'भगवान का अस्तित्व ही पृथ्वी का सार है'
ईश्वर, ज्ञान, भक्ति, वैराग्य सनातन यानी हिन्दू धर्म में बहुत ही सुंदर व्याख्या की गई है। वसुधैव कुटुंबकम का संदेश तो सनातन संस्कृति ही देन है। गोसंरक्षण भी हमारी प्राचीन परंपरा रही है। गोवंश का न सिर्फ धार्मिक बल्कि आर्थिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्व है। वेबदुनिया के लिए विशेष रूप से सनातन धर्म की इन्हीं विशेषताओं पर विद्वान संतों ने अपने विचार रखे। आइए जानते हैं कि उनके वे विचार जो सर्वकालिक हैं, कालजयी हैं...
भागवत तत्वज्ञ चेतन शास्त्री जी महाराज ने कहा कि भगवान का अस्तित्व ही पृथ्वी का सार है। ईश्वर वेद, देवता, धर्म, ब्राह्मण, गाय, साधु-संत आदि को खुद का स्वरूप मानकर उनके संरक्षण की बात करते हैं। वे कहते हैं ये सभी मेरे ही स्वरूप हैं। (देखें वीडियो)
स्वामी हरदेवानंद जी कहते हैं कि गाय बचेगी तो ही पृथ्वी बचेगी और पृथ्वी बचेगी तो ही सृष्टि बचेगी। वे कहते हैं कि जन्म से लेकर मृत्यु तक होने वाले 24 संस्कारों में पंचगव्यों का उपयोग होता है। रमणरेती में 3000 गायों की देखरेख कर रहे हरदेवानंद जी कहते हैं कि गाय का दूध तो मां से ज्यादा उपयोगी है। मां तो साल छह महीने दूध पिलाती है, लेकिन गाय तो जीवन भर दूध पिलाती है। (देखें वीडियो)
कार्ष्णि स्वामी गोविंदाानंद जी कहते हैं कि पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी व्यक्ति हमारे संबंधी हैं, आत्मवत हैं। फिर वे चाहे किसी भी संप्रदाय के हों। समय, सिद्धांत और मान्यताओं के मान से लोगों के भिन्न मार्ग हो सकते हैं, लेकिन लक्ष्य सबका एक है। वह है ईश्वर की प्राप्ति। (देखें वीडियो)
स्वामी सुमेधानंद जी का मानना है कि ज्ञान, भक्ति और वैराग्य के समन्वय से ही मनुष्य को ऐश्वर्य, सुख और शांति की प्राप्ति होती है। मानव कल्याण के लिए तीनों का समन्वय बहुत जरूरी है। वैराग्य और भाक्ति के बिना ज्ञान भी शून्य है। (देखें वीडियो)