क्या कालाबाजारी और नकली दवाइयों का गढ़ बन रहा है इंदौर...
इंदौर। मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर को यह क्या हो गया है? स्वच्छता के मामले में देश में नंबर 1 माना जाने वाला यह शहर कोरोना के संकट काल में कैसी नजीर पेश कर रहा है? पहले रेमडेसिविर, टोसी, फिर फेबी फ्लू, ऑक्सीजन और अब एम्फोटेरिसीन बी (ब्लैक फंगस की दवाई) की कालाबाजारी के मामलों ने शहर की तासीर जानने वालों को हैरान कर दिया है। एक तरफ मरीज कालाबाजारी से परेशान हैं, तो दूसरी तरफ ज्यादा पैसे खर्च करने के बाद भी नकली दवाइयां मिलने से मरीजों जान सांसत में आ गई है।
इधर पोस्ट कोविड इफेक्ट के रूप में शहर में तेजी से पैर पसार रही बीमारी ब्लैक फंगस पर भी कालाबाजारियों की नजर पड़ गई है। भले ही इसके अभी लगभग 200 ही मामले ही शहर में हों, लेकिन बाजार में एंटीफंगल दवाओं की शॉर्टेज जरूर हो गई। काला बाजारी ब्लैक फंगस की दवा पर भी जमकर मुनाफा वसूली कर रहे हैं। इस खतरनाक बीमारी से पीड़ित कई मरीजों की आंखें निकालनी पड़ी हैं। अभी तक 4 लोगों की जान भी जा चुकी है।
जो शहर गत वर्ष बायपास से गुजरते अपरिचित प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए उमड़ पड़ा था, वहां कोरोना से जुड़ीं इन बेहद आवश्यक दवाइयों की कालाबाजारी और नकली इंजेक्शन बेचने की घटनाओं ने शहर की उजली छवि पर भी बुरा असर डाला है।
हालांकि प्रशासन इस मामले में बेहद सख्त नजर आ रहा है। पुलिस द्वारा इंदौर में अब तक नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन और कालाबाजारी के 9 मामले दर्ज किए जा चुके हैं। नगर निगम को पुलिस से 11 आरोपियों की सूची मिली है और प्रशासन नकली इंजेक्शन बेचने वालों के घर तोड़ने की भी तैयारी कर रहा है।
बहरहाल, मेडिकल क्षेत्र में बढ़ रही कालाबाजारी और नकली दवाओं से कोरोना मरीजों और उनके परिजनों की परेशानी बढ़ गई है। लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि जो दवा उन्हें मिल रही है, वह असली है भी या नहीं?
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या इंदौर कालाबाजारियों और नकली दवाइयों का गढ़ बन रहा है? क्या शहर में मरीजों के स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों के भरोसे पर इन कालाबाजारियों और नकली सामान बेचने वालों को चोट करने दी जाएगी? या फिर स्वास्थ्य जगत से जुड़े लोग मानवीयता की मिसाल पेश कर एक ऐसी व्यवस्था बनाने में सफल होंगे जिसमें गलत लोगों के लिए कोई जगह नहीं होगी?
हालांकि प्रशासन और जनप्रतिनिधि अपनी तरफ से इस स्थिति पर नियंत्रण के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। रेमडेसिविर की तरह एंटी फंगल दवाओं को भी सही हाथों में पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। अगर जल्द ही स्थिति पर नियंत्रण नहीं किया गया तो इससे मरीजों की जान के साथ तो खिलवाड़ होगा ही साथ ही शहर की प्रतिष्ठा पर भी इसका बुरा असर होगा।