Shri Krishna 20 Sept Episode 141 : युधिष्ठिर जब द्युतक्रीड़ा में हार जाता है द्रौपदी को
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 20 सितंबर के 141वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 141 ) में शकुनि की चाल के तहत दुर्योधन और पांडवों के बीच द्युतक्रीड़ा होती है। युधिष्ठिर पहले अपना राज्य खो देते हैं, फिर अपने भाइयों को दांव पर लगा देते हैं और फिर भाइयों को दासता से मुक्त कराने के लिए युधिष्ठिर खुद को दांव पर लगा देते हैं परंतु वह भी हार जाते हैं और फिर वे अपना मुकुट उठाकर दुर्योधन के समक्ष रख देते हैं।
श्रीकृष्ण रुक्मिणी से कहते हैं कि देवी पांडव अधर्मी के हाथों भ्रष्ट हो गए हैं। श्रीकृष्ण दुर्योधन शकुनि के अधर्म को बताते हैं। वे द्युतक्रीड़ा के बुरे प्रभाव और कलयुग के बारे में बताते हैं।
शकुनि कहता है- क्षमा करें धर्मराज अब तो आप अपना सबकुछ हार गए हैं, अपना राज भी और ताज भी। अब तो आप अपने भाइयों के साथ ही दुर्योधन के दास बन गए हैं दास। युधिष्ठिर कहता है- हां मामाश्री अब मैं कुछ भी दांव पर नहीं लगा सकता।
तब शकुनि कहता है- नहीं धर्मराज नहीं, अब भी आपके पास एक हीरा बाकी है और वह है द्रौपदी। दुर्योधन, शकुनि और दु:शासन युधिष्ठिर को इसके लिए उकसाते हैं। तब युधिष्ठिर द्रौपदी को भी दांव पर लगा देते हैं। तब दुर्योधन कहता है- मामाश्री बारह। फिर मामाश्री पासे फेंकते हैं तो बारह ही आता है। सभी चौंक जाते हैं और दुर्योधन खुश होकर कहता है- मामाश्री हम द्रौपदी को भी जीत गए। फिर दुर्योधन प्रतिहारी को कहता है- जाओ हमारी सर्वश्रेष्ठ दासी को यहां आने का आदेश दो।
प्रतिहारी यह संदेश द्रौपदी को देता है कि आपको द्युत सभा में आने का आदेश है। क्षाम करें महारानी इस समय आप द्युत् में हरी हुई एक वस्तु हैं। फिर प्रतिहारी द्युदक्रीड़ा की सारी घटना बताता है। द्रौपदी हैरान हो जाती है और कहती है- जाओ दुर्योधन से कहो की मैं नहीं आ सकती।
दुर्योधन प्रतिहारी का संदेश सुनने के बाद वह दु:शासन से कहता है- जाओ और द्रौपदी को तुरंत ले आओ। दु:शासन द्रौपदी को बाल पकड़कर खींच कर ले आता है। यह देखकर पांचों पांडवों क्रोधवश कसमसाकर नजरें झुकाकर बैठे रहते हैं।
यह देखकर दुर्योधन जोर-जोर से हंसता है। द्रौपदी पांचों पांडवों की ओर देखती है सभी की नजरें झुकी रहती है। भीम भड़ककर दुर्योधन को कहता है- मेरा बस चले तो इसी समय मैं तेरा वध कर देता। दुर्योधन कहता है- बहुत जबान चलाता है। मेरी आज्ञा के बगैर तू हिल भी नहीं सकता चल बैठ।
फिर दुर्योधन द्रौपदी की ओर देखकर कहकर कहता है- हे द्रौपदी आओ, आओ द्रौपदी और आकर हमारी गोद में बैठ जाओ। यह सुनकर भीम क्रोधित होकर कहता है- दुर्योधन तुने मेरी पत्नी का अपमान किया है। इस सभा में मैं प्रतिज्ञा लेता हूं कि तुने जिस जांघ पर बैठने का आदेश दिया है उन जांघाओं को मैं तोड़कर रख दूंगा और सुन ले दु:शासन जिन हाथों से तुने द्रौपदी के बाल पकड़े हैं उन बालों को मैं तेरे रक्त से धोऊंगा। जय श्रीकृष्णा।