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Written By Author अनिल जैन
Last Updated : बुधवार, 9 अक्टूबर 2019 (20:39 IST)

सरकारी दावे के बिल्कुल उलट हैं कश्मीर घाटी के हालात

सरकारी दावे के बिल्कुल उलट हैं कश्मीर घाटी के हालात - current situation in kashmir
'न्यू इंडिया’ में तरह-तरह की आशंकाओं, दुश्वारियों, गमों, उदासियों और तनाव से घिरे 'न्यू कश्मीर’ को लेकर केंद्र सरकार और सूबे के राज्यपाल का दावा है, 'वहां स्कूल-कॉलेज फिर से शुरू हो चुके हैं। सरकारी दफ्तर, बैंक और अस्पताल भी खुल रहे हैं। रेहडी-पटरी पर दुकानें लग रही हैं। सडकों पर वाहनों की आवाजाही सामान्य रूप से जारी है और लोग भी अपने घरों से निकल रहे हैं। कुल मिलाकर कश्मीर घाटी के हालात पूरी तरह सामान्य है।’ 
 
यह दावा सच है, लेकिन अधूरा। पूरा सच है यह है कि डिजिटल इंडिया में इस 'नए कश्मीर’ के बाशिंदे पिछले करीब दो महीने से बगैर इंटरनेट और मोबाइल फोन के पंगु बने हुए हैं। स्कूल-कॉलेज तो खुल रहे हैं लेकिन खुलने वाले सभी स्कूल-कॉलेज चूंकि सरकारी हैं, लिहाजा वहां पढ़ाने वाले शिक्षकों का तो अपनी ड्यूटी पर आना लाजिमी है, सो वे तो आ रहे हैं। लेकिन वहां पढने वाले बच्चों का कोई अता-पता नहीं है।

इसलिए शिक्षक आते हैं और अपनी हाजिरी लगाकर तथा वहां कुछ समय बिताकर लौट जाते हैं। सरकारी दफ्तरों और बैंकों का भी यही हाल है। वहां भी काम करने वाले तो अपनी नौकरी बजाने आते हैं, लेकिन वहां काम करवाने वाले आम लोगों की आमद नहीं के बराबर है।
 
रेहडी-पटरी पर रेडिमेड कपडों और छोटे-मोटे इलेक्ट्रॉनिक सामान की दुकानें भी लग रही हैं, लेकिन स्थिति सामान्य बताने के लिए ऐसे ज्यादातर दुकानदारों को दुकानें लगाने के लिए स्थानीय प्रशासन की ओर से 1000 से लेकर 1500 रुपए रोजाना दिए जाते हैं। सरकार की इस दयानतदारी का लाभ उन लोगों को नहीं मिल रहा है, जो ठेले पर फल, बिरयानी, मोमोज, ब्रेड-आमलेट, चाय आदि की दुकानें लगाकर अपना परिवार पालते हैं।
सरकारी अस्पताल जरूर सामान्य रूप से खुल रहे हैं। वहां डॉक्टर भी आ रहे हैं और मरीज भी, लेकिन आवश्यक दवाइयों खासकर गंभीर बीमारियों से संबंधित जीवनरक्षक दवाइयों की आपूर्ति पर्याप्त रूप से नहीं हो पा रही है। शहर में दवाइयों की दुकानें भी पूरे समय खुली रहती हैं लेकिन उनके यहां भी जीवनरक्षक दवाओं का अभाव बना हुआ है।
  
सरकारी दावों के मुताबिक सडकों पर वाहनों की आवाजाही भी जारी है और लोग भी घरों से निकल रहे हैं लेकिन यह सब आमतौर सुबह-सुबह ढाई-तीन घंटे यानी दस बजे तक ही होता है। बाकी दिन भर सड़कों पर ज्यादातर वाहन या तो सरकारी महकमों के होते हैं या फिर स्थानीय पुलिस और सुरक्षाबलों के। सार्वजनिक परिवहन के साधन पूरी तरह बंद हैं और निजी वाहनों की आवाजाही नाममात्र की रहती है। 
 
कश्मीर घाटी में देशी-विदेशी पर्यटकों की आमद पूरी तरह बंद है, लिहाजा श्रीनगर की तमाम होटलें वीरान पड़ी हैं। डल झील पूरी तरह उदास है और उसमें चलने वाले शिकारे किनारे पर खूंटे से बंधे खड़े हैं। झील में खड़ी तमाम हाउस बोट्स भी पूरी तरह खाली पड़ी हैं।

झील के किनारे वाली सड़क जो सामान्य दिनों में शाम के वक्त सैलानियों और स्थानीय लोगों की रेलमपेल से गुलजार रहती है और जिस पर सिर्फ पैदल ही चला जा सकता है, वह इन दिनों पूरी तरह खाली रहती है। वहां अब शाम के वक्त वे ही कुछ लोग हवाखोरी के लिए आते हैं, जो दिन भर घरों में बैठे-बैठे ऊब जाते हैं। सड़कों पर इक्का-दुक्का वाहनों की आवाजाही भी होती रहती है।
कुल मिलाकर श्रीनगर तथा घाटी के अन्य इलाकों में सुबह ढाई-तीन घंटे की चहल-पहल के बाद पूरे दिन सन्नाटा पसरा रहता है। कुछ बेहद संवेदनशील इलाकों में तो हर क्षण गुस्साए नौजवानों और सुरक्षा बलों के बीच टकराव की आशंका बनी रहती है। कुछ इलाकों में टकराव की स्थिति बनती भी है- एक तरफ से पत्थर चलते हैं तो दूसरी ओर से पैलेट गन।
 
रात 8 बजते-बजते तो पूरे शहर में अघोषित कर्फ्यू लग जाता है। शहर के हर इलाके में सिर्फ और सिर्फ अर्धसैनिक बलों के जवान तथा पेट्रोलिंग करते पुलिस तथा सुरक्षा बलों के वाहन ही सड़कों पर दिखाई देते हैं। सुबह के वक्त जो उदास और लड़खड़ाती चहल-पहल रहती है, उसे ही सरकार की ओर से सामान्य स्थिति के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। ढिंढोरची टीवी चैनल भी मजबूरी की इसी चहल-पहल को या सामान्य दिनों के पुराने वीडियो फुटैज को दिखाकर ही कश्मीर घाटी में सब कुछ सामान्य होने का ढोल पीट रहे हैं। (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)