श्रीराधाष्टमी का व्रत, देता है अपार संपदा का वर
राधा-अष्टमी व्रत नहीं करेंगे तो जन्माष्टमी का फल भी नहीं मिलेगा
श्रीकृष्ण के बिना राधा या राधा के बिना श्रीकृष्ण की कल्पना संभव नहीं है। श्रीराधा जी की पूजा के बिना श्रीकृष्ण जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को श्री राधाजी का प्राकट्य दिवस माना जाता है। यह दिवस श्रीराधाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि जो राधा अष्टमी का व्रत नहीं रखता, उसे जन्माष्टमी व्रत का फल भी प्राप्त नहीं होता।
बरसाना को श्रीराधाजी की जन्मस्थली माना जाता है। पद्मपुराण में श्रीराधाजी को राजा वृषभानु की पुत्री बताया गया है। जब राजा वृषभानु यज्ञ के लिए भूमि साफ कर रहे थे तब भूमि कन्या के रूप में उन्हें राधाजी प्राप्त हुईं थी। श्रीराधाष्टमी पर श्रीराधा-कृष्ण की संयुक्त रूप से पूजा करना चाहिए।
श्रद्धा से यह व्रत रखने पर श्री राधाजी के भक्त के घर से कभी लक्ष्मी विमुख नहीं होती हैं। राधा अष्टमी के दिन ही महालक्ष्मी व्रत का आरंभ होता है। जो पूरे वर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी का व्रत रखता है, उसे जीवन में कभी धन संपदा की कमी नहीं होती। श्रीराधा जी के पूजन के लिए मध्याह्न का समय उपयुक्त माना गया है।