Shardiya Navratri mahotsav: 15 अक्टूबर 2023 से शारदीय नवरात्रि का महोत्सव प्रारंभ है। वर्ष में चार नवरात्रियां होती हैं। पहली चैत्र नवरात्रि जिसे वसंत नवरात्र भी कहते हैं दूसरी आषाढ़ माह की नवरात्रि जिसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं। तीसरी आश्विन माह की नवरात्रि जिसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं और चौथी पौष माह की नवरात्रि जिसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं। आओ जानते हैं शारदीय नवरात्रि उत्सव की 5 खास बातें।
1. शरद ऋतु : शारदीय नवरात्रि शरद ऋतु के आगमन का उत्सव भी है जबकि सर्दी की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्रि से नववर्ष का प्रारंभ होता है। अश्विन मास शारदीय नवरात्रि से त्योहार और उत्सवों का प्रारंभ होता है।
2. गरबा उत्सव और पांडाल : शारदीय नवरात्रि ही एकमात्र ऐसी नवरात्रि रहती है जबकि पूरे देश में गरबा उत्सव मनाया जाता है। यानी महिला पुरुष सुंदर पारंपरिक परिधानों में गरबा डांडिया खेलते हैं और नृत्य करते हैं। इस नवरात्रि में ही देश के प्रमुख शहरों में भव्य पांडाल बनाकर माता की मूर्ति स्थापित करते हैं।
3. चामुण्डा और कात्यायिनी मां की होती है खास पूजा : चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी नवरात्रि कहते हैं। तुलजा भवानी बड़ी माता है तो चामुण्डा माता छोटी माता है। शारदीय नवरात्रि में मां कात्यायिनी ने महिषासुर का वध किया था इसलिए इस नवरात्रि पर सभी नौ देवियों के साथ ही माता कात्यायिनी की पूजा होती है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है।
कहते हैं कि कात्यायनी ने ही महिषासुर का वध किया था इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहते हैं। (दुर्गा सप्तशती के अनुसार इनके अन्य रूप भी हैं:- ब्राह्मणी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, ऐन्द्री, शिवदूती, भीमादेवी, भ्रामरी, शाकम्भरी, आदिशक्ति और रक्तदन्तिका।)
4. शक्ति की भक्ति : चैत्र नवरात्रि पर श्रीराम का जन्म दिन भी आता है इसलिए इस नवरात्रि में माता के साथ ही श्रीहरि के सभी रूपों की पूजा भी की जाती है। शारदीय नवरात्रि में शक्ति की पूजा होती है और अंतिम दिन विजयोत्सव एवं दशहरा मनाया जाता है। इसलिए यह शक्ति के साथ भक्ति का भी समय होता है। शारदीय नवरात्रि में सात्विक साधना, नृत्य और उत्सव मनाया जाता है जबकि चैत्र नवरात्रि में कठिन साधना और कठिन व्रत का महत्व होता है।
5. घट और मूर्ति स्थापना : शारदीय नवरात्रि में अधिकतर घरों में घट स्थापना करके व्रत का पालन किया जाता है। अंत में किसी के यहां सप्तमी, किसी के यहां अष्टमी तो किसी के यहां नवमी के दिन पारण किया जाता है। इसके बाद घट और मूर्ति का विसर्जन करते हैं।