मौजूदा दौर में भी कुपोषण एक बड़ी वैश्विक समस्या है। 'ग्लोबल पैनल आन एग्रीकल्चर एंड फ़ूड सिस्टम्स न्यूट्रीशन' की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लगभग 3 अरब लोग पोषण आहार से वंचित हैं। इसी तरह स्टेट ऑफ फंड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में करीब 76.8 करोड़ लोग कुपोषण की चुनौती का सामना कर रहे हैं। भारत में यह संख्या लगभग 22.4 करोड़ है। क्लाइमेट चेंज, बढ़ते कॉर्बन उत्सर्जन, पानी की कमी और अन्य वजहों से पोषण का यह संकट और बढ़ेगा।
बुंदेलखंड सबसे संकटग्रस्त इलाका : गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रह चुके दिनेश कुमार सिंह के अनुसार पