मंगलवार, 16 सितम्बर 2025
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Written By WD Feature Desk

Sanja festival 2025: संजा लोकपर्व क्या है, जानिए पौराणिक महत्व और खासियत

Sanjha festival 2025
Sanjha Lokparv 2025: संजा, जिसे 'संजा बाई' भी कहा जाता है, मालवा या मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक लोकपर्व है। यह पर्व प्रकृति, लोक कला और संस्कृति का अनूठा संगम है, जो मुख्य रूप से लड़कियों की रचनात्मकता और सामाजिक जुड़ाव को दर्शाता है।ALSO READ: Shradh Paksha 2025: श्राद्ध कर्म नहीं करने पर क्या होता है?

यह पर्व कुंवारी लड़कियों द्वारा भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन अमावस्या तक 16 दिनों तक मनाया जाता है। ये 16 दिन पितृ पक्ष के साथ आते हैं। इस दौरान, यु‍वतियां प्रतिदिन शाम के समय गोबर और फूलों से घर की दीवारों पर संजा के सुंदर भित्तिचित्र बनाती हैं और लोकगीत गाती हैं। 
 
पौराणिक महत्व : संजा लोकपर्व का सीधा संबंध माता पार्वती से माना जाता है। किंवदंती के अनुसार, संजा एक ऐसी किशोरी थी जो भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाना चाहती थी। भगवान शिव ने उसके तप और श्रद्धा को देखकर उसे यह वरदान दिया कि जो लड़कियां 16 दिनों तक संजा की आराधना करेंगी, उन्हें मनचाहा और योग्य वर मिलेगा। इसी मान्यता के कारण यह पर्व कुंवारी लड़कियों के लिए विशेष महत्व रखता है।
 
इसके अलावा, यह पर्व पितृ पक्ष के दौरान मनाया जाता है, इसलिए इसे पितरों की शांति और समृद्धि से भी जोड़ा जाता है। माना जाता है कि इन दिनों में पितर धरती पर आते हैं और संजा के माध्यम से उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।ALSO READ: Shradh Paksha 2025: पितृ पक्ष की प्रमुख श्राद्ध तिथियां, कुतुप काल और शुभ मुहूर्त की लिस्ट
 
संजा लोकपर्व की खासियतें:
 
1. चित्रकला और कला: इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत गोबर और विभिन्न रंगों के फूलों से बनाई जाने वाली कलाकृति है। पहले दिन, संजा की आकृति बनाई जाती है और अगले 15 दिनों तक उसमें सूर्य, चंद्रमा, तारे, किले और अन्य लोक चित्र उकेरे जाते हैं। अंतिम दिन, 'किलेकोट' बनाया जाता है, जिसमें किले और द्वारपालों की आकृतियां होती हैं।
 
2. लोकगीत: हर शाम, लड़कियां संजा के सामने इकट्ठी होकर पारंपरिक लोकगीत गाती हैं। ये गीत 16 दिनों के चित्रों और संजा के जीवन से संबंधित होते हैं, जैसे 'संजा कोनी केत है', 'एकली खड़ी रहे म्हारी संजा', 'सूरज म्हारा केवड़ो' आदि।
 
3. सामाजिक जुड़ाव: यह पर्व एक समुदाय के रूप में मनाया जाता है। लड़कियां समूह में मिलकर कलाकृतियां बनाती हैं, गीत गाती हैं और एक-दूसरे के घरों में जाती हैं, जिससे उनके बीच सामाजिक मेलजोल और दोस्ती बढ़ती है।
 
4. प्रकृति से जुड़ाव: इस पर्व में प्राकृतिक चीजों जैसे गोबर, मिट्टी और मौसमी फूलों का उपयोग किया जाता है, जो इसे प्रकृति के करीब लाता है।
 
5. संजा का समापन कब होता है: 16वें दिन, जिसे 'पिपलिया पूनो' भी कहा जाता है, संजा का विसर्जन किया जाता है। लड़कियां संजा को तालाब या नदी में विसर्जित करती हैं और अंतिम गीत गाते हुए उनसे अगले साल फिर से आने का अनुरोध करती हैं। इसके बाद प्रसाद के रूप में पूरी और पकवान का वितरण होता है।
 
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