Gold jadi buti : सोना बनाने वाली जड़ी बूटी कौनसी है?
How to make gold : समाज में ऐसा प्रचलित है कि प्राचीन भारत के लोग स्वर्ण बनाने की विधि जानते थे। पहले हर व्यक्ति के शरीर पर सोना होता था। मंदिरों में शीखर सोने के होते थे। मंदिरों में टनों सोना रखा रहता था। सोने के रथ बनाए जाते थे और प्राचीन राजा-महाराजा स्वर्ण आभूषणों से लदे रहते थे। प्राचीन भारत में बगैर किसी 'खनन' के बावजूद भारत के पास अपार मात्रा में सोना कहां से आया? सैंकड़ों लुटेरे सोना लूट का ले गए फिर भी भारत में अथान स्वर्ण भंडार है।
क्या प्राचीन भारतीय लोग सोना बनाने की विधि जानते थे?
प्रभुदेवा, व्यलाचार्य, इन्द्रद्युम्न, रत्नघोष, नागार्जुन के बारे में कहा जाता है कि ये पारद से सोना बनाने की विधि जानते थे। कहा जाता है कि नागार्जुन द्वारा लिखित बहुत ही चर्चित ग्रंथ 'रस रत्नाकर' में एक जगह पर रोचक वर्णन है जिसमें शालिवाहन और वट यक्षिणी के बीच हुए संवाद से पता चलता है कि उस काल में सोना बनाया जाता था।
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संवाद इस प्रकार है कि शालिवाहन यक्षिणी से कहता है- 'हे देवी, मैंने ये स्वर्ण और रत्न तुझ पर निछावर किए, अब मुझे आदेश दो।' शालिवाहन की बात सुनकर यक्षिणी कहती है- 'मैं तुझसे प्रसन्न हूं। मैं तुझे वे विधियां बताऊंगी जिनको मांडव्य ने सिद्ध किया है। मैं तुम्हें ऐसे-ऐसे योग बताऊंगी जिनसे सिद्ध किए हुए पारे से तांबा और सीसा जैसी धातुएं सोने में बदल जाती हैं।'
एक किस्से के बारे में भी खूब चर्चा की जाती है कि विक्रमादित्य के राज्य में रहने वाले 'व्याडि' नामक एक व्यक्ति ने सोना बनाने की विधा जानने के लिए अपनी सारी जिंदगी बर्बाद कर दी थी। ऐसा ही एक किस्सा तारबीज और हेमबीज का भी है। कहा जाता है कि ये वे पदार्थ हैं जिनसे कीमियागर लोग सामान्य पदार्थों से चांदी और सोने का निर्माण कर लिया करते थे। इस विद्या को 'हेमवती विद्या' के नाम से भी जाना जाता है।
सोना बनाने की जड़ी बूटी : हेमवती और रुद्रवंति नामक जड़ी बूटी को तांबे में खरल करने के बाद कई प्रक्रियाओं के माध्यम से तांबे और पीतल को स्वर्ण में बदलने की विधि प्राचीन शास्त्रों में बताई गई है।
सोना बनाने के आधुनिक उदाहरण:
वर्तमान युग में कहा जाता है कि पंजाब के कृष्णपालजी शर्मा को पारद से सोना बनाने की विधि याद थी। इसका उल्लेख 6 नवंबर सन् 1983 के 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' में मिलता है। पत्रिका के अनुसार सन् 1942 में पंजाब के कृष्णपाल शर्मा ने ऋषिकेश में पारे के द्वारा लगभग 100 तोला सोना बनाकर रख दिया था।
कहते हैं कि उस समय वहां पर महात्मा गांधी, उनके सचिव महादेव भाई देसाई और युगल किशोर बिड़ला आदि उपस्थित थे। इस घटना का वर्णन बिड़ला मंदिर में लगे शिलालेख से भी मिलता है। हालांकि इस बात में कितनी सच्चाई है, यह हम नहीं जानते।