Akhnoor Encounter in Jammu Kashmir: अखनूर सेक्टर में बटल-असल ऑपरेशन की कामयाबी में सेना के डॉग 'फैंटम' (Army dog Phantom ) की शहादत को नहीं भूला जा सकता जो सेना का मूक शहीद है। सिर्फ फैंटम ही नहीं अतीत में ऐसे कई मूक शहीद हैं, जिन्होंने अपनी शहादत देकर न सिर्फ सेना को कई कामयाबियां दिलाई हैं बल्कि कई सैनिकों की जानें भी बचाई हैं। इनमें केंट, जूम, एक्सल आदि नाम शामिल हैं जिनकी शहादत को सलाम किया जा सकता है।
हमलावर डॉग था फैंटम : अखनूर में अभियान के दौरान आतंकियों द्वारा चलाई गई गोली से 4 वर्षीय भारतीय सेना का डॉग फैंटम घायल हो गया। सेना ने अभियान के दौरान तीनों आतंकियों को मार गिराया, लेकिन फैंटम ने अंततः कर्तव्य निभाते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। सेना की इकाई के सदस्य फैंटम ने दुश्मन की गोलीबारी का सामना किया और अपने कर्तव्य का पालन करते हुए गंभीर रूप से घायल हो गया। सेना के अधिकारियों के अनुसार, 25 मई 2020 को जन्मे नर बेल्जियन मेलिनोइस एक हमलावर डॉग था और उत्तर प्रदेश के मेरठ में रिमाउंट वेटनरी कोर से स्नातक होने के बाद 12 अगस्त, 2022 को उसे एक यूनिट में नियुक्त किया गया था।
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भारतीय सेना का पहला शहीद डॉग : यही नहीं भारतीय सेना के हमलावर कुत्तों जूम और एक्सल की शहादत से दशकों पहले, एक श्वान योद्धा - बैकर ने 90 के दशक के मध्य में कश्मीर में आतंकवाद के शुरुआती दौर में एक आईईडी का पता लगाते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया। वह भारतीय सेना का पहला श्वान था, जिसने शहादत दी। श्रीनगर स्थित यूनिट में रखी गई एक पुरानी युद्ध डायरी में इसका उल्लेख किया गया है।
जानकारी के लिए आर्मी के असाल्ट डॉग को छिपे हुए आतंकियों की लोकेशन और उनके हथियारों, गोला-बारूद का पता लगाने के लिए सबसे पहले भेजा जाता है। इन कुत्तों पर कैमरे लगे होते हैं, जिसके जरिए कंट्रोल रूम से निगरानी की जाती है। इन कुत्तों को छिपे हुए आतंकियों की लोकेशन में बिना नजर में आए एंट्री की ट्रेनिंग दी जाती है। इन्हें ऑपरेशनों के दौरान न भौंकने की ट्रेनिंग भी दी जाती है। अगर आतंकी इन कुत्तों को देख लें, तो ऐसी स्थिति में ये कुत्ते आतंकियों पर हमला करने में भी माहिर होते हैं।
सेना के डॉग्स द्वारा कई तरह की ड्यूटी की जाती हैं। इसमें गार्ड ड्यूटी, पेट्रोलिंग, इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसेस सहित विस्फोटकों को सूंघना, सुरंग का पता लगाना, ड्रग्स सहित प्रतिबंधित वस्तुओं को सूंघना, संभावित टारगेट पर हमला करना, मलबे का पता लगाना, छिपे हुए भगोड़ों और आतंकवादियों का पता करना शामिल है।
सेना के हर डॉग की देखरेख की पूरी जिम्मेदारी एक डॉग हैंडलर की होती है। उसे कुत्ते के खाने-पीने से लेकर साफ-सफाई का ध्घ्यान रखना होता है और ड्यूटी के समय सभी काम कराने के लिए हैंडलर ही जिम्मेदार होता है। सेना के कुत्तों को मेरठ स्थित रिमाउंट एंड वेटरनरी कॉर्प सेंटर एंड स्कूल में प्रशिक्षित किया जाता है। कुत्तों की नस्ल और योग्यता के आधार पर उन्हें सेना में शामिल करने से पहले कई चीजों में प्रशिक्षित किया जाता है। ये कुत्ते रिटायर होने से पहले लगभग 8 साल तक सेवा में रहते हैं।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala