Azadi ka amrit mahotsav: महान वीरांगान और छत्राणी रानी दुर्गावती का इतिहास में कम ही जिक्र होता है, क्योंकि उन्होंने अकबर की सेना को कई बार धूल चटा दी थी। क्रूर तुर्क अकबर रानी के साम्राज्य को अपने कब्जे में लेकर रानी को अपने हरम की दासी बनाकर रखना चाहता था, लेकिन रानी जिस बहादुरी के साथ लड़ाई की वह भारतीय नारी शक्ति का सबसे बड़ा प्रतीक है।
1. महान रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को हुआ था। बांदा जिले के कालिंजर किले में दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण ही उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही वह तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई।
2. महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से उनका विवाह हुआ था।
3. दुर्भाग्यवश विवाह के 4 वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती का पुत्र नारायण 3 वर्ष का ही था अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था। उनका राज्य गोंडवाना में था। गोंडवाना मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच एक एक क्षेत्र विशेष है।
4. दुर्गावती के वीरतापूर्ण चरित्र को भारतीय इतिहास से इसलिए काटकर रखा गया, क्योंकि उन्होंने मुस्लिम शासकों के विरुद्ध कड़ा संघर्ष किया था और उनको अनेक बार पराजित किया था।
5. सूबेदार बाजबहादुर ने भी रानी दुर्गावती पर बुरी नजर डाली थी लेकिन उसको मुंह की खानी पड़ी। दूसरी बार के युद्ध में दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया।
6. दुर्गावती ने तीनों मुस्लिम राज्यों को बार-बार युद्ध में परास्त किया। पराजित मुस्लिम राज्य इतने भयभीत हुए कि उन्होंने गोंडवाने की ओर झांकना भी बंद कर दिया था। इन तीनों राज्यों की विजय में दुर्गावती को अपार संपत्ति हाथ लगी थी।
7. अकबर के कडा मानिकपुर के सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां ने रानी दुर्गावती के विरुद्ध अकबर को उकसाया था। अकबर अन्य राजपूत घरानों की विधवाओं की तरह दुर्गावती को भी रनवासे की शोभा बनाना चाहता था। अकबर ने अपनी कामुक भोग-लिप्सा के लिए एक विधवा पर जुल्म किया।
8. अकबर ने रानी के खिलाफ कई बार सेना भेज लेकिन उसे सफलता हाथ नहीं लगी। आखिरी बार में फिर एक शक्तिशाली सेना भेजी, लेकिन धन्य है रानी दुर्गावती का पराक्रम कि उसने अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इनकार कर स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए युद्ध भूमि को चुना और अनेक बार शत्रुओं को पराजित करते हुए 24 जून 1564 में बलिदान दे दिया।
9. दुर्गावती बड़ी वीर थी। वीरांगना महारानी दुर्गावती साक्षात दुर्गा थी। इस वीरतापूर्ण चरित्र वाली रानी ने अंत समय निकट जानकर अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में मारकर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गईं।
10. महारानी ने 16 वर्ष तक राज संभाला। इस दौरान उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। रानी दुर्गावती का नाम भारत की महानतम वीरांगनाओं की सबसे अग्रिम पंक्ति में आता है।
कहते हैं कि रानी दुर्गावती की मृत्यु के पश्चात उनका देवर चन्द्रशाह शासक बना और उसने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली।