शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी व्रत मनुष्य को चेचक के रोगों से बचाने का प्राचीन काल से चला आ रहा व्रत है। आयुर्वेद की भाषा में चेचक का ही नाम शीतला कहा गया है।
Smallpox, चेचक (शीतला, बड़ी माता, स्मॉल पॉक्स, मसूरिका आदि नामों से जाना जाने वाला यह एक विषाणु जनित रोग है। इसके निवारण के लिए शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की उपासना में शारीरिक शुद्धता, मानसिक पवित्रता और खान-पान की सावधानियों का संदेश मिलता है।
आइए जानें शीतला माता का स्वरूप, रोगी क्या उपाय करें एवं व्रत का फल -
शीतला माता का स्वरूप
शीतला स्तोत्र में शीतला का जो स्वरूप बताया गया है, वह शीतला के रोगी के लिए अत्यंत हितकारी है-
वन्देऽहं शीतलां देवीं रासमस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोवेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्॥
- अर्थात शीतला दिगम्बरा हैं, गर्दभ पर आरूढ़ रहती हैं। सूप (छाज), झाडू और नीम के पत्तों से अलंकृत होती हैं तथा हाथ में शीतल जल का कलश रखती हैं।
शीतला के रोगी क्या न करें-
* इस रोग का प्रकोप जिस घर में होता है, वहां अन्नादि की सफाई व झाड़ू लगाना वर्जित है।
* रोगी को गरम वस्तुओं तथा खाद्य पदार्थों से दूर रखें।
* रोगी को तले खाद्य पदार्थ न दें।
* रोगी को नमक भी नहीं देना चाहिए।
शीतला रोग का उपाय-
* वास्तव में शीतला के रोगी की देह में दाहयुक्त फोड़े हो जाते हैं, जिसके कारण उसे नग्नप्राय रहना पड़ता है। गधे की लीद की गंध से फोड़ों की पीड़ा में आराम मिलता है।
* सूप व झाड़ू रोगी के सिरहाने रखते हैं।
* नीम के पत्तों के कारण रोगी के फोड़े में सड़न पैदा नहीं होती।
शीतलाष्टमी व्रत का फल-
इस व्रत को करने से व्रती के कुल में दाह ज्वर, पीत ज्वर, विस्फोटक दुर्गंधयुक्त फोड़े, समस्त नेत्र रोग, शीतला की फुंसियों के चिह्न और शीतलाजनित सर्वरोग दूर होते हैं। इस व्रत के करने से शीतला माता सदैव संतुष्ट रहती हैं।