things about Kalyug: पुराणों के अनुसार 3,114 ईसा पूर्व कलियुग की शुरुआत हुई थी। कलयुग के संबंध में हमें महाभारत और पुराणों के अलावा और भी अन्य कई ग्रंथों में पढ़ने को मिलता है। लोगों में यह मान्यता है कि कलयुग लाखों वर्षों का है और अभी चार चरणों में से इसका प्रथम चरण ही चल रहा है। यह भी कि कलयुग में भयंकर अत्याचार होंगे हर कोई अधार्मिक हो जाएगा। अंत में श्रीहरि विष्णु के 10वें अवतार होंगे जो सबकुछ ठीक कर देंगे। इसमें कितनी सचाई है?
1. कब प्रारंभ हुआ था कलयुग- When did Kaliyuga start?
इस युग का प्रारंभ आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुआ था। श्रीमद्भागवत पुराण अनुसार शुकदेवजी राजा परीक्षित से कहते हैं जिस समय सप्तर्षि मघा नक्षत्र में विचरण कर रहे थे तब कलिकाल का प्रारंभ हुआ था। आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत के युद्ध 3136 ईसा पूर्व को हुआ था। महाभारत युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी तभी से कलियुग का आरंभ माना जाता है। भागवत पुराण ने अनुसार श्रीकृष्ण के देह छोड़ने के बाद 3102 ईसा पूर्व कलिकाल का प्रारंभ हुआ था। पुराणों के अनुसार यदि हम सही गणना करें तो 3,114 ईसा पूर्व कलियुग की शुरुआत हुई थी।
2. कौन सा कलयुग चल रहा है- Which Kaliyuga is going on?
पुराणों के अनुसार 27वां चतुर्युगी (अर्थात चार युगों के 27 चक्र) बीत चुका है। और, वर्तमान में यह वराह काल 28वें चतुर्युगी का कृतयुग (सतुयग) भी बीत चुका है और यह कलियुग चल रहा है। यदि यह 28वां कलुग चल रहा है या बीत गया है। यह कलियुग ब्रह्मा के द्वितीय परार्ध में वराह कल्प के श्वेतवराह नाम के कल्प में और 7वें वैवस्वत मनु के मन्वंतर में चल रहा है।
3. कलयुग की आयु कितनी है- what is the age of kaliyuga?
लाखों वर्षं का एक युग : कलयुग की आयु देवताओं की वर्ष गणना से 1200 वर्ष की अर्थात मनुष्य की गणना अनुसार 4 लाख 32 हजार वर्ष की मानी जाती है। युग के बारे में कहा जाता है कि 1 युग लाखों वर्ष का होता है, जैसा कि सतयुग लगभग 17 लाख 28 हजार वर्ष, त्रेतायुग 12 लाख 96 हजार वर्ष, द्वापर युग 8 लाख 64 हजार वर्ष और कलियुग 4 लाख 32 हजार वर्ष का बताया गया है।
1250 वर्ष का एक युग : एक पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रत्येक युग का समय 1250 वर्ष का माना गया है। इस मान से चारों युग की एक चक्र 5 हजार वर्षों में पूर्ण हो जाता है।
