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चैत्र मास संकष्टी चतुर्थी 24 मार्च को, इन पूजन सामग्रियों के साथ करें विकट नामक गणेश को प्रसन्न

चैत्र मास संकष्टी चतुर्थी 24 मार्च को, इन पूजन सामग्रियों के साथ करें विकट नामक गणेश को प्रसन्न - chaitra ganesh chaturthi pujan vidhi
प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि को गणेश जी का पूजन किया जाता है। शुक्ल-पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहलाती है।

चैत्र मास की संकष्टी चतुर्थी 24 मार्च 2019 (रविवार) को है। यह व्रत करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी काम बिना किसी विघ्न बाधा के पूरे हो जाते हैं। भक्तों को गणेश जी की कृपा से सारे सुख प्राप्त होते हैं।
 
चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्थी के दिन ‘विकट’ नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। यह व्रत संकटनाशक है। इस दिन शुद्ध घी के साथ बिजौरे नींबू का हवन करने से बांझ स्त्रियां भी पुत्रवती होती हैं।
 
चैत्र मास संकष्टी चतुर्थी पूजन सामग्री
 
गणेश जी की प्रतिमा
धूप
दीप
नैवेद्य(लड्डु तथा अन्य ऋतुफल)
अक्षत 
फूल
कलश
चंदन केसरिया
रोली 
कपूर 
दुर्वा
पंचमेवा 
गंगाजल 
वस्त्र( 2 एक कलश के लिए- एक गणेश जी के लिए) 
अक्षत
घी
पान 
सुपारी
लौंग
इलायची
गुड़
पंचामृत (कच्चा दूध,दही,शहद,शर्करा,घी)
 
हवन के लिए : 
बिजौरा नींबू
घी
 
चैत्र मास संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि 
 
सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत हो, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। 
 
श्री गणेश जी का पूजन पंचोपचार (धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत, फूल) विधि से करें। 
 
इसके बाद हाथ में जल तथा दूर्वा लेकर मन-ही-मन श्री गणेश का ध्यान करते हुये निम्न मंत्र के द्वारा व्रत का संकल्प करें:- 
मम सर्वकर्मसिद्धये विकटाय पूजनमहं करिष्ये"
 
कलश में दूर्वा, सिक्के, साबुत हल्दी रखें तथा जल भरकर उसमें थोड़ा गंगा जल मिलाएं। 
 
कलश को लाल कपड़े से बांध दें। कलश पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। श्री गणेशजी के मंत्रों का पूरे दिन स्मरण करें। शाम को पुन: स्नान कर शुद्ध हो जाएं। 
 
श्री गणेश जी के सामने बैठ जाएं। विधि-विधान से गणेश जी का पूजन करें। वस्त्र अर्पित करें। 
 
नैवेद्य के रूप में लड्डु अर्पित करें। चंद्रमा के उदय होने पर चंद्रमा की पूजा कर अर्घ्य अर्पण करें। 
 
उसके बाद गणेश चतुर्थी की कथा सुने अथवा सुनाएं। घी तथा बिजौरा नींबू से हवन करें। तत्पश्चात् गणेश जी की आरती करें। उपस्थित लोगों में लड्डु प्रसाद के रूप में बांट दें और शेष अगले दिन ब्राह्मण को दान में दें। भोजन के रूप में केवल पंचगव्य का ही पान करना चाहिए।