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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : सोमवार, 10 अगस्त 2020 (19:11 IST)

श्रीकृष्ण के बचपन से जुड़े 15 प्रमुख रोचक किस्से

Sri Krishna Childhood Life | श्रीकृष्ण के बचपन से जुड़े 15 प्रमुख रोचक किस्से
भगवान श्रीकृष्ण को हिन्दू धर्म में विष्णु को पूर्णावतार माना जाता है। वे 16 कलाओं से युक्त 64 विद्याओं में परंगत थे। वे प्रेम और युद्ध दोनों में ही कुशल थे। उनके बचपन का नाम कन्हैया था जिन्हें प्यार से लोग कान्हा कहते थे। आओ जानते हैं उनके बचपन के 15 घटनाक्रमों को। उनका कृष्ण नाम ऋषि गर्ग ने रखा था।
 
1. श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारावास में रात्रि को हुआ था। कारावास ने निकालकर उनके पिता रातोरात उन्हें गोकुल में नंदराय के यहां छोड़ आए थे।
 
2. गोकुल और वृंदावन में उन्होंने अपना संपूर्ण बचपन गुजारा। इस दौरान उन्होंने कंस के द्वारा उन्हें मारने के लिए भेजे गए पूजना, कागासुर, श्रीधर तांत्रिक, उत्कच, बकासुर, अघासुर, तृणासुर आदि का अपनी माया से वध कर दिया था।
 
3. गोकुल और वृंदावन रहते हुए ही उन्होंने अपनी कई लीलाएं रची। माता यशोदा से जब गोपियों ने ‍उनके मिट्टी खाने की शिकायत की तो यशोदा ने डांटते हुए मुंह खोलने के लिए फिर जब उन्होंने मुंह खोला तो यशोदा को मुंह में ब्रह्मांड नजर आने लगा। यह लीला देखकर वह भयभित हो गई थी।
 
 
4. बचपन में ही एक बार उनको उनकी माता यशोदा ने उन्हें ओखल से बांध दिया था तब उन्होंने उनके जाने के बाद उस ओखल को खींच कर आंगन में लगे दो वृक्षों को उखाड़ दिया था। उनमें से दो देवता निकलकर बालकृष्ण को प्रणाम करके वे कहते हैं कि हम दोनों यक्ष कुबेर के पुत्र नंद कुबेर और मणि ग्रीव हैं। श्राप के कारण वृक्ष बन गए थे आपकी कृपा से हमारे उद्धार हुआ।
 
 
5. बचपन में उन्हें माखन के लाचल में खूब नचाती थी। कहते हैं कि कुछ ग्वालिनें अपने पिछले जन्म में बड़े बड़े सिद्ध और तपस्वी थे। जिन्होंने घोर तपस्या करके श्रीहिर के साथ ममता का रिश्ता मांगा था। यही कारण था कि वे सभी ग्वालिनें उन्हें माता जैसा प्रेम देती थीं और उनके साथ नृत्य करती थीं। 
 
6. श्रीकृष्ण के बचपन के कई मित्र थे जैसे मनसुखा, मधुमंगल, श्रीदामा, सुदामा, उद्धव, सुबाहु, सुबल, भद्र, सुभद्र, मणिभद्र, भोज, तोककृष्ण, वरूथप, मधुकंड, विशाल, रसाल, मकरन्‍द, सदानन्द, चन्द्रहास, बकुल, शारद, बुद्धिप्रकाश आदि। बचपन में यह सभी गोकुल और वृंदावन की गलियों में माखन चोरते और उधम मचाते थे। बाल सखियों में चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा आदि के नाम लिए जाते हैं। 
 
7. श्रीकृष्ण को एक बार माता यशोदा ग्वालनों की शिकायत पर उन्हें एक अंधेरी कोठरी में कैद के लिए ले जाती है तो वहां श्रीकृष्ण की लीला से एक भयंकर नाग निकल आता है। तब यशोदा मैया कहती है लल्ला बड़ा भयंकर सांप है रे, तू जा भाग जा यहां से। तब कान्हा कहते हैं कि नहीं, मैं सांप के सामने अपनी मैया को छोड़कर कैसे भाग जाऊं? यह सुनकर मैया भावुक हो जाती है। फिर श्रीकृष्ण के संकेत से यह सांफ वहां से उन्हें नमस्कार करके चला जाता है।
 
 
8. धनवा नाम का एक बंसी बेचने वाला श्रीकृष्ण को बांसुरी देता है तो वे उस पर पहली बार मधुर धुन छोड़ते हैं जिससे वह बंसी बेचने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है। उसी समय से श्रीकृष्ण बांसुरी बजने वाले बन जाते हैं। उनकी बांसुरी की धुन पर गोपिकाएं और पूरा गोकुल बेसुध हो जाता था।
 
9. श्रीकृष्ण का राधा से मिलन उस वक्त होता है जबकि राधा के पिता वृषभानुजी बरसाने से उनके घर फाग उत्सव का आयोजन करने के लिए विचार-विमर्ष करने आते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि राधा ने श्रीकृष्ण को पहली बार तब देखा था जबकि वह ओखल से बंधे थे। कुछ लोगों के अनुसार श्रीकृष्ण और राधा का मिलन गोकुल और बरसाना के बीच हुए फाग उत्सव के दौरान हुआ था और दोनों में प्रेम हो गया था।
 
