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Written By Author डॉ. रमेश रावत
Last Updated : सोमवार, 25 मई 2020 (17:24 IST)

Corona काल में सकारात्मकता और कृतज्ञता को बनाएं अपनी ताकत

Corona काल में सकारात्मकता और कृतज्ञता को बनाएं अपनी ताकत - Importance of positivity in Corona time
कोरोना संकंट के समय हम कैसे स्वयं को अवसाद से दूर रखें? सकारात्मक विचारों से लबरेज कैसे रहें? तनाव को कम कैसे करें? ऐसे ही और भी जीवन से जुड़े कई सवाल हैं जो Corona काल में हर व्यक्ति के मन में घुमड़ रहे हैं। इन्हीं सवालों के जवाब दे रहे हैं मोटिवेशनल स्पीकर, शिक्षाविद एवं जीवन प्रबंधन विशेषज्ञ डॉ. संजय बियानी। 
स्वयं के पास बैठें : कोरोना काल से पहले की बात करें तो सबसे बड़ी समस्या यह थी कि इंसान खुद पर काम नहीं कर रहा था। वह बाहर भाग रहा था। वह होटल जा रहा था, पर्यटन पर जा रहा था, निजी कार्यों से विदेश जा रहा था। कोविड-19 ने सबको अपने पास बैठा दिया है। जब व्यक्ति स्वयं के पास बैठता है तो ताकतवर बनता है। यह समय अवसर है जो कि ईश्वर ने इंसान को उपलब्ध कराया है। अब भागना बंद करें। एक दिन तो सभी को धरती से भागना ही है। अभी यह समय परिजनों के पास बैठकर अपनी जिंदगी के सबसे बड़े सवाल से रू-ब-रू होने का है। आप कौन हैं?
 
सकारात्मक रहें : यह समय बाहर भागने वाले इंसान को झकझोरने का है। जब व्यक्ति बाहर जाता है तो उसे ईर्ष्या होती है, घृणा होती है, द्वेष होता है। कोरोना यह बताता है कि बाहर भागने से कुछ नहीं होगा। खुशियां हमारे अंदर ही हैं। हमारे पास ही हैं। 
 
हमारा देश, परिवार, समाज एवं परंपराओं के लिए जाना जाता है। इस समय सकारात्मक विचारों को बनाए रखने के लिए बहुत-सा सहित्य उपलब्ध है। इसमें भी मुख्य रूप से श्रीमद् भगवतगीता और रामायण को पढ़ें, इन्हें आत्मसात करें। इसे जीवन से रिलेट करें। इससे मन शांत हो सकता है। जीवन को ताकत मिल सकती है। जब हम घर में बैठे हैं तो हमारे खर्चे बहुत ही कम हो गए हैं। यदि व्यक्ति मेहनती है एवं कर्मशील है तो वह इतना तो जुटा ही सकता है कि अपने परिवार को आसानी से पाल सके। साथ ही अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में भी सोच सकता है। सकारात्मका उसके पास ही है।
 
प्रकृति के करीब जाएं : सबसे पहली जरूरत तो यह है कि इस समय व्यक्ति प्रकृति की सेवा कर सकता है। जो भी व्यक्ति जैसी स्थिति में है, जहां है वहां प्रकृति की सेवा कर सकता है। यदि किसी के पास फार्म हाउस है तो वहां वह पौधे लगाए। सब्जी उगाए। घर में लोग गमलों में पानी दें। गार्डन मेंटेन करें। आसपास के पार्क में सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए पेड़-पौधों के साथ अपना रिश्ता बनाएं। यह सब प्रकृति देखती है एवं इसका जवाब भी देती है। प्रकृति के करीब आने से समय का ज्यादा उपयोग हो सकता है।
 
बुजुर्गों के अनुभव से सीखें : हम हमारे बुजुर्गों के अनुभव का लाभ उठा सकते हैं। उनके पास तजुर्बा है। युवाओं एवं घर के सदस्यों को उनके पास बैठना चाहिए। बुजुर्गों को बच्चों और युवाओं को पास बैठाकर अपने अनुभवों के साथ कहानियां सुनानी चाहिए। हर बुजुर्ग को अपने बच्चों को राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर आदि महापुरुषों एवं पंचतंत्र की कहानियां सुनानी चाहिए। इससे बच्चों में संस्कार पल्लवित होंगे। वर्तमान समय में हम बच्चों को संस्कार तो दे ही सकते हैं, यह उनके जीवन भर काम आएंगे। बच्चों को प्रकृति से प्रेम करना भी सिखाएं। 
 
