• Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. प्रादेशिक
  4. Chhath Pooja, Rabdi Devi
Written By
Last Updated : बुधवार, 25 अक्टूबर 2017 (23:28 IST)

'छठ पर्व' पर बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की रसोई

'छठ पर्व' पर बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की रसोई - Chhath Pooja,  Rabdi Devi
पटना। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की धर्मपत्नी व बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी आज भी रसोई में नजर आती हैं। छठ पूजा का बिहार में अपना अलग महत्व है और इसी के मद्देनजर राबड़ी ने भी अपने पैरों को महावर से सजाया।
 
राबड़ी देवी के बेटे तेजस्वी यादव ने बुधवार को सोशल मीडिया पर अपनी मां की तस्वीर शेयर की है, जिसमें राबड़ी देवी रसोई में अपने घरेलू लड़की के चूल्हे पर रोटियां सेंक रहीं हैं। पूरे यादव परिवार में आज भी राबड़ी का 'ठसका' है और रसोई में वे अपने हाथों से लालू ही नहीं बल्कि अन्य बेटों के लिए भी रोटियां सेंकती हैं।
 
पूरे यादव परिवार को इस बात का नाज है कि राबड़ी के सिर पर भले ही पूर्व मुख्यमंत्री का ताज सजा हुआ है लेकिन घर में वे एक पत्नी, एक अच्छी मां साबित हो रही हैं। 
 
सनद रहे कि पूर्वी भारत में प्रत्येक वर्ष छठ का भव्य आयोजन होता है। शुरुआती समय में छठ अधिकाधिक रूप से सिर्फ बिहार तक सीमित था, पर समय के साथ मुख्यत: लोगों के भौगोलिक परिवर्तनों के कारण इस पर्व का प्रसार बिहार से सटे प्रदेशों में भी हुआ और होता चला गया।
 
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर यह पर्व कार्तिक शुक्ल सप्तमी को भोर का अर्घ्य देने के साथ समाप्त होता है। इस 4 दिवसीय पर्व का आगाज ‘नहाय खाय’ नामक एक रस्म से होता है। इसके बाद खरना, फिर सांझ की अर्घ्य व अंतत: भोर की अर्घ्य के साथ इस पर्व का समापन होता है। 
 
यूं तो ये पर्व 4 दिवसीय होता है, पर मुख्यत: षष्ठी और सप्तमी की अर्घ्य का ही विशेष महत्व माना जाता है। व्रती व्यक्ति द्वारा पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को ये अर्घ्य दिए जाते हैं। 
 
इसी क्रम में उल्लेखनीय होगा कि संभवत: यह अपने आप में ऐसा पहला पर्व है जिसमें कि डूबते और उगते दोनों ही सूर्यों को अर्घ्य दिया जाता है, उनकी वंदना की जाती है। सांझ-सुबह की इन दोनों अर्घ्यों के पीछे हमारे समाज में एक आस्था काम करती है। वो आस्था यह है कि सूर्यदेव की 2 पत्नियां हैं- ऊषा और प्रत्युषा।
 
 
सूर्य के भोर की किरण ऊषा होती है और सांझ की प्रत्युषा, अत: सांझ-सुबह दोनों समय अर्घ्य देने का उद्देश्य सूर्य की इन दोनों पत्नियों की अर्चना-वंदना होता है। इसके गीत तो धुन, लय, बोल आदि सभी मायनों में एक अलग और अत्यंत मुग्धकारी वैशिष्ट्य लिए हुए होते हैं।