National Princess Day : जानें कैसे, कब और क्यों मनाया जाता है राजकुमारी दिवस
राजकुमारी बनना सबका सपना होता है। लेकिन यह सपना सच होना भी एक सपने जैसा ही है। वाकई में आप राजकुमारी जैसा व्यवहार चाहते हैं तो इसके लिए आपको एक योजना के साथ काम करना होगा। जैसे अपनी- मां, बहन या दोस्त को इस दिवस के बारे में बताएं और उनसे कहें कि वे इस दिन को महसूस करना चाहती है। आपकी ये इच्छा सुनकर सभी हावभाव बहुत अलग और अजीब होंगे, उन्हें हंसी भी आएंगी और चौकन्ना भी रहेंगे। लेकिन उन्हें थोड़ा मनाने पर वे जरूर मान जाएंगे। तो चलिए जानते हैं प्रिंसेस दिवस क्यों मनाया जाता है-
दरअसल, यह अवकाश स्वान प्रिंसेस द्वारा बनाया गया था - 18 नवंबर को एक नाटक रिलीज किया गया था। लेकिन बॉक्स ऑफिस पर उम्मीद से अधिक हिट नहीं हुआ। दर्शकों ने उसे पसंद किया लेकिन रचनाकारों उम्मीद जितना बेहतर परिणाम नहीं मिला। साल 2017 में 18 नवंबर को मूल फिल्म रिलीज की गई। और उसके बाद से इस दिन को राजकुमारी दिवस के रूप में मनाते हैं।
काल्पनिक राजकुमारी के बारे में रोचक तथ्य
राजकुमारी की दुनिया बहुत सुंदर होती भी है जैसा की अभी तक एनिमेशन फिल्म, कार्टून या अन्य हॉलीवुड फिल्म में देखा है। लेकिन कुछ काल्पनिक राजकुमारी है जो हमेशा से सभी की पसंदीदा रही है। इतना ही नहीं उन्हें कॉपी करने की कोशिश भी की गई। जैसे कि उनकी ड्रेस, हेयर स्टाइल, एसेसरीज भी उनके जैसे पहनने की कोशिश की गई।
आइए जानते हैं काल्पनिक राजकुमारी के बारे में -
- डिज्नी कार्टून में सभी प्रिंसेस नीले (blue) रंग की ड्रेस ही पहनती थी।
- स्नो व्हाइट डिज्नी की सबसे छोटी राजकुमारी (Princess)है।
- जैसमिन, स्नो व्हाइट से 1 साल बड़ी हैं।
- सिंड्रेला और टिआना सबसे पुरानी राजकुमारी है। वे 19 साल की है।
जानते हैं दुनिया की असली राजकुमारी के बारे में -
- ग्रेस केली ऑस्कर जीतने वाली एकमात्र राजकुमारी थीं। फिल्म "द कंट्री गर्ल" में अपनी भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता। और 1956 में मोनाको के प्रिंस रेनियर से शादी की और एक राजकुमारी भी बन गईं। यह उसे एकमात्र ऐसी राजकुमारी है जिसने कभी ऑस्कर जीता है।
रजिया सुल्ताना एक मुस्लिम राजकुमारी थी, जो 1236 में दिल्ली सल्तनत में आई थी। वह करुणा के साथ अपनी प्रजा पर शासन करने और अपनी प्रजा के कल्याण में सामान्य रुचि लेने के लिए जानी जाती थी। दुर्भाग्य से, उसका शासन छोटा था और 1240 में उसके सौतेले भाई मुइज़ उद दीन बहराम ने उसके सिंहासन पर कब्जा कर लिया था। वह उसके खिलाफ लड़ाई में मर गई।