5 सितंबर जयंती विशेष : डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय
प्रतिवर्ष 5 सितंबर के दिन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) का जन्मदिन मनाया जाता है। वे एक महान शिक्षक थे, जिन्होंने अपने जीवन के 40 साल अध्यापन को दिए। सन् 1962 में पहली बार 5 सितंबर को शिक्षक दिवस (Teachers Day On 5th September) के रूप में मनाया गया था, तभी से आज तक निरंतर हम इस दिन को टीचर्स डे या शिक्षक दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं।
डॉ. राधाकृष्णन ने मात्र 12 वर्ष की उम्र में ही बाइबिल और विवेकानंद के दर्शन का अध्ययन कर लिया था। राधाकृष्णन आर्थिक रूप से बेहद कमजोर होने के बाद भी पढ़ाई-लिखाई में उनकी बेहद रुचि थी।
उन्होंने राजनीति में आने से पहले अपने जीवन के 40 वर्ष शिक्षा अध्यापन को दिए थे। राधाकृष्णन का मानना था कि बिना शिक्षा के इंसान कभी भी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता, इसलिए इंसान के जीवन में एक शिक्षक होना बहुत जरूरी है। यदि शिक्षक ठीक है तो वो अपने शिष्य को कभी फेल नहीं होने देगा, वो उसको हमेशा जीवन की प्रगति के पथ पर ले जाएगा।
विद्यार्थियों के जीवन में शिक्षकों के योगदान और भूमिका के महत्व के लिए वे जाने जाते हैं। वे एक भारतीय संस्कृति के ज्ञानी, दार्शनिक और वक्ता और आदर्श शिक्षक थे। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कई किताबें लिखीं, जिनमें 'धर्म और समाज, भारत और विश्व, गौतम बुद्ध: जीवन और दर्शन' उनकी प्रमुख किताबें हैं।
दुनिया भर के सौ से अधिक देशों में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को ने आधिकारिक रूप से 1994 में 'शिक्षक दिवस' मनाने के लिए 5 सितंबर का दिन चुना, क्योंकि इसी दिन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन होता है। इसलिए इसे अब 100 से ज्यादा देशों में यह दिन बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। कुछ देशों में इस दिन अवकाश रहता हैं।
5 सितंबर 1888 को उत्तर-पश्चिम में स्थित एक छोटे से कस्बे तिरूतनी में जन्मे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (S. Radhakrishnan Birth) सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए भी शिक्षा को ही कारगर मानते थे। आज भी शिक्षा के क्षेत्र में उनके कार्यों की वजह से ही उन्हें एक आदर्श शिक्षक के रूप में याद किया जाता है। वे शिक्षा को मानव व समाज का सबसे बड़ा आधार मानते थे। शैक्षिक जगत में उनका योगदान अविस्मरणीय व अतुलनीय रहा है।
शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही नहीं बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्रों को परिचित कराना तथा उन्हें सही मार्ग दिखाना भी होता है और राधाकृष्णन समाज के ऐसे ही शिल्पकार थे, जो बिना किसी मोह के समाज को तराशने का कार्य किया करते थे। महान दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक के रूप में देश का सर्वोच्च अलंकरण 'भारत रत्न' प्राप्त करने वाले डॉ. राधाकृष्णन का लंबी बीमारी के बाद 17 अप्रैल, 1975 को निधन हुआ था। Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Jivani