लाख किलोमीटर की यात्रा करके, सूर्य के पास जाकर मिशन आदित्य को सफल बना रही है, जो आसमान में तेजस... सागर में विक्रांत...का परचम लहरा रही है। अपनी विरासत पर गर्व करते हुए आपको भारत का नव प्रभात लिखना है। परंपरा की पवित्रता और आधुनिकता की अनंतता, दोनों ही पथ पर चलते हुए भारत, समृद्धि के लक्ष्य तक पहुंचेगा।'
राघवमय गणतंत्र के मूल में राम की शिक्षाएं, नीति, व्यवस्थाएं और विकसित भारत की तैयारी है। राघव के आने से राघवमय भारत हुआ है, भारतीय गणतंत्र हुआ है और नि:संदेह गणतंत्र की स्थापना के 75वें वर्ष में प्रवेश पूर्णरूपेण राघवमय है। अयोध्या में हुए मंदिर निर्माण के सहारे जनता में न्यायपालिका के प्रति विश्वास बढ़ा भी है और यह संदेश भी गया कि राघव के मंदिर के निर्माण पर हो रहे सैंकड़ो वर्षों के विवाद का हल भी भारत के संविधान में प्रदत्त शक्तियों के द्वारा ही हुआ है। इसीलिए 2024 का गणतंत्र राघवमय है।
[लेखक डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं]
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)