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Last Modified: शुक्रवार, 14 जुलाई 2023 (18:59 IST)

Shivratri 2023 : शिवरात्रि में रात्रि में जागरण करें या नहीं?

Shivratri 2023 : शिवरात्रि में रात्रि में जागरण करें या नहीं? - Shravan krishna paksha chaturdashi 2023
Sawan shivratri 2023 : श्रावण मास चल रहा है। 15 जुलाई को श्रावण मास के कृष्‍ण पक्ष की चतुर्दशी रहेगी जिसे मासिक शिवरात्रि कहते हैं। आपने कभी नहीं किया होगा शिवरात्रि पर जागरण। हालांकि हरतालिका तीज पर महिलाएं रातभर जागरण करके शिवजी की पूजा करती हैं, परंतु शिवरात्रि के दिन जागरण करें या नहीं? जागरण करें तो क्यों करें?
 
रात्रि जागरण के संदर्भ में श्रीकृष्ण के कहा था, 'या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।' 
अर्थात जब संपूर्ण प्राणी अचेतन होकर नींद की गोद में सो जाते हैं तो संयमी, जिसने उपवासादि द्वारा इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया हो, जागकर अपने कार्यों को पूर्ण करता है। कारण साधना सिद्धि के लिए जिस एकांत और शांत वातावरण की आवश्यकता होती है, वह रात्रि से ज्यादा बेहतर और क्या हो सकती है।
 
भगवान शंकर को कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि प्रिय है। शिवरात्रि में रात्रि शब्द इसीलिए जुड़ा है ताकि लोग उनकी रात्रि में ही पूजा करें। भगवान शिव संहार शक्ति और तमोगुण के अधिष्ठाता हैं, अतः तमोमयी रात्रि से उनका स्नेह स्वाभाविक है। रात्रि संहारकाल की प्रतिनिधि है। उसका आगमन होते ही सर्वप्रथम प्रकाश का संहार, जीवों की दैनिक कर्म-चेष्टाओं का संहार और अंत में निद्रा द्वारा चेतनता का संहार होकर संपूर्ण विश्व संहारिणी रात्रि की गोद में अचेत होकर गिर जाता है। ऐसी दशा में प्राकृतिक दृष्टि से शिव का रात्रि प्रिय होना सहज ही हृदयंगम हो जाता है। यही कारण है कि भगवान शिव की आराधना न केवल इस रात्रि में अपितु सदैव प्रदोष (रात्रि प्रारंभ होने पर) समय में भी की जाती है। 
 
यदि आप किसी विशेष प्रयोजन या सिद्धि हेतु शिवजी की पूजा कर रहे हैं तो रात्रि में निशिथ काल में उनकी पूजा जरूर करें और रातभर जागकर उनके मंत्र का जप करें या भजन करें। इससे शिवजी बहुत प्रसन्न होंगे। 
रात के भगवान शिव :- शैव पंथ में रात्रियों का महत्व अधिक है। हिंदू धर्मग्रंथानुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि की रात्रि से संबंधित कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।
 
विवाह का समय :- माना जाता है कि इसी रात्रि को भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। तत्ववेत्ताओं द्वारा इसे जीव और शिव के मिलन की रात्रि कहा जाता है। इसीलिए इस रात्रि को महिलाएँ अच्छे पति, वैवाहिक सुख और पति की लंबी आयु की कामना से भी मनाती हैं।
 
प्रलय :- कुछ का मानना है कि शिव ने तांडव नृत्य कर सृष्टि को भस्म कर दिया था तब सृष्टि की जगह बहुत काल तक यही महारात्रि छाई रही। देवी पार्वती ने इसी रात्रि को शिव की पूजा कर उनसे पुन: सृष्टि रचना की प्रार्थना की इसीलिए इसे शिव की पूजा की रात्रि कहा जाता है। फिर इसी रात्रि को भगवान शंकर ने सृष्टि उत्पत्ति की इच्छा से स्वयं को ज्योतिर्लिंग में परिवर्तित किया।
 
रुद्र रूप :- यह भी माना जाता है कि इसी रात्रि को भगवान शंकर का रुद्र के रूप में ब्रह्मा से अवतरण हुआ था। विष्णु से ब्रह्मा और ब्रह्मा से रुद्र की उत्पत्ति मानी जाती है।
 
समुद्र मंथन :- समुद्र मंथन के दौरान जब समुद्र से विष (हलाहल) उत्पन्न हुआ तो भगवान शंकर ने उक्त विष को पीकर अपने कंठ में सजा लिया इसीलिए उन्हें नीलकंठ कहा जाता है। विषपान की इस रात्रि की याद में भी महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
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