तन-मन दोनों को स्वस्थ रखें : महिलाओं को सोशल मीडिया का सदुपयोग करते हुए खाने में गुणात्मक सुधार करना चाहिए। ई-लर्निंग का सहारा लें। ऑनलाइन कोर्स करें। बुजुर्ग बुजुर्ग महिलाओं से पुराने खान-पान के बारे में सीखें। पौष्टिक आहार बनाएं। दादी-नानी की रसोई का खाना इम्यूनिटी तो बढ़ाएगा ही एवं सुरक्षित भी रखेगा। 
 
शरीर को स्वस्थ रखने का आसान तरीका है श्रम करना। अपना काम स्वयं का स्वयं करें। प्रतिदिन व्यायाम करें। प्राणायाम एवं ध्यान करें। स्वाध्याय भी करें। पारंपरिक तरीकों को अपनाएं। लिफ्ट से न चढ़ें। घर के नौकरों पर निर्भर न रहें। इन छोटी-छोटी बातों से न सिर्फ व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है बल्कि उसका तनाव भी दूर होगा। 
 
कृतज्ञता का भाव रखें : कृतज्ञता हमारी किसी भी रूप में एवं कहीं भी, किसी के साथ भी हो सकती है। जब तक इंसान कृतज्ञ नहीं होगा, वह कोई भी बड़ा काम नहीं कर सकता। हमारी प्रकृति के प्रति कृतज्ञता होनी चाहिए। परिजनों, बड़े-बुजुर्गों, पंचतत्वों के प्रति हमारा कृतज्ञता का भाव होना चाहिए। स्वच्छता की कृतज्ञता को अपनाते हुए हमें पर्यावरण को शुद्ध रखना चाहिए। पुराने समय में कृतज्ञता बहुत होती थी। उस समय हर कृतज्ञता के आगे नमः शब्द जुड़ा होता था। यह नमः अब संस्कारों में गायब हो गया है।
हर व्यक्ति को इस शब्द को आत्मसात करना चाहिए। किसी न किसी काम में इसे तलाश लेना चाहिए। इससे अंदर का माहौल बदल जाएगा। हर कारण के लिए हम तीन बार धन्यवाद देने की आदत डालें। इसमें मां को धन्यवाद दें, पानी भी पिएं तो धन्यवाद दें। यह कृतज्ञता किसी भी कार्य में हो सकती है। जैसे गार्डन में खेल रहे हैं तो वहां के पेड़-पौधों में पानी डालें एवं स्वयं को कृतज्ञ करें।
 
कौन हैं डॉ. संजय बियानी : डॉ. बियानी ने लॉकडाउन में श्रीमदभागवत गीता के 20 से 25 मिनट के 19 एपीसोड एवं रामायण पर 5-5 मिनट के 60 एपीसोड तैयार किए हैं। इन्हीं एपीसोड के माध्यम से आपने करीब 3000 से अधिक विद्यार्थियों एवं जिज्ञासुओं को लाइफ मैनेजमेंट की ऑनलाईन एवं नि:शुल्क ट्रेनिंग दी है। 
बियानी ग्रुप ऑफ कॉलेज के एकेडेमिक निदेशक डॉ. संजय बियानी ने स्वयं को सुबह 5 बजे से रात 11 बजे तक करीब 15 से 16 घंटे व्यस्त रखा। भावी रणनीति तैयार करने के साथ ही बच्चों को योग भी सिखाया। स्वयं भी योग, ध्यान और प्राणायम किया। प्रखर वक्ता, करियर काउंसलर, शिक्षाविद, रिसर्चर, एंटरप्रेन्योर डॉ. बियानी अब तक 17 से अधिक पुस्तकें विभिन्न विषयों पर लिख चुके हैं। विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए आपको अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।