मंगलवार, 26 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. अन्य त्योहार
  4. Vat Savitri Vrat 2019
Written By

आज से वट व्रत प्रांरभ : 3 दिनों तक चलेगा व्रत-उपवास का सिलसिला, जानें वट सावित्री व्रत का महत्व

आज से वट व्रत प्रांरभ : 3 दिनों तक चलेगा व्रत-उपवास का सिलसिला, जानें वट सावित्री व्रत का महत्व। Vat Savitri Vrat - Vat Savitri Vrat 2019
शनिवार, 1 जून 2019 से वट व्रत प्रारंभ हो रहा है। ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक 3 दिनों तक महिलाएं व्रत-उपवास रखकर वटवृक्ष का पूजन करती हैं।
 
ज्येष्ठ मास के व्रतों में वट अमावस्या का व्रत बहुत प्रभावी माना जाता है जिसमें सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु एवं सभी प्रकार की सुख-समृद्धियों की कामना करती हैं।
 
इस दिन स्त्रियां व्रत रखकर वटवृक्ष के पास पहुंचकर धूप-दीप व नैवेद्य से पूजा करती हैं तथा रोली और अक्षत चढ़ाकर वटवृक्ष पर कलावा बांधती हैं, साथ ही हाथ जोड़कर वृक्ष की परिक्रमा लेती हैं जिससे पति के जीवन में आने वाली अदृश्य बाधाएं दूर होती हैं तथा सुख-समृद्धि के साथ लंबी उम्र प्राप्त होती है।
 
कहा जाता है कि वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति व्रत के प्रभाव से मृत पड़े सत्यवान को पुन: जीवित किया था तभी से इस व्रत को 'वट सावित्री' नाम से ही जाना जाता है। इसमें वटवृक्ष की श्रद्धा-भक्ति के साथ पूजा की जाती है। महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य एवं कल्याण के लिए यह व्रत करती हैं। सौभाग्यवती महिलाएं श्रद्धा के साथ ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक 3 दिनों तक उपवास रखती हैं।
 
त्रयोदशी के दिन वटवृक्ष के पास पहुंचकर अपने अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु तथा सुख-समृद्धि के लिए संकल्प करना चाहिए। इस प्रकार संकल्प कर यदि 3 दिन उपवास करने की शक्ति न हो तो अमावस्या को उपवास कर प्रतिपदा को पारण करना चाहिए।
 
अमावस्या को एक बांस की टोकरी में सप्तधान्य के ऊपर ब्रह्मा और सावित्री तथा दूसरी टोकरी में सत्यवान एवं सावित्री की प्रतिमा स्थापित कर वट के समीप यथाविधि पूजन करना चाहिए, साथ ही यम का भी पूजन करना चाहिए। पूजन के अनंतर स्त्रियां वट की पूजा करती हैं तथा उसके मूल को जल से सींचती हैं।
 
वट की परिक्रमा करते समय 108 बार या यथाशक्ति कलावा लपेटा जाता है। 'नमो वैवस्वताय' इस मंत्र से वटवृक्ष की प्रदक्षिणा करनी चाहिए। 'अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते। पुत्रान्‌ पौतांश्च सौख्यं च गृहाणार्ध्यं नमोऽस्तुते।' इस मंत्र से सावित्री को अर्घ्य देना चाहिए।
 
इस दिन चने पर रुपया रखकर बायने के रूप में अपनी सास को देकर आशीर्वाद लिया जाता है। सौभाग्य पिटारी और पूजा सामग्री किसी योग्य साधक को दी जाती है। सिन्दूर, दर्पण, मौली, काजल, मेहंदी, चूड़ी, माथे की बिंदी, हिंगुल, साड़ी, स्वर्णाभूषण इत्यादि वस्तुएं एक बांस की टोकरी में रखकर दी जाती हैं। यही सौभाग्य पिटारी के नाम से जानी जाती है।
 
कुछ महिलाएं केवल अमावस्या को एक दिन का ही व्रत रखती हैं। इस व्रत में सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण किया जाता है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है।

-आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी
ये भी पढ़ें
श्रीराम का हिरण को मारना, क्या प्रभु श्रीराम मांस का सेवन करते थे?