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Last Modified: बुधवार, 4 सितम्बर 2024 (10:13 IST)

बहराइच में आदमखोर भेड़िये, कहीं बदला लेने के लिए तो नहीं कर रहे हमले?

बहराइच में आदमखोर भेड़िये, कहीं बदला लेने के लिए तो नहीं कर रहे हमले? - wolf attack in bahraich : are wolves taking revange
Bahraich wolf attack : उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में आदमखोर भेड़ियों के बढ़ते हमलों के बीच विशेषज्ञों का कहना है कि भेड़िये बदला लेने वाले जानवर होते हैं। संभवत: पूर्व में इंसानों द्वारा उनके बच्चों को नुकसान पहुंचाए जाने के प्रतिशोध के रूप में ये हमले किए जा रहे हैं। ALSO READ: Operation Wolf : ऑपरेशन भेड़िया हमलों को रोकने में विफल, वन विभाग, पुलिस और ग्रामीणों की सतर्कता भी नाकाम
 
बहराइच के महसी तहसील क्षेत्र के लोग मार्च से भेड़ियों के आतंक का सामना कर रहे हैं। बरसात के मौसम में हमले बढ़े हैं और जुलाई माह से लेकर सोमवार रात तक इन हमलों से 9 बच्चों सहित कुल 10 लोगों की मौत हो चुकी है। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों सहित करीब 36 लोग घायल भी हुए हैं।
 
भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के सेवानिवृत्त अधिकारी और बहराइच जिले के कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग में वन अधिकारी रह चुके ज्ञान प्रकाश सिंह अपने तजुर्बे के आधार पर बताते हैं कि भेड़ियों में बदला लेने की प्रवृत्ति होती है और पूर्व में इंसानों द्वारा उनके बच्चों को किसी ने किसी तरह की हानि पहुंचाई गई होगी, जिसके बदले के स्वरूप ये हमले हो रहे हैं।
 
सेवानिवृत्त होने के बाद ‘वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया’ के सलाहकार के तौर पर सेवाएं दे रहे सिंह ने पूर्व के एक अनुभव का जिक्र करते हुए बताया कि 20-25 साल पहले उत्तर प्रदेश के जौनपुर और प्रतापगढ़ जिलों में सई नदी के कछार में भेड़ियों के हमलों में 50 से अधिक इंसानी बच्चों की मौत हुई थी। पड़ताल करने पर पता चला था कि कुछ बच्चों ने भेड़ियों की एक मांद में घुसकर उनके 2 बच्चों को मार डाला था। भेड़िया बदला लेता है और इसीलिए उनके हमले में इंसानों के 50 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई। बहराइच में भी कुछ ऐसा ही मामला लगता है।
 
उन्होंने कहा कि जौनपुर और प्रतापगढ़ में भेड़ियों के हमले की गहराई से पड़ताल करने पर मालूम हुआ कि अपने बच्चे की मौत के बाद भेड़िये काफी उग्र हो गए थे। वन विभाग के अभियान के दौरान कुछ भेड़िये पकड़े भी गए थे, लेकिन आदमखोर जोड़ा बचता रहा और बदला लेने के मिशन में कामयाब भी होता गया। हालांकि, अंतत: आदमखोर भेड़िये चिह्नित हुए और दोनों को गोली मार दी गई, जिसके बाद भेड़ियों के हमले की घटनाएं बंद हो गईं।
 
सिंह के अनुसार, बहराइच की महसी तहसील के गांवों में हो रहे हमलों का पैटर्न भी कुछ ऐसा ही एहसास दिला रहा है।
उन्होंने बताया कि इसी साल जनवरी-फरवरी माह में बहराइच में भेड़ियों के 2 बच्चे किसी ट्रैक्टर से कुचलकर मर गए थे। तब उग्र हुए भेड़ियों ने हमले शुरू किए तो हमलावर भेड़ियों को पकड़कर 40-50 किलोमीटर दूर बहराइच के ही चकिया जंगल में छोड़ दिया गया। संभवतः यहीं थोड़ी गलती हुई।
 
सिंह ने बताया कि चकिया जंगल में भेड़ियों के लिए प्राकृतिक वास नहीं है। ज्यादा संभावना यही है कि यही भेड़िये चकिया से वापस घाघरा नदी के किनारे अपनी मांद के पास लौट आए हों और बदला लेने के लिए हमलों को अंजाम दे रहे हों।”
 
उन्होंने कहा कि अभी तक जो चार भेड़िये पकड़े गए हैं, वे सभी आदमखोर हमलावर हैं, इसकी उम्मीद बहुत कम है। हो सकता है कि एक आदमखोर पकड़ा गया हो, मगर दूसरा बच गया हो। शायद इसीलिए पिछले दिनों तीन-चार हमले हुए हैं।
 
बहराइच के प्रभागीय वन अधिकारी अजीत प्रताप सिंह का भी कहना है कि शेर और तेंदुओं में बदला लेने की प्रवृत्ति नहीं होती, लेकिन भेड़ियों में होती है। अगर भेड़ियों की मांद से कोई छेड़छाड़ होती है, उन्हें पकड़ने या मारने की कोशिश की जाती है या फिर उनके बच्चों को किसी तरह का नुकसान पहुंचता है, तो वे इंसानों का शिकार कर बदला लेते हैं।
 
देवीपाटन के मंडलायुक्त शशिभूषण लाल सुशील ने कहा कि अगर आदमखोर भेड़िये पकड़ में नहीं आते हैं और उनके हमले जारी रहते हैं, तो अंतिम विकल्प के तौर पर उन्हें गोली मारने के आदेश दिए गए हैं।
 
बहराइच के महसी तहसील क्षेत्र में भेड़ियों को पकड़ने के लिए थर्मल ड्रोन और थर्मोसेंसर कैमरे लगाए गए हैं। जिम्मेदार मंत्री, विधायक और वरिष्ठ अधिकारी या तो क्षेत्र में डटे हुए हैं या मुख्यालय से स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए हैं। (भाषा)
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