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Last Updated : सोमवार, 2 सितम्बर 2024 (12:15 IST)

Man eating wolf: आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने के लिए नई रणनीति, होगा रंग बिरंगी गुड़ियों का भी इस्तेमाल

Man eating wolf: आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने के लिए नई रणनीति, होगा रंग बिरंगी गुड़ियों का भी इस्तेमाल - New strategy to catch man eating wolves
बहराइच। उत्तरप्रदेश के बहराइच जिले में पिछले कुछ महीनों से ग्रामीणों पर हमला कर रहे आदमखोर भेड़ियों (man eating wolves) को पकड़ने के लिए वन विभाग बच्चों की पेशाब में भिगोई गई रंग-बिरंगी गुड़ियों का इस्तेमाल कर रहा है। इन 'टेडी डॉल' (teddy dolls) को दिखावटी चारे के रूप में नदी के किनारे भेड़ियों के आराम स्थल और मांद के पास लगाया गया है। 'टेडी डॉल' को बच्चों की पेशाब से भिगोया गया है ताकि इनसे बच्चों जैसी गंध आए और भेड़िये इनकी तरह खींचे चले आएं।
 
प्रभागीय वनाधिकारी अजीत प्रताप सिंह ने सोमवार को बताया कि हमलावर भेड़िये लगातार अपनी जगह बदल रहे हैं। अमूमन ये रात में शिकार करते हैं और सुबह होते-होते अपनी मांद में लौट जाते हैं। ऐसे में ग्रामीणों और बच्चों को बचाने के लिए हमारी रणनीति है कि इन्हें भ्रमित कर रिहायशी इलाकों से दूर किसी तरह इनकी मांद के पास लगाए गए जाल या पिंजरे में फंसने के लिए आकर्षित किया जाए।

 
सिंह ने कहा कि इसके लिए हम थर्मल ड्रोन से भेड़ियों की लोकेशन के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं। फिर पटाखे जलाकर, शोर मचाकर या अन्य तरीकों से इन्हें रिहायशी गांव से दूर सुनसान जगह ले जाकर जाल के नजदीक लाने की कोशिश की जा रही है। हमलावर जानवर अधिकांश बच्चों को अपना निशाना बना रहे हैं इसलिए जाल और पिंजरे के पास हमने बच्चों के आकार की बड़ी-बड़ी 'टेडी डॉल' लगाई हैं।
 
उन्होंने बताया कि 'टेडी डॉल' को रंग-बिरंगे कपड़े पहनाकर इन पर बच्चों के मूत्र का छिड़काव किया गया है और फिर जाल के पास व पिंजरों के अंदर इस तरह से रखा गया है कि देखने से भेड़िये को इंसानी बच्चा बैठा होने या सोता होने का भ्रम हो। सिंह के मुताबिक बच्चे का मूत्र भेड़ियों को 'टेडी डॉल' में नैसर्गिक इंसानी गंध का एहसास दिलाकर अपने नजदीक आने को प्रेरित कर सकता है।
 
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के फील्ड निदेशक व कतर्नियाघाट वन्यजीव विहार के डीएफओ रह चुके वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी रमेश कुमार पांडे ने तराई के जंगलों में काफी वर्षों तक काम किया है। इन दिनों वे भारत सरकार के वन मंत्रालय में महानिरीक्षक (वन) के तौर पर सेवाएं दे रहे हैं।

 
'पीटीआई-भाषा' से खास बातचीत में पांडे ने कहा कि भेड़िये, सियार, लोमड़ी, पालतू व जंगली कुत्ते आदि जानवर कैनिड नस्ल के जानवर होते हैं। भेड़ियों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि ब्रिटिश काल में यह इलाका कैनिड प्रजाति में शामिल इन भेड़ियों का इलाका हुआ करता था। भेड़िया आबादी में खुद को आसानी से छिपा लेता है। उस जमाने में भेड़ियों को पूरी तरह से खत्म करने की कवायद हुई थी। बहुत बड़ी संख्या में उन्हें मारा भी गया था।
 
उन्होंने बताया कि तब भेड़ियों को मार डालने योग्य जंगली जानवर घोषित किया गया था और इन्हें मारने पर सरकार से 50 पैसे से लेकर 1 रुपए तक का इनाम मिलता था। सिंह के अनुसार हालांकि ब्रिटिश शासकों की लाख कोशिशों के बावजूद ये जीव अपनी चालाकी से छिपते-छिपाते खुद को बचाने में कामयाब रहे और आज भी बड़ी संख्या में नदियों के किनारे के इलाकों में मौजूद हैं।
 
बहराइच की महसी तहसील में भेड़ियों का 1 झुंड कुछ माह से हमलावर है। बारिश के बाद जुलाई माह से हमलों में तेजी आई है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक 17 जुलाई से लेकर अब तक भेड़ियों के हमलों में कथित तौर पर 6 बच्चों व 1 महिला की मौत हुई है जबकि बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों सहित दर्जनों ग्रामीण घायल हुए हैं।
 
देवीपाटन मंडल के आयुक्त शशिभूषण लाल सुशील ने बताया कि 5 बच्चों की मौत की पुष्टि हुई है और सरकार उनके परिवार को 5-5 लाख रुपए का मुआवजा सरकार दे चुकी है, जबकि 2 संदिग्ध मामलों की जांच की जा रही है। सुशील के अनुसार आदमखोर झुंड में शामिल 6 में से 4 भेड़िये बीते डेढ़ माह में पकड़े जा चुके हैं और बाकी बचे हुए 2 भेड़ियों के हमले अब भी जारी हैं। उन्होंने बताया कि शनिवार रात और रविवार सुबह भी इनके हमलों से 1 बच्चा व 1 अन्य व्यक्ति घायल हो गए। सुशील ने कहा कि थर्मल ड्रोन और सामान्य ड्रोन के जरिये इन भेड़ियों की तलाश की जा रही है।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta
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