वैशाख मास को क्यों कहते हैं माधव मास, जल दान से मिलेगा यह पुण्य
हिन्दू कैलेंडर का दूसरा माह वैशाख माह है। विशाखा नक्षत्र के नाम पर इसका नाम वैशाख रखा गया है। 6 अप्रैल से प्रारंभ हुआ वैशाख माह 5 मई 2023 शुक्रवार तक चलेगा। 5 मई को वैशाख पूर्णिमा है। इस माह को माधव मास भी कहत हैं। पुराणों में इस माह की महिमा का वर्णन मिलता है। आओ जानते हैं इस माह में जल दान का महत्व।
वैशाख माह के खास दिवस : इस महीने गंगा उपासना, वरुथिनी एकादशी, मोहिनी एकादशी, अक्षय तृतीया, वैशाख पूर्णिमा जैसे महत्वपूर्ण त्योहार और व्रत आदि मनाए जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी माह से त्रेतायुग का आरंभ हुआ था। इसी वजह से इसका धर्मिक महत्व बढ़ जाता है। वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती है, इसलिए शनि देव तिल, तेल और पुष्प आदि चढ़ाकर पूजन करनी चाहिए।
माधव मास क्यों कहते हैं-
इस माह को माधव नाम से भी जाना जाता है। माधव विष्णु का एक नाम है। इस माह में विष्णु भगवान की पूजा का खासा महत्व है। वैशाख मास में भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दौरान भगवान विष्णु की तुलसीपत्र से माधव रूप की पूजा की जाती है। स्कन्द पुराण के वैष्णव खण्ड अनुसार..
न माधवसमो मासो न कृतेन युगं समम्।
न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम्।।
अर्थात्: माधवमास, यानि वैशाख मास के समान कोई मास नहीं है, सतयुग के समान कोई युग नहीं है, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।
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इस माह के दौरान आपको- 'ॐ माधवाय नमः' - मंत्र का नित्य ही कम से कम 11 बार जप करना चाहिए।
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भगवान विष्णु के केशव, हरि, गोविंद, त्रिविकरम, पद्मानाभ, मधुसूदन, अच्युत और हृषिकेष नाम का भी ध्यान करें।
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विष्णुजी को पंचामृत का भोग लगाएं और उस पंचामृत में तुलसी पत्र डालना न भूलें।
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साथ ही उन्हें सफेद या पीले फूल अर्पित करने चाहिए।
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इससे आपके करियर में, नौकरी में, व्यापार में तरक्की होगी।
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इससे जीवन में कभी कोई संकट नहीं आएगा और दांपत्य जीवन भी सुखमय व्यतीत होगा।
जल का दान का महत्व:
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इस दिन नदी, जलाशय या कुंड आदि में स्नान करें।
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सूर्य देव को अर्घ्य देकर बहते हुए जल में तिल प्रवाहित करें।
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इसी के साथ प्याऊ लगाएं या लोगों को जल पिलाएं।
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इस माह में शिव मंदिर में पानी से भरी मटकी दान करना चाहिए।
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इस महीने में पशु-पक्षियों को भी जल पिलाने की व्यवस्था करें। जिसका विशेष पुण्य फल मिलता है
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वैशाखमास में सिर्फ जल का दान करने से सब तीर्थों के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है।
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जो व्यक्ति प्यासों को शीतल जल पिलाता है, उसे दस हजार राजसूय यज्ञों का फल प्राप्त होता है।
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जो प्याऊ लगाता है, वह विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है।
शास्त्रों के अनुसार इस माह में प्याऊ लगाना, छायादार वृक्ष की रक्षा करना, पशु-पक्षियों के खान-पान की व्यवस्था करना, राहगीरों को जल पिलाना जैसे पुण्य कार्य मनुष्य के जीवन को समृद्धि के रास्ते पर ले जाते हैं।