वैसे तो हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी (Guru Nanak jayanti) का प्रकाशोत्सव पर्व मनाया जाता है। लेकिन इतिहासकारों के अनुसार 15 अप्रैल 1469 के दिन नानक देव जी का जन्म हुआ था।
आइए जानते हैं गुरु नानक जयंती पर उनके बारे में 10 खास बातें-
1. गुरु नानक देव जी का जन्म या अवतरण संवत् 1469 में माता तृप्ता देवी और पिता कालू खत्री के घर श्री ननकाना साहिब में हुआ था। गुरु नानक देव जी ने ऐसे विकट समय में जन्म लिया था, जब भारत में कोई केंद्रीय संगठित शक्ति नहीं थी। विदेशी आक्रमणकारी भारत देश को लूटने में लगे थे। धर्म के नाम पर अंधविश्वास और कर्मकांड चारों तरफ फैले हुए थे। ऐसे समय में गुरु नानक सिख धर्म के एक महान दार्शनिक, विचारक साबित हुए।
2. नानक देव बचपन से ही अध्यात्म एवं भक्ति की तरफ आकर्षित थे। नानकदेव स्थानीय भाषा के साथ पारसी और अरबी भाषा में भी पारंगत थे। गुरु नानक देव ने इस बात भी पर जोर दिया कि ईश्वर सत्य है और मनुष्य को अच्छे कार्य करने चाहिए ताकि परमात्मा के दरबार में उसे लज्जित न होना पड़े।
3. बचपन से ही उन्होंने रूढ़िवादिता के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत कर दी थी, जब उन्हें 11 साल की उम्र में जनेऊ धारण करवाने की रीत का पालन किया जा रहा था। पंडित जी जब बालक नानक देव जी के गले में जनेऊ धारण करवाने लगे तब उन्होंने उनका हाथ रोका और कहने लगे- 'पंडित जी, जनेऊ पहनने से हम लोगों का दूसरा जन्म होता है, जिसको आप आध्यात्मिक जन्म कहते हैं तो जनेऊ भी किसी और किस्म का होना चाहिए, जो आत्मा को बांध सके। आप जो जनेऊ मुझे दे रहे हो वह तो कपास के धागे का है जो कि मैला हो जाएगा, टूट जाएगा, मरते समय शरीर के साथ चिता में जल जाएगा। फिर यह जनेऊ आत्मिक जन्म के लिए कैसे हुआ? और उन्होंने जनेऊ धारण नहीं किया।'
4. नानक जी को बचपन में चरवाहे का काम दिया गया था और पशुओं को चराते समय वे कई घंटों ध्यान में रहते थे। एक दिन उनके मवेशियों ने पड़ोसियों की फसल को बर्बाद कर दिया तो उनको उनके पिता ने उनको खूब डांटा। जब गांव का मुखिया राय बुल्लर वो फसल देखने गया तो फसल एकदम सही-सलामत थी। यही से उनके चमत्कार शुरू हो गए और इसके बाद वे संत बन गए।
5. सिखों के प्रथम गुरु, गुरुनानक देव सिख धर्म के प्रवर्तक हैं। उन्होंने अपने समय के भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, अंधविश्वासों, जर्जर रूढ़ियों और पाखंडों को दूर करते हुए प्रेम, सेवा, परिश्रम, परोपकार और भाई-चारे की दृढ़ नीव पर सिख धर्म की स्थापना की।
6. नानक देव जी के व्यक्तित्व में दार्शनिक, कवि, योगी, गृहस्थ, धर्म सुधारक, समाज सुधारक, देशभक्त और विश्वबंधु के समस्त गुण मिलते हैं। गुरु नानक जी ने 7,500 पंक्तियों की एक कविता लिखी थी जिसे बाद में गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया गया।
7. नानक जी कहते थे कि कि साधु-संगत और गुरबाणी का आसरा लेना ही जिंदगी का ठीक रास्ता है। उनका कहना था कि ईश्वर मनुष्य के हृदय में बसता है, अगर हृदय में निर्दयता, नफरत, निंदा, क्रोध आदि विकार हैं तो ऐसे मैले हृदय में परमात्मा बैठने के लिए तैयार नहीं हो सकता है। अत: इन सबसे दूर रहकर परमात्मा का नाम ही हृदय में बसाया जाना चाहिए। इस तरह उन्होंने लोगों को सदा ही नेक राह पर चलने की समझाइश दी।
8. गुरु नानक देव आत्मा, ईश्वर के सच्चे प्रतिनिधि, महापुरुष व महान धर्म प्रवर्तक थे। जब समाज में पाखंड, अंधविश्वास व कई असामाजिक कुरीतियां सिर उठा रही थीं, हर तरफ असमानता, छुआछूत व अराजकता का वातावरण जोरों पर था, ऐसे नाजुक समय में गुरु नानक देव ने आध्यात्मिक चेतना जाग्रत करके समाज को मुख्य धारा में लाने के लिए कार्य किया।
9. सिख गुरुओं ने साम्राज्यवादी अवधारणा नहीं बनाई, बल्कि उन्होंने संस्कृति, धार्मिक एवं आध्यात्मिक सामंजस्य के माध्यम से मानवतावादी संसार को महत्व दिया। उन्होंने सुख प्राप्त करने तथा ध्यान करते हुए प्रभु की प्राप्ति करने की बात कही है। गुरु नानक देव जी ने उपदेशों को अपने जीवन में अमल किया और चारों ओर धर्म का प्रचार कर स्वयं एक आदर्श बने। सामाजिक सद्भाव की मिसाल कायम की और मानवता का सच्चा संदेश दिया।
10. गुरु नानक देव जी की मृत्यु 22 सितंबर 1539 ईस्वी को हुई थी। अपनी पूरी जिंदगी मानव समाज के कल्याण में लगाने वाले गुरु नानक देव जी ने अपनी मृत्यु से पहले अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जो बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए।