- शुरैह नियाज़ी (भोपाल से)
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से कांग्रेस के प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के नाम की घोषणा के साथ ही अब यह लोकसभा क्षेत्र हर किसी के लिए चर्चा का केंद्र बन गया है। भोपाल सीट को भाजपा के लिए एक सेफ सीट माना जाता रहा है, लेकिन दिग्विजय सिंह के उतर जाने से अब यहां पर दिलचस्प मुक़ाबला देखने को मिल सकता है। हालांकि भाजपा ने अभी यह साफ़ नहीं किया है कि उनकी तरफ से कौन उम्मीदवार होगा, लेकिन दिग्विजय सिंह का नाम आने के साथ ही कई नाम उछाले जा रहे हैं जो भाजपा की तरफ से चुनाव लड़ सकते हैं।
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने शनिवार को एक कार्यक्रम में पत्रकारों से चर्चा करते हुए घोषणा की कि दिग्विजय सिंह भोपाल लोकसभा सीट से काग्रेंस के प्रत्याशी होंगे। देर रात पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की सूची जारी करते हुए दिग्विजय सिंह के नाम का ऐलान कर दिया। भोपाल की सीट पर आख़िरी बार काग्रेंस के प्रत्याशी ने 1984 में जीत दर्ज की थी।
कमलनाथ से जब दिग्विजय सिंह के बारे में पत्रकारों ने पूछा तो उन्होंने कहा, "मैं एक घोषणा कर सकता हूं। सेन्ट्रल इलेक्शन कमेटी में दिग्विजय सिंह जी का नाम भोपाल से फ़ाइनल हो गया है। मैंने उनसे अनुरोध किया था कि आप लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं। इसलिए आप राजगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ो, यह आपको जंचता नहीं है। मैंने उनसे कहा कि भोपाल, इंदौर या जबलपुर जैसी मुश्किल सीट से लड़ें। इस पर दिग्विजय सिंह ने सहमति दे दी।"
हालांकि दिग्विजय सिंह पहले ही घोषणा कर चुके थे कि पार्टी उन्हें जहां से भी लड़ाएगी वहां से वह चुनौती स्वीकार करने के लिए तैयार है। दिग्विजय सिंह की घोषणा के बाद मालेगांव ब्लास्ट मामले में अभियुक्त प्रज्ञा ठाकुर ने भी उनके ख़िलाफ़ टिकट की मांग की है। प्रज्ञा ठाकुर महसूस करती है कि जो कुछ भी उनके साथ हुआ है उसके लिए दिग्विजय सिंह ही ज़िम्मेदार रहे हैं। इसलिए उनकी चाहत उनके ख़िलाफ़ मैदान में उतरने की है।
दिग्विजय के मुक़ाबले कौन?
साध्वी प्रज्ञा ने पत्रकारों से बात करते हुए दिग्विजय सिंह को देश का दुश्मन बताया। उन्होंने कहा, "मैं देश के दुश्मनों के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए तैयार हूं।"
साध्वी प्रज्ञा, मध्यप्रदेश के भिंड की रहने वाली है। उनको मालेगांव बम ब्लास्ट के एक अभियुक्त के तौर पर जाना जाता है। वहीं एक दूसरा नाम पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का चल रहा है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि शिवराज सिंह चौहान भाजपा के प्रत्याशी हो सकते हैं।
हालांकि शिवराज सिंह चौहान लगातार बोलते रहे हैं कि वह केंद्र की राजनीति में जाने के इच्छुक नहीं हैं लेकिन अगर पार्टी फ़ैसला करेंगी तो उनके पास कोई विकल्प नहीं रह जाएगा। रविवार को मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष राकेश सिंह से जब शिवराज सिंह चौहान के भोपाल से चुनाव लड़ने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "यह फ़ैसला केंद्रीय नेतृत्व को करना है।"
'दिग्विजय चुनौती नहीं'
वहीं शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि पार्टी जो फ़ैसला करेंगी उसे मैं मानूंगा। उन्होंने कहा, "दिग्विजय सिंह की उम्मीदवारी भाजपा के लिए किसी भी तरह से कोई चुनौती नहीं है।"
वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने भी भोपाल से चुनाव लड़ने में दिलचस्पी दिखाई है। उन्होंने कहा, "यदि पार्टी ने चुनाव लड़ने का पूछा तो दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ना पसंद करूंगा।"
इस सब के बीच माना जा रहा है कि भाजपा सोमवार को भोपाल के बारे में फ़ैसला ले सकती है। लेकिन दिग्विजय सिंह का भोपाल से चुनाव लड़ना बताता है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच जो रिश्ते विधानसभा चुनाव के दौरान बने थे उनमें अब ख़ास तौर पर दरारें देखी जा सकती है। कमलनाथ का यह कहना कि दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं को कड़ी टक्कर वाली सीटों से लड़ना चाहिए बताता है कि दोनों में अब वह बात नहीं रही जो विधानसभा चुनाव के वक़्त थी।
क्या है सीट का गणित?
दोनों की तल्ख़ी की एक वजह दिग्विजय सिंह का इंदौर से कमलनाथ से फोन का स्पीकर खोल कर बात करना भी है। इस बात को स्थानीय मीडिया ने उछाला भी। लेकिन काग्रेंस के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, "कांग्रेस का एक बड़ा नेता जब मुख्यमंत्री से बात कर रहा हो तो वह कैसे स्पीकर खोल कर दोनों की बातों को दूसरों को सुनवा सकता है। यह बात हैरान करने वाली है।"
इसके अलावा भी कई मुद्दे हैं जिसकी वजह से दोनों में दूरियां बढ़ गई है और कमलनाथ को यह मौका मिला है कि दिग्विजय सिंह को ऐसी सीट से लड़ाया जाए जहां से जीतना दिग्विजय सिंह के लिए किसी भी सूरत में आसान नहीं होगा। राजधानी भोपाल वह सीट है जहां पर कांग्रेस के बड़े नेताओं ने अपनी किस्मत अज़माई है लेकिन वह इस सीट से निकल नहीं पाए हैं। इस सीट पर नवाब मंसूर अली खान पटौदी और सुरेश पचौरी भी चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन वह भी इस सीट पर कांग्रेस को जीत नहीं दिला पाए।
राजनैतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटैरिया भोपाल सीट के बारे में बताते हैं कि यह सीट भाजपा का गढ़ बन चुकी है। उन्होंने बताया, "दिग्विजय सिंह बड़े दिनों के बाद सक्रिय राजनीति में भोपाल में आकर खड़े हुए हैं। यह 1984 तक कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी। लेकिन 1989 से भाजपा ने सारे पत्ते खोले और सुशील चंद्र वर्मा को उतारा जो कायस्थ समाज के थे। शहर में कायस्थ समाज के वोट बड़ी तादाद में है। दूसरे नंबर पर ब्राह्मण मतदाता है। ऐसे में यह सीट वाक़ई में दिग्विजय सिंह के लिए चुनौती है।"
भोपाल लोकसभा सीट का अपना महत्व है। यहां पर 8 विधानसभा सीटें हैं, इनमें से 3 में कांग्रेस और 5 पर भाजपा का कब्ज़ा है। तक़रीबन 18 लाख मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में मुसलमानों की तादाद लगभग 4 लाख होगी। इसके बावजूद राजगढ़ के इस राजा के लिए राजधानी को फ़तह कर पाना उतना आसान नहीं दिख रहा है।