Garud puran ke upay : 14 अक्टूबर 2023 शनिवार के दिन श्राद्ध पक्ष के समापन का अंतिम दिवस सर्वपितृ अमावस्या का पर्व मनाया जाएगा। कहते हैं कि जो नहीं आ पाते हैं या जिन्हें हम नहीं जानते हैं उन भूले-बिसरे पितरों का भी इसी दिन श्राद्ध करते हैं। सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। अगर कोई श्राद्ध तिथि में किसी कारण से श्राद्ध न कर पाया हो या फिर श्राद्ध की तिथि मालूम न हो तो सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या पर श्राद्ध किया जा सकता है। मान्यता है कि इस दिन सभी पितर आपके द्वार पर उपस्थित हो जाते हैं। आओ जानते हैं गरुड़ पुराण के अनुसार इस दिन कौन से 5 महत्वपूर्ण कार्य करें कि हमारे पूर्वज प्रसन्न हों।
1. पंचबलि कर्म : इस श्राद्ध में पंचबलि अर्थात गोबलि, श्वानबलि, काकबलि, देवादिबलि और पिपलिकादि बलि कर्म जरूर करें। अर्थात इन सभी के लिए विशेष मंत्र बोलते हुए भोजन सामग्री निकालकर उन्हें ग्रहण कराई जाती है। अंत में चींटियों के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालने के बाद ही भोजन के लिए थाली अथवा पत्ते पर ब्राह्मण हेतु भोजन परोसा जाए। साथ ही जमई, भांजे, मामा, नाती और कुल खानदान के सभी लोगों को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा जरूर दें।
2. तर्पण और पिंडदान : सर्वपितृ अवमावस्या पर तर्पण और पिंडदान का खासा महत्व है। सामान्य विधि के अनुसार पिंडदान में चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें पितरों को अर्पित किया जाता है। पिंडदान के साथ ही जल में काले तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण किया जाता है। पिंड बनाने के बाद हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् व जल लेकर संकल्प करें। इसके बाद इस मंत्र को पढ़े. “ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।।'
इस दिन शास्त्रों में मृत्यु के बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्म विपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है।
3. गीता या गरूढ़ पुराण का पाठ : गरुढ़ पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है। इसीलिए यह पुराण मृतक को सुनाया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन गरुढ़ पुराण के कुछ खास अध्यायों का पाठ करें या गीता का पाठ जरूर करें या घर में ही करवाएं। आप चाहे तो संपूर्ण गीता का पाठ करें या सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए और उन्हें मुक्ति प्रदान का मार्ग दिखाने के लिए गीता के दूसरे और सातवें अध्याय का पाठ करने का विधान भी है।
4. दान कर्म : इस दिन गरीबों को यथाशक्ति दान देना चाहिए। अनेकों दानों का उल्लेख मिलता है। जैसे गौ दान, छाता दान, जुते-चप्पल दान, पलंग दान, कंबल दान, सिरहाना दान, दर्पण कंघा दान, टोपी दान, औषध दान, भूमिदान, भवन दान, धान्य दान, तिलदान, वस्त्र दान, स्वर्ण दान, घृत दान, लवण दान, गुड़ दान, रजन दान, अन्नदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान। इनमें से मुख्य है- 1.अन्न दान, 2.वस्त्र दान, 3.औषध दान, 4.ज्ञान दान एवं 5.अभयदान। कुछ दान ऐसे भी होते हैं जो किसी व्यक्ति विशेष को नहीं दिए जाते हैं। जैसे दीपदान, छायादान, श्रमदान आदि।
5. सोलह ब्राह्मणों को भोजन कराना : सर्वपितृ अमावस्या पर पंचबलिक कर्म के साथ ही बटुक ब्राह्मण भोज कराया जाता है। बटुक यानी वे बच्चे जो वेद अध्ययन कर रहे हैं या ब्राह्मणों के छोटे बच्चों को भोजन कराया जाता है। इस दिन सभी को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण का निर्वसनी होना जरूरी है और ब्राह्मण नहीं हो तो ब्राह्मण नहीं हो तो अपने ही रिश्तों के निर्वसनी और शाकाहार लोगों को भोजन कराएं। ब्राह्मण नहीं मिले तो भांजा, जमाई या मित्र को भोजन कराएं।