हजारों वर्षों का एक युग : हालांकि स्व.श्री परमहंस राजनारायणजी षट्शास्त्री के शोधानुसार (जनवरी 1942 के अखंड ज्योति के अंक में प्रकाशित) 'दिवि भवं दिव्यनु' अर्थात दिवि में प्रकट होता है वह दिव्य है। दिनों में सूर्य प्रकट होता है। अत: दिव्य केवल सूर्य को ही कहते हैं। दिवि को धु कहते हैं। धु दिन का नाम है। दिव्य वर्षों का देवताओं के वर्ष से नहीं सूर्य के वर्ष से संबंध है। चारों युग मनुष्यों के हैं इनके बराबर देवताओं का एक युग होता है। कई विद्वानों की टिप्पणी पढ़ने के बाद यह सिद्ध हुआ है कि वास्तव में सतयुग के 1200 वर्ष, त्रेता के 2400 वर्ष, द्वापर के 360 वर्ष और कलयुग के 4800 वर्ष होते हैं।
5 वर्ष का एक युग : वर्ष को 'संवत्सर' कहा गया है। 60 संवत्सर होते हैं। सभी का नाम अलग अलग है। 5 वर्ष का 1 युग होता है। संवत्सर, परिवत्सर, इद्वत्सर, अनुवत्सर और युगवत्सर ये युगात्मक 5 वर्ष कहे जाते हैं। बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि 60 वर्षों में 12 युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में 5-5 वत्सर होते हैं। इस तरह 12 युगों के कई चक्र हो चुकें हैं।
वैदिक धारणा : ऋग्वेद के अन्य 2 मंत्रों से 'युग' शब्द का अर्थ काल और अहोरात्र भी सिद्ध होता है। 5वें मंडल के 76वें सूक्त के तीसरे मंत्र में 'नहुषा युगा मन्हारजांसि दीयथ:' पद में युग शब्द का अर्थ 'युगोपलक्षितान् कालान् प्रसरादिसवनान् अहोरात्रादिकालान् वा' किया गया है। इससे स्पष्ट है कि उदय काल में युग शब्द का अन्य अर्थ अहोरात्र विशिष्ट काल भी लिया जाता था। ऋग्वेद के छठे मंडल के नौवें सूक्त के चौथे मंत्र में 'युगे-युगे विदध्यं' पद में युगे-युगे शब्द का अर्थ 'काले-काले' किया गया है। वाजसनेयी संहिता के 12वें अध्याय की 11वीं कंडिका में 'दैव्यं मानुषा युगा' ऐसा पद आया है। इससे सिद्ध होता है कि उस काल में देव युग और मनुष्य युग ये 2 युग प्रचलित थे। तैतिरीय संहिता के 'या जाता ओ वधयो देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा' मंत्र से देव युग की सिद्धि होती है।
ज्योतिष मान्यता : धरती अपनी धूरी पर 23 घंटे 56 मिनट और 4 सेकंड अर्थात 60 घटी में 1,610 प्रति किलोमीटर की रफ्तार से घूमकर अपना चक्कर पूर्ण करती है। यही धरती अपने अक्ष पर रहकर सौर मास के अनुसार 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट और 46 सेकंड में सूर्य की परिक्रमा पूर्ण कर लेती है, जबकि चन्द्रमास के अनुसार 354 दिनों में सूर्य का 1 चक्कर लगा लेती है। अब सौरमंडल में तो राशियां और नक्षत्र भी होते हैं। जिस तरह धरती सूर्य का चक्कर लगाती है उसी तरह वह राशि मंडल का चक्कर भी लगाती है। धरती को राशि मंडल की पूरी परिक्रमा करने या चक्कर लगाने में कुल 25,920 साल का समय लगता है। इस तरह धरती का एक भोगकाल या युग पूर्ण होता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि लगभग 26,000 वर्ष बाद हमेशा ही उत्तर में दिखाई देने वाला ध्रुव तारा अपनी दिशा बदलकर पुन: उत्तर में दिखाई देने लगता है।
4. कब समाप्त होगा कलयुग- When will Kaliyuga end?
