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Written By WD Feature Desk
Last Modified: शुक्रवार, 17 मई 2024 (11:23 IST)

Ramayan seeta maa : इन 3 लोगों ने झूठ बोला तो झेलना पड़ा मां सीता का श्राप

ram seeta sita
Mata sita ne kisko shrap diya tha: वाल्मिकी रामायण में माता सीता द्वारा गया में दशहरथ जी के पिंडदान को लेकर एक किस्सा मिलता है। गया में ऐसे 5 लोग थे जिन्होंने झूठ बोला जिसके कारण  उन्हें माता सीता का शाप झेलना पड़ा। इस श्राप के कारण आज भी ये लोग भुगत रहे हैं। इसलिए यह जाना जरूरी है कि साक्षी के वक्त झूठ बोलने से पाप लगता है। इस संबंध में पढ़ें रामायण की कथा।
 
एक बार वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे। वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए। 
 
उधर दोपहर हो गई थी। पिंडदान का कुतप समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी। तभी दशरथजी की आत्मा ने माता सीता के समक्ष पिंडदान की मांगकर दी। गया जी के आगे फल्गू नदी पर अकेली सीता जी असमंजस में पड़ गई। उन्होंने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया।
 
थोडी देर में भगवान राम और लक्ष्मण लौटे तो माता सीता ने कहा कि देरी के कारण समय निकलता जा रहा था इसलिए उचित समय पर मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया। 
 
यह सुनकर श्रीराम ने कहा कि बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है, इसका प्रमाण दो।
 
तब सीता जी ने कहा कि यह फल्गू नदी की रेत, केतकी के फूल, गाय और वटवृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं। लेकिन फल्गू नदी, गाय और केतकी के फूल तीनों इस बात से मुकर गए। सिर्फ वटवृक्ष ने सही बात कही। तब सीता जी ने दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की।
 
दशरथ जी ने सीता जी की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की कि ऐन वक्त पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया। इस पर राम आश्वस्त हुए लेकिन तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीता जी ने उनको क्रोधित होकर श्राप दिया कि फल्गू नदी- जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी, तुझमें पानी नहीं रहेगा। इस कारण फल्गू नदी आज भी गया में सूखी रहती है।
 
गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी। और केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढ़ाया जाएगा। 
 
वटवृक्ष को सीता जी का आशीर्वाद मिला कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री तेरा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी। यही कारण है कि गाय को आज भी जूठा खाना पडता है, केतकी के फूल को पूजा पाठ में वर्जित रखा गया है और फल्गू नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है।
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