आरोग्य और संतान का शुभ वरदान देते हैं सूर्य, पढ़ें छठ पर्व का शुभ मुहूर्त
भगवान सूर्य देव की बहन षष्ठीमईया का निर्जल व्रत पूजन 23 अक्टूबर 17 से प्रारम्भ
इतिहास, भारतवर्ष के ऐतिहासिक सूर्य मंदिर एवं पूजा का शुभ मुहूर्त
छठ पूजा भारत में भगवान सूर्य की उपासना का सबसे प्रसिद्ध हिंदू त्योहार है। इस त्योहार को षष्ठी तिथि पर मनाया जाता है, इसीलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत या छठ कहा गया है। यह त्योहार एक साल में दो बार मनाया जाता है- पहली बार चैत्र महीने में और दूसरी बार कार्तिक महीने में। हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ त्योहार को चैती छठ कहा जाता है जबकि कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए जाने वाले इस त्योहार को कार्तिकी छठ कहा जाता है।
चार दिनों तक चलने वाला ये छठ पर्व 23 अक्टूबर से नहाय खाय के साथ शुरू होगा। फिर खरना, सांझ के अर्घ्य और सूर्य को सुबह के अर्घ्य के साथ यह त्योहार संपन्न होगा।
छठ पूजा के दिन कब होगा सूर्यादय - प्रात: 06:41
छठ पूजा के दिन कब होगा सूर्यास्त- सायं 18:05
छठ पूजा का मुहूर्त
षष्ठी तिथि प्रारंभ- 25 अक्टूबर को सुबह 09:37, 2017
षष्ठी तिथि समाप्ति- 26 अक्टूबर 2017 को शाम 12:15 बजे पर
छठ पूजा 2017: महोत्सव का इतिहास और महत्व:-
छठ केवल एक पर्व ही नहीं है बल्कि महापर्व है जो चार दिन तक चलता है। नहाय-खाय से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है।
1- पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ।
प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई जो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा।
राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है।
2-इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुद्गल ऋषि को आमंत्रित किया। मुद्गल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुद्गल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
3-एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
4- छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।
5-एक मान्यता के अनुसार लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी यानी छठ के दिन भगवान राम और माता सीता ने व्रत किया था और सूर्यदेव की आराधना की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
परंपरा के अनुसार छठ पर्व के व्रत को स्त्री और पुरुष समान रूप से रख सकते हैं। छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली पौराणिक और लोककथाओं के अनुसार यह पर्व सर्वाधिक शुद्धता और पवित्रता का पर्व है.