श्रीमद्भागवत पुराण के द्वादश स्कंथ के अध्याय दो और श्लोक 24 में बताया गया है कि कलयुग कब समाप्त होगा।
यदा चन्द्रश्च सूर्यश्च तथा तिष्यबृहस्पती ।
एकराशौ समेष्यन्ति भविष्यति तदा कृतम् ॥-भागवत पुराण 12.2.24
अर्थात : जब चंद्रमा, सूर्य और बृहस्पति कर्कट नक्षत्र में एक साथ होते हैं, और तीनों एक साथ चंद्र भवन पुष्य में प्रवेश करते हैं- ठीक उसी क्षण सत्य, या कृत का युग शुरू होगा। (यानी कलयुग का अंत होकर सतयुग प्रारंभ होगा)
महाभारत, वन पर्व अध्याय 190, श्लोक 88, 89, 90 और 91 श्लोक में भी यही कहा गया है। जब तिष्य में चंद्र, सूर्य, और बृहस्पति एक राशि पर समान अंशों में आवेंगे तो सतयुग प्रारंभ होगा। उपरोक्त संदर्भ के अनुसार तिष्य शब्द के दो अर्थ है। पौष मास या पुष्य नक्षत्र। पौष का अर्थ लेते हैं तो सन् 1942 में सतयुग प्रारंभ हो चुका है, क्योंकि ग्रह तारों की ऐसी स्थिति तभी बनी थी। पुष्य का अर्थ लेते हैं तो यह योग कृष्ण अमावस्या संवत 2000 में बना था। तब कलयुग समाप्त होकर सतयुग का प्रारंभ हो गया था। यानी ठीक 4800 वर्ष के बाद यह घटना घटी।
5. कल्कि अवतार होंगे या हो चुके हैं- Kalki Avatar will be or has been incarnated?
ऐसी मान्यता है कि कलयुग के अंत में कल्कि अवतार होंगे जो सफेद घोड़े पर बैठकर सभी पापियों का संहार करेंगे। हालांकि कई लोगों का यह मानना है कि यह अवतार हो चुका है और अब यह सतयुग चल रहा है। हालांकि कल्कि पुराण के अनुसार कलयुग में भगवान विष्णु कल्कि रूप में अवतार लेंगे। कल्कि अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। पुराणों के अनुसार संभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नामक तपस्वी ब्राह्मण के घर भगवान कल्कि पुत्र रूप में जन्म लेंगे। कल्कि देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुन:स्थापना करेंगे। संभल नामक गांव भारत में कई प्रदेशों में है। कई लोग इसे उत्तर प्रदेश का गांव मानते हैं जबकि ओड़िसा में भी एक संभल नामक प्रसिद्ध स्थान है। स्कंद पुराण के दशम अध्याय में स्पष्ट वर्णित है कि कलियुग में भगवान श्रीविष्णु का अवतार श्रीकल्कि के रुप में सम्भल ग्राम में होगा। 'अग्नि पुराण' के सौलहवें अध्याय में कल्कि अवतार का चित्रण तीर-कमान धारण किए हुए एक घुड़सवार के रूप में किया हैं और वे भविष्य में होंगे। कल्कि पुराण के अनुसार वह हाथ में चमचमाती हुई तलवार लिए सफेद घोड़े पर सवार होकर, युद्ध और विजय के लिए निकलेगा तथा म्लेच्छों को पराजित करके सनातन राज्य स्थापित करेगा।
इसके विपरीत कुछ अन्य पुराण और बौद्धकाल के कवियों की कविता और गद्य में ऐसा उल्लेख व गुणगान मिलता है कि कल्कि अवतार हो चुका है। 'वायु पुराण' (अध्याय 98) के अनुसार कल्कि अवतार कलयुग के चर्मोत्कर्ष पर जन्म ले चुका है। इसमें विष्णु की प्रशंसा करते हुए दत्तात्रेय, व्यास, कल्की विष्णु के अवतार कहे गए हैं, किन्तु बुद्ध का उल्लेख नहीं हुआ है। इसका मतलब यह कि उस काल में या तो बुद्ध को अवतारी होने की मान्यता नहीं मिलती थी या फिर बुद्ध के पूर्व कल्कि अवतार हुआ होगा।
