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चींटी का रहस्यमयी संसार जानिए

चींटी का रहस्यमयी संसार जानिए - Ant Information
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चींटी दुनिया की सबसे छोटी प्रजातियों में से एक है। ऊंचाई से गिरकर फिर चढ़ना चीटियों की आदत है। इंसान और चींटी ही ऐसी प्रजाति हैं जो भोजन इकठ्ठा करके रखते हैं। चींटियों के कान नहीं होते, वो जमीन के कंपन से महसूस करती है। चींटियां हमेशा एक लाइन में चलती हैं ऐसा इसलिए क्योंकि सब चीटियां एक तरल पदार्थ छोड़ती जाती हैं जिससे पीछे वाली चींटी उसके पीछे चलती रहती है। 

चींटी को संसार का सबसे छोटा प्राणी माना जाता है लेकिन इनकी अपनी कुछ विशेषताएं भी हैं। इनका अपना संचार अपने आप में कम विचित्र नहीं है। शायद आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि संसार के देशों में 15 हजार से भी अधिक किस्मों की अनोखी चींटियां पाई जाती हैं। रूस के साइबेरिया में आधा इंच लंबी उड़ने वाली नीले रंग की चींटियां पाई जाती हैं, जो कि अक्‍सर मीठे-मीठे फलों का रस चूसती रहती हैं।
 
 
अमेरिका के उत्तरी रेगिस्तान में काले रंग की ऐसी जहरीली चींटियां पाई जाती हैं जिनसे विष का निर्माण भी किया जाता है। दक्षिण अफ्रीका के जंगलों में फ्रेरिक्सी जाति की लाखों चींटियां अपने समूह में रहती हैं। दरअसल, ये नशाखोर होती हैं। ये नशे के पीछे अपना सब कुछ बरबाद कर लेती हैं। हां, इन चींटियों को ‘पियक्कड़’ नाम से भी जाना जाता है।
 
इन पियक्कड़ चींटियों का नशा भी अजीब होता है। अफ्रीका की वादियों में गेबरिला नामक एकोडन नस्ल का कीड़ा पाया जाता है। यह लाल वर्ण का होता है तथा इसका शरीर बिलकुल चिकना होता है। चींटियां जब इसके बदन को काटती हैं, तो इसके बदन से एक तरह का सुगंधित द्रव झरना शुरू हो जाता है। इस सुगंधित द्रव में एक तरह का नशा होता है जिसे ग्रहण कर चींटियां अपनी मस्ती में मस्त रहती हैं।

 
हां, ये चींटियां इस कीड़े को अपने बिल में खास मेहमान बनाकर रखती हैं। उसके खाने-खुराक की विशेष देखभाल करती हैं। यहां तक कि उसके बच्चों की भी देखरेख करती हैं। इस आदर-सत्कार के बदले ये कीड़ा चींटियों को जब भी आवश्यकता होती है, उनका प्रिय 'ड्रिंक' प्रदान करता है। यह मीठा नशीला द्रव इन चींटियों को पतन की ओर इस हद तक धकेलता है कि ये अपना रोजमर्रा के कार्य और स्वयं के अंडों, बच्चों की देखभाल का काम भी नजरअंदाज कर जाती हैं। अपना सारा समय वे कीड़े की सेवा व उसके आसपास ही डोलते रहने में व्यतीत कर देती हैं।

 
इसी तरह की सफेद चींटियां ऑस्ट्रेलिया के पर्वतों पर भी मिलती हैं, लेकिन ये जहरीले जीव-जंतुओं का खून चूसकर नशा किया करती हैं। मेडागास्कर में 3 इंच लंबी चींटियां घने जंगलों में वृक्षों की खोखल में पाई जाती हैं। ये किसी भी सोते हुए पक्षी पर एकसाथ हमला करती हैं, फिर उसके जिस्म का पूरा खून चूसकर ही दम भरती हैं। खून चूसने के उपरांत इन चींटियों को एक तरह का नशा चढ़ता है और ये अपने स्थान पर आकर 2-3 दिन तक बेहोश पड़ी रहती हैं। नशा उतरने पर ये पुन: नए शिकार की तलाश में चल पड़ती हैं।
 
कोमारा द्वीप की चींटियां तो बड़ी खतरनाक होती हैं। ये जब अपने विशाल समूह में होती हैं, तो खड़े वृक्षों तक को चट कर जाती हैं। प्रकृति के लिए यह चींटी कैंसर का काम करती है। यहां के आदिवासी इन चींटियों के हमले से बचने के लिए बंदर पालकर रखते हैं, क्योंकि ये बंदर इन चींटियों को बड़े चाव से खाना पसंद करते हैं।
 
अलास्का की खाड़ी के कोडिएक, एफोग्नक व शूयक द्वीपों में हरे रंग की चींटियां पाई जाती हैं। ये वृक्षों के पत्तों को चूसकर नशा करती हैं तथा अपने शरीर का रंग गिरगिट की भांति बदल लेती हैं।
 
 
जैव-विविधता के जानकारों का मानना है कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में चींटियां बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे मिट्टी के पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण करती हैं और बीजों के प्रसार में मदद करती हैं। इस कारण से वे कीटों के सबसे बेहतरीन अध्ययन समूहों में से एक हैं। विशालकाय हाथी भी चींटियों से डरते हैं।