Special Story: ड्यूटी के साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं ये वर्दी वाले
वर्दी के रौब की कहानियां लोगों को खूब पढ़ने-सुनने को मिलती हैं, लेकिन यही वर्दीधारी अपनी ड्यूटी से इतर जब मददगार के रूप में दिखाई देते हैं तो सुखद आश्चर्य भी होता है। कोरोनावायरस काल में ऐसे कई चेहरे सामने आए हैं, जिन्होंने स्व-प्रेरणा से जरूरतमंदों के लिए मदद की मशाल थामी। लेकिन, यहां हम इंदौर के दो ऐसे पुलिसकर्मियों की बात कर रहे हैं, जिन्होंने बड़ा ओहदा न होने के बावजूद मुश्किल वक्त में लोगों की सहायता कर समाज में अनूठी मिसाल पेश की।
संजय सांवरे ऐसे ही पुलिसकर्मियों में से एक हैं। संजय कोरोना काल से पहले से ही गरीब बस्ती के बच्चों को निशुल्क पढ़ाने का काम करते रहे हैं। उनकी क्लास में 48 बच्चे आते थे। अभी क्लास बंद है, लेकिन अब वे सभी को कोरोना को लेकर जागरूक कर रहे हैं।
हाल ही में संजय ने अपने वेतन से बस्ती के 12 परिवारों को 8 किलो आटा, चाय पत्ती, दाल आदि राशन बांटा था। पिछले लॉकडाउन के समय भी संजय ने काफी लोगों की मदद की थी। इसके लिए वे किसी से सहयोग नहीं लेते, जो भी करते हैं अपनी सैलरी से ही करते हैं।
बॉडी बिल्डिंग के शौकीन संजय कहते हैं कि अभी जिम बंद हैं, इसलिए दिन की शुरुआत पुशअप्स के साथ होती है। खुद को फिट रखने के लिए दूसरी एक्सरसाइज भी करते हैं। खाना नॉर्मल ही खाते हैं, लेकिन पूरे दिल से खाते हैं। नींबू पानी का नियमित रूप से सेवन करते हैं। खुद पॉजिटिव रहते हैं, दूसरों को भी सकारात्मक रखने की कोशिश करते हैं।
इंदौर के यातायात थाने में पदस्थ सुमंत सिंह कछावा कहते हैं कि पिछले लॉकडाउन में काफी लोगों की मदद की थी। भोजन से लेकर अन्य सामग्री लोगों को उपलब्ध करवाई थी। इस बार बहुत सीमित मात्रा में मदद कर पाए। उनका कहना है कि इस बार रेमडिसिविर इंजेक्शन की कमी, ऑक्सीजन की कमी काफी कमी रही, ऐसे में वे चाहकर भी कुछ मदद नहीं कर पाए।
सुमंत कहते हैं कि वे सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार अवेयरनेस प्रोग्राम चलाते हैं। ज्ञानेन्द्र पुरोहित के माध्यम से इधर-उधर फंसे मूक-बधिरों की भी उन्होंने मदद करवाई। सोशल मीडिया कैंपेन के माध्यम से उन्होंने देश के अन्य शहरों में भी लोगों की मदद करवाई। रोड सेफ्टी को लेकर जागरूकता दृष्टि से भी वे वीडियो बनाते हैं।
कछावा कहते हैं कि पिछले लॉकडाउन में हमारे लिए चीजें नई थीं। डर भी था। अत: अतिरिक्त सावधानी बरत रहे हैं, लेकिन अब सब कुछ क्लीयर है। हालांकि हमारे लिए कुछ भी नहीं बदला है। दूसरी ओर, सुरक्षा की दृष्टि से परिजनों को गांव पहुंचा दिया है। अब वे सुरक्षित हैं, इसलिए कोई मानसिक तनाव भी नहीं हैं।