मत्स्य पुराण के द्वापर और कलियुग के वर्णन में कल्कि के होने का वर्णन भी मिलता है। बंगाली कवि जयदेव (1200 ई.) और चंडीदास के अनुसार भी कल्कि अवतार की घटना हो चुकी है अतः कल्कि एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व हो सकते हैं। जैन पुराणों में एक कल्कि नामक भारतीय सम्राट का वर्णन मिलता है। जैन विद्वान गुणभद्र नौवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में लिखते हैं कि कल्किराज का जन्म महावीर के निर्वाण के 1 हजार वर्ष बाद हुआ। जिनसेन उत्तर पुराण में लिखते हैं कि कल्किराज ने 40 वर्ष राज किया और 70 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई।
कल्किराज अजितान्जय का पिता था, वह बहुत हिंसक और क्रूर शासक था जिसने दुनिया का दमन किया। प्राचीन जैन ग्रंथों के अनुसार 'कल्कि' एक ऐतिहासिक सम्राट था जिसका शासनकाल महावीर की मृत्यु के 1 हजार साल बाद हुआ यानी कि महावीर स्वामी का जन्म यदि प्राचीन काल निर्धारण अनुसार मानें तो 1797 विक्रम संवत पूर्व अर्थात महावीर के एक हजार वर्ष बाद यानी 797 विक्रम संवत पूर्व कल्कि हुए थे अर्थात 739 ईसा पूर्व।
अब यदि हम अंग्रेजों द्वारा लिखे इतिहास का काल निर्धारण मानें तो महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसा पूर्व हुआ था। इसका मतलब महावीर के 1 हजार वर्ष बाद कल्कि हुए थे यानी कि तब भारत में गुप्त वंश का काल था। मौर्य और गुप्तकाल को भारत का स्वर्णकाल माना जाता है। गुप्तकाल के बाद ही भारत में बौद्ध और जैन धर्म का पतन होना शुरू हो गया था। आधे भारत पर राज्य करने वाले बौद्ध और जैनों का शासन आखिर हर्षवर्धन के काल तक समाप्त होकर शून्य क्यों हो गया?
तब क्या हम यह मानें कि गुप्त वंश के पतन के बाद ही कल्कि का अवतार हुआ जिसने शक, कुषाण आदि को ही नहीं मार भगाया बल्कि जिसने बौद्ध और जैनों के प्रभुत्व को भी समाप्त कर दिया?
यदि हम प्राचीन तारीख निर्धारण के अनुसार कल्कि का जन्म 739 ईसा पूर्व मानते हैं तो इसका मतलब कि जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ (877-8777 ईसा पूर्व) ईसा पूर्व के बाद कल्कि का जन्म हुआ होगा। पार्श्वनाथ के काल में जैन धर्म अपने चरमोत्कर्ष पर था। और, यदि गुप्त काल के बाद कल्कि का होना मानें तो गुप्तों के बाद हूणों ने भारत पर कब्जा कर लिया था। जैन ग्रंथों में वर्णित कल्कि का समय और कार्य हूण सम्राट मिहिरकुल के साथ समानता रखता है अतः कल्किराज ओर मिहिरकुल (502-542 ई.) के एक होने की संभावना को कई लोग इनकार नहीं करते हैं।
इतिहासकार केबी पाठक ने सम्राट मिहिरकुल हूण की पहचान कल्कि के रूप में की है। वे कहते हैं कि मिहिरकुल का दूसरा नाम कल्किराज था। जैन ग्रंथों ने कल्किराज के उत्तराधिकारी का नाम अजितान्जय बताया है। मिहिरकुल हूण के उत्तराधिकारी का नाम भी अजितान्जय था। कुछ विद्वानों के अनुसार मिहिरकुल को कल्कि मानना इसलिए ठीक नहीं होगा, क्योंकि हूण तो विदेशी आक्रांता थे।
निष्कर्ष : अंतत: यह कहना अभी भी सही नहीं होगा कि कल्कि अवतार हो चुका है या नहीं हुआ है? यह कहना भी उचित नहीं होगा की कलयुग का अंत हो चुका है या होने वाला है। यह सभी कुछ अभी शोध का विषय है। पाठक इस लेख में दी गई जानकारी को शोध की दृष्टि से देखें यह लेख किसी भी प्रकार की पुष्टि नहीं करता है।
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- अनिरुद्ध जोशी
संदर्भ :
भारतीय ज्योतिष (लेखक : नेमीचंद्र शास्त्री प्रकाशन : ज्ञानपीठ प्रकाशन)
अखंड ज्योति
श्रीमद्भागवत पुराण
महाभारत, आदि अन्य ग्रंथों से।