आज नागपंचमी (Nagpanchami 2022) है। प्रतिवर्ष यह पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता के पूजा का विधान है। जनमानस में इस दिन को नागपंचमी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन गैस या चूल्हे की आंच पर तवा रखना और साग-भाजी काटना वर्जित माना जाता है तथा नागपंचमी व्रत में एक बार भोजन करने का नियम है। नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने से कुंडली में कालसर्प दोष दूर होता है।
भविष्य पुराण में नागपंचमी के संबंध में 3 विशेष मंत्र बताए गए हैं, जिनका आज के दिन उच्चारण करते हुए पूजन करना मंगलकारी माना जाता है। इन मंत्रों को यदि प्रतिदिन प्रात: और सायं जपा जाए तो उक्त व्यक्ति को चारों दिशाओं से विजय प्राप्त होती है तथा विषभय नहीं रहता है। यहां पढ़ें नागपंचमी पर नाग पूजन के खास 3 मंत्र और सरल पूजन विधि-
1. मंत्र-
'सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।'
अर्थात्- संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दें। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम हो...।
2. मंत्र- ॐ भुजंगेशाय विद्महे, सर्पराजाय धीमहि, तन्नो नाग: प्रचोदयात्।।
3. मंत्र-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात: काले विशेषत:।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥
सरल पूजन विधि-
- सावन शुक्र पंचमी तिथि के दिन सुबह जल्दी स्नान करें।
- फिर नाग पूजा के स्थान को साफ करें।
- पूजा के लिए सही दिशा में लकड़ी का पटिया रखकर लाल कपड़ा बिछाए।
- अब पटिये पर नागदेव की फोटो या मिट्टी की मूर्ति हो तो उसे विराजमान करें।
- तत्पश्चात गंगाजल छिड़कें तथा प्रणाम करके नाग देवता का आह्वान करें।
- अब हल्दी, रोली, अक्षत और पुष्प नागदेव को अर्पित करें।
- कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर नाग देवता को अर्पित करें।
- पूजा के बाद सर्प देवता की आरती उतारी उतारें।
- फिर नागपंचमी की कथा पढ़ें और नाग देवता के मंत्रों का जाप करें।
- अपने सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र, रुपए तथा खाद्य सामग्री का दान करें।
- पूरे दिन उपवास रखें।
- सायंकाल में भी इसी तरह पूजन तथा आरती करें।
- तत्पश्चात व्रत का पारण करें।