इंदौर। राफेल घोटाले को लेकर नरेन्द्र मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने बुधवार को कहा कि विपक्ष के लगातार मांग करने के बावजूद लड़ाकू विमानों के इस सौदे की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति गठित नहीं किए जाने से इस मामले में गड़बड़ियों का संदेह पैदा होता है।
मध्यप्रदेश में 28 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर दौरे पर आए सिंह ने यहां कहा कि राफेल घोटाले को लेकर जनता के मन में बहुत शक-शुबहा है। तमाम विपक्षी दल मोदी सरकार से लगातार मांग कर रहे हैं कि संयुक्त संसदीय समिति गठित कर इस मामले की जांच कराई जाए, लेकिन सरकार इसके लिए अब भी तैयार नहीं है जिससे पता चलता है कि दाल में कुछ काला है।
मोदी सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के बीच पिछले दिनों सामने आए कथित टकराव के बारे में पूछे जाने पर केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर ने कहा कि आरबीआई और वित्त मंत्रालय का रिश्ता काफी नाजुक होता है। दोनों के बीच सामंजस्य और सौहार्द देश के लिए जरूरी है। इस देश को चलाने की बड़ी जिम्मेदारी सरकार की है लेकिन आरबीआई गवर्नर और उनके सहयोगियों को भी आरबीआई अधिनियम के तहत विशिष्ट तौर पर कानूनी जिम्मेदारियां मिली हुई हैं। दोनों इकाइयों को एक-दूसरे पर निर्भरता का महत्व समझकर समरसता से काम करना चाहिए।
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं खुश हूं कि सरकार और आरबीआई के आपसी रिश्ते को लेकर सामने आए कई संदेहों के बाद दोनों पक्षों के बीच सामंजस्य बैठाने के प्रयास किए जा रहे हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि दोनों इकाइयां देश के हित में मिलकर काम करेंगी।
आरबीआई के आरक्षित कोष को लेकर उठे मसले को बेहद तकनीकी और जटिल बताते हुए उन्होंने कहा कि यह कोष समय-समय पर घटता-बढ़ता रहता है। इसका किस तरह उपयोग किया जाए, यह फैसला देश की अर्थव्यवस्था के सामने उपस्थित जोखिमों को देखते हुए विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर किया जाना चाहिए। मनमोहन ने हालांकि उम्मीद जताई कि आरक्षित कोष के मसले में सरकार और आरबीआई के बीच अंतत: सहमति बन जाएगी।
उन्होंने एक सवाल पर मोदी पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि मेरा पूरे सम्मान से मत है कि मोदी प्रधानमंत्री पद का ठीक इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। प्रधानमंत्री को कतई शोभा नहीं देता कि वह खासकर गैरभाजपा शासित प्रदेशों में आयोजित सार्वजनिक कार्यक्रमों में विपक्षी नेताओं के लिए गाली-गलौज वाली भाषा का इस्तेमाल करें। देश में लोकतंत्र और कानून के राज को खतरे में बताते हुए पूर्व प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार के राज में बड़े राष्ट्रीय संस्थानों पर कब्जा करने की कोशिश की जा रही है।
नोटबंदी और कथित तौर पर त्रुटिपूर्ण माल एवं सेवाकर (जीएसटी) को लेकर मोदी सरकार को घेरते हुए मनमोहन ने कहा कि इन विनाशकारी फैसलों से खासकर असंगठित क्षेत्र और छोटे उद्योग-धंधों को काफी नुकसान हुआ तथा मोदी सरकार नोटबंदी को सही साबित करने के लिए हर रोज झूठी कहानी गढ़ने में व्यस्त है लेकिन हकीकत यह है कि विमुद्रीकरण का कोई भी उद्देश्य पूरा नहीं हुआ। न तो 3 लाख करोड़ रुपए का कालाधन पकड़ा जा सका जिसका कि दावा मोदी सरकार ने 10 नवंबर 2016 को शीर्ष न्यायालय के सामने किया था, न ही जाली नोटों पर लगाम लग सकी। नोटबंदी के जरिए आतंकवाद और नक्सलवाद को रोकने के दावे भी खोखले साबित हुए।
प्रधानमंत्री पर हमले जारी रखते हुए मनमोहन ने कहा कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी ने विदेशी बैंकों में जमा कालाधन वापस लाने का वादा किया था, जो आखिरकार खोखला साबित हुआ। इसी तरह हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने का उनका चुनावी वादा भी एक जुमला बनकर रह गया। मोदी सरकार का 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम भी जुमला साबित हुआ।
उन्होंने एक सवाल पर कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मामले में शीर्ष न्यायालय का जो भी फैसला आए, उसे सबको स्वीकार करना चाहिए। मोदी सरकार पर अन्नदाताओं से वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि कर्ज के भारी बोझ और फसलों के उचित दाम नहीं मिल पाने के कारण देशभर में किसानों की खुदकुशी के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
उन्होंने भाजपा के इस आरोप को खारिज किया कि उनकी पूर्ववर्ती सरकार सोनिया गांधी और राहुल गांधी जैसे कांग्रेस नेताओं के रिमोट कंट्रोल से चलती थी तथा मेरी सरकार किसी के रिमोट कंट्रोल से नहीं चलती थी। जब मैं प्रधानमंत्री था, तब सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी (कांग्रेस) में मतभेद नहीं थे।
मशहूर अर्थशास्त्री ने सुझाया कि देश की आर्थिक हालत सुधारने के लिए सरकार की ओर से बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाया जाए। इसके साथ ही देश में बचत योजनाओं को बढ़ावा दिया जाए। (भाषा)