14th Day Roza : ईमान का निशान और इंसानियत की पहचान है 14वां रोजा
14th day of Ramadan : माशाअल्लाह! माहे-मुबारक रमजान का कारवां अब चौदहवें रोजे तक आ पहुंचा है। रोज़ादार के लिए वैसे तो हर रोजा खुशियों का खजाना है। मगफिरत के इस अशरे में चौदहवां रोजा जन्नत के दरवाजे पर सब्र की दस्तक है। अमूमन 'मझला रोज़ा' भी शुमार किया जाता है।
इसकी अपनी फजीलत (महिमा) और अजमत (गरिमा) है। शरई (तरीके से रखा गया रोजा) जिसमें हर किसी की बुराई, बदगुमानी, बेईमानी, बेहयाई, बेअदबी से बचा जाता है) ईमान का निशान और इंसानियत की पहचान है। चौदहवें रोजे तक आते-आते रोज़ादार सब्र का आदी हो जाता है। इसलिए रोजा रोजादार के लिए जन्नत का फरियादी हो जाता है। हदीस की रोशनी में भी रोजा जन्नत के दरवाजे पर सब्र की दस्तक है।
मिसाल के तौर पर हदीसे-पाक यानी बुख़ारी शरीफ़ की जिल्द अव्वल (प्रथम खंड) के सफ़ह् नंबर दो सौ पैंतालिस (पृष्ठ संख्या-245) पर यह हदीस दर्ज हैं- 'मोहम्मद सल्ल. ने फरमाया कि जन्नत के आठ दरवाजे हैं, उनमें एक दरवाज़ा 'रय्यान' है, उसमें इससे वे ही जाएँगे जो रोजा रखते हैं।'
इसमें मसअला ये है कि जो ईमान की वजह से रोज़ा रखेगा सवाब (पुण्य) के लिए तो उसके सब गुनाह माफ़ कर दिए जाएँगे। जिसने बग़ैर किसी शरई मजबूरी के एक रोज़ा छोड़ दिया तो जमाने भर का रोजा उसकी क़ज़ा (क्षतिपूर्ति) नहीं हो सकता, अगरचे बाद में रख ले।
यहां यह समझना जरूरी है कि चौदहवें रोजे की आमद (आगमन) दरअसल मग़फ़िरत (मोक्ष) के अशरे (कालखंड) में है और मगफिरत के लिए कसरत से (बहुलता से) तौबा-ए-अस्तग़फ़ार (गुनाहों के लिए प्रायश्चित) की जाती है। रोजा (सही तरीके से) रखना अल्लाह (ईश्वर) के सामने सबूत रखता है। रोजा, परहेजगारी का एहतिमाम तो है ही जन्नत का इंतजाम भी है। प्रस्तुति : अजहर हाशमी