 
10. कहते हैं कि एक बार श्रीकृष्ण ने एक फल बेचने वाली से उनसे सारे फल ले लिए थे और बदले में मुठ्ठीभर धान दे दिया था। फलवाली इससे ही संतुष्ट होकर चली गई था परंतु जब उसने घर जाकर अपनी पोटली में बंधे धान को खोला तो उसमें से हीरे मोती निकले थे।
 
11. कहते हैं कि एक बार अधिकमास में कात्यायिनी मां का व्रत पूजन करने के लिए गांव की कुछ ग्वालिनें गांव के बाहर स्थित यमुना तट के पास के मंदिर में जाती हैं और यमुना में निर्वस्त्र होकर स्नान करती है तो उस दौरान श्रीकृष्ण अपने सखाओं द्वारा वहां पहुंचकर उनके तट पर रखे सभी वस्त्र हरण करके एक वृक्ष पर चढ़ जाते हैं। जब ग्वालनों को ये पता चलता है तो वे वृक्ष पर बैठे श्रीकृष्ण से अपने वस्त्र देने की मांग करती है इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि तुमने यमुना में इस तरह निर्वस्त्र उतरकर उनका अपमान किया है। अब तो तुम्हारे पतियों के सामने ही यह वस्त्र लौटाएं जाएंगे। तुम्हें इस तरह स्नान नहीं करना चाहिए था। तब उनका मित्र मनसुखा कहता है कि वचन दो कि फिर कभी नदी में निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करोगी और हमारी शिकायतें हमारी माताओं से नहीं करोगी। तब सभी वचन देती हैं। फिर श्रीकृष्ण अपने सखाओं सहित सभी वस्त्र देकर चले जाते हैं।
 
 
12.एक बार श्रीकृष्ण की लीला से गेंद यमुना के कालिया देह नामक स्थान पर अंदर पानी में डूब जाती है तब वे गेंद लेने के लिए पानी में कूदते हैं तो एक व्यक्ति बताता है कि वहां मत जाओ वहां कालिया नाग रहता है जो तुम्हें भस्म कर देगा, परंतु श्रीकृष्ण नहीं मानते हैं और नदी में कूद जाते हैं और भीतर कालिया नाग का दमन करके उसे यमुनाजी के रास्ते समुद्र के मध्य रमणक द्वीप पर जाने का आदेश देकर अपनी गेंद ले आते हैं।
 
 
13. श्रीकृष्ण ने बचपन में ही गोकुल और वृंदावन में इंद्रदेव की पूजा और उसका इंद्रोत्सव यह कहकर बंद करवा दिया थी कि यह अहंकारी देव है और यह कोई न्यायकर्ता नहीं है। उसी दौरान कृष्ण और बलराम दोनों का तुलादान होता है। तब भगवान श्रीकृष्ण को तराजू के एक पलड़े में बैठा दिया जाता है। दूसरे में हीरे जवाहरात रख दिए जाते हैं लेकिन श्रीकृष्ण के वजन से पलड़ा उनका ही भारी रहता है। तब नंदरायजी मैया यशोदा की ओर देखने लगते हैं। फिर वे कहते हैं एक थैला और लाओ। राधा और श्रीकृष्ण मुस्कुराते रहते हैं। कई थैले रखने के बाद भी जब कुछ नहीं होता है तो फिर धीरे से दाऊ राधा के पास जाकर उन्हें प्रणाम करते हैं। राधा समझ जाती है। फिर राधा उन्हें अपने बालों में लगी वेणी के फूल तोड़कर दे देती हैं। दाऊ वे फूल लेकर तराजू के दूसरे पलड़े पर रख देते हैं। पलड़ा एकदम से झुककर नीचे जमीन से लग जाता है और श्रीकृष्ण ऊपर हो जाते हैं। सभी प्रसन्न होकर मुस्कुराने लगते हैं।
 
 
14. इंद्रोत्सव बंद होने से इंद्रदेव कुपित हो जाते हैं तो वे सावर्तक से कहकर गोकुल और वृंदावन में जल प्रलय करवा देते हैं। ऐसे में श्रीकृष्ण सभी ग्रामवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत अपनी अंगुली पर उठा लेते हैं और सभी गांव वालों को उसके भीतर आने का कहते हैं। यह देखकर इंद्र और सभी देवता दंग रह जाते हैं अंत में इंद्र हारकर उनकी शरण में आ जाता है। तभी से गोवर्धन पूजा का प्रारंभ भी हो जाता है।
 
 
15. इस तरह श्रीकृष्ण अपने बचपन में कई तरह की लीलाएं करते हैं अंत में मथुरा में जाने से पूर्व श्रीकृष्ण राधा और उनकी सखियों संग अंतिम महारास करते हैं। इस महारास की चर्चा पुराणों के अलावा भक्तिकाल के कई कवियों ने की है। मथुरा जाने के बाद वे पहले कुब्जा का उद्धार करते हैं फिर शिव का धनुष तोड़ते हैं और अंत में कंस का वध करते हैं। बाद में वे सांदिपनी ऋषि के आश्रम में पढ़ने के लिए चले जाते हैं। कंस वध के बाद उनकी बाल लीलाएं समाप्त हो जाती है। जय श्रीकृष्णा।