संघ प्रमुख मोहन भागवत ने किया 'मेरे पापा परमवीर' पुस्तक का लोकार्पण
Mohan Bhagwat : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने गाजीपुर में परमवीर चक्र विजेताओं अब्दुल हमीद के जीवन पर लिखी पुस्तक 'मेरे पापा परमवीर' (Mere Papa Paramveer) का लोकार्पण किया। भारत-पाक युद्ध में शहीद अब्दुल हमीद की आज जयंती है। इस अवसर पर रामचन्द्र निवासन द्वारा लिखी पुस्तक 'मेरे पापा परमवीर' का विमोचन किया।
शहीद के बेटे जैनुल हसन से बातचीत को आधार पर पुस्तक को लिखा गया है। इस अवसर पर मोहन भागवत ने एक और पुस्तक 'भारत का मुसलमान' का भी विमोचन किया।
शहीदों का बलिदान महान होता है : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने शहीद अब्दुल हमीद को उनके गांव धामूपुर में श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि जब मैं कार्यक्रम के मुख्य द्वार पर था, वहां लिखा हुआ देखा कि 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर उनकी कुर्बानी का बाकी यही निशां होगा'। जो वास्तव में देश के लिए शहीद होते हैं, वे अमर हो जाते हैं। बलिदान देते हैं तब कहीं जाकर बलिदानी होते हैं। शहीदों का बलिदान महान होता है।
उन्होंने कहा कि अपने देश की परंपरा है कि जीवन जीना है तो उपभोग के लिए नहीं जीना, मजे लेने के लिए नहीं जीना है। देश पर जान न्योछावर करने वाले शहीद भी ऐसे ही जीते हैं। वे अपने जीवन का बलिदान करके इस सृष्टि निर्माता भगवान में जाकर मिल जाते हैं, जो यह एक बहुत कठिन तपस्या है। शहीद अपने आपको बाकी जीवन से अलग रखते हुए जीते हैं। ऐसे ही अब्दुल हमीद देश के लिए जीएं।
पुस्तक 'भारत का मुसलमान' का लोकार्पण भी किया : उन्होंने कहा कि 2 तरह के लोग जीवन जीते हैं। एक तो योगी होते हैं और दूसरे वह जो कच्छ के रण में देश के लिए बलिदान देकर शहीद हो जाते हैं। इसी तरह जानवर और इंसान में फर्क होता है। इंसान दूसरों के लिए जीता है जबकि जानवर अपने लिए। उन्होंने कहा कि अपने कमाए धन को खर्च करना चाहिए, पुरुषार्थ ही सच्ची साधना है। इस अवसर पर संघ प्रमुख भागवत ने कैप्टन मकसूद गाजीपुरी द्वारा रचित पुस्तक 'भारत का मुसलमान' का लोकार्पण भी किया।
संघ प्रमुख गाजीपुर में शहीद अब्दुल हमीद के गांव में सोमवार की सुबह पहुंचे। द्वार पर लगी शहीद की प्रतिमा को नमन किया। शहीद अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई 1933 को एक दर्जी के घर में हुआ था। बचपन से हमीद का सपना था कि वे सेना की वर्दी पहनकर देश की सेवा करें। पिता ने टेलरिंग सिखानी चाही तो उनका मन नहीं लगा। 20 वर्ष की आयु में अब्दुल हमीद भारतीय सेना का हिस्सा बन गए। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद पहली पोस्टिंग 1955 में 4 ग्रेनेडियर्स में मिली। 1962 की जंग के दौरान हमीद जंगलों में रास्ता भटक गए, तब उन्होंने वहां जंगली पत्ते खाकर जान बचाई।
छुट्टी पर थे, जंग में वापस लौटे और शहीद हो गए : 1965 में भारत-पाकिस्तान की जंग छिड़ गई। जंग के समय वह अपने घर छुट्टियों में आए हुए थे। जब जंग का पता चला तो उन्होंने ड्यूटी पर वापस लौटने का फैसला किया। परिवार नहीं चाहता था कि वे जाएं। समझाया कि छुट्टी पूरी करके वापस लौटें। लेकिन देश की सेवा के लिए आतुर हमीद परिवार को देश रक्षा की दुहाई देकर मोर्चे पर आ डटे।
1965 के भारत-पाक जंग में हमीद पंजाब के तरनतारन जिले के खेमकरण सेक्टर में तैनात थे। इस युद्ध में पाकिस्तान, अमेरिका से मिले पैटन टैंक का प्रयोग कर रहा था, जो बेहद खतरनाक था। 8 सितंबर 1965 की सुबह पाकिस्तान टैंक लेकर खेतों में घुस गया। वहीं मोर्चा संभालने के लिए हमीद अपने ड्राइवर के साथ खेतों में बैठ गए। जैसे ही पाकिस्तानी टैंक राइफल की रेंज में आए तो हमीद ने गोले दागते हुए 3 टैंक उड़ा दिए, लेकिन चौथे टैंक को निशाना बनाते समय वे दुश्मनों के हाथों शहीद हो गए।
Edited by: Ravindra Gupta