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गज़ल : अटलजी के बिना आज की सुबह

गज़ल : अटलजी के बिना आज की सुबह - atal bihari vajpayee poem
-फखरुद्दीन सैफ़ी
 
बहुत उदास, बहुत निराश है आज की सुबह,
अपने लाड़ले के बिना हुई है आज की सुबह।
 
वो हरदिल अज़ीज़ सच्चा इंसान नहीं रहा,
अमावस्या की रात-सी है आज की सुबह।
 
पक्ष को भी प्यारा और विपक्ष को भी प्यारा,
कोई ऐसा एक राजनेता ढूंढती है आज की सुबह।
 
ना किसी की चिंता, ना किसी का डर,
पोखरण वाली सुबह याद करती है आज की सुबह।
 
दूसरों को शिक्षा देने वाले तो खूब मिलते हैं,
कोई राजधर्म की शिक्षा देने वाला तलाशती है आज की सुबह।
 
कविता, सज्जनता, इंसानियत सब हैं उदास,
अटल जैसा कोई भला मानस ढूंढती है आज की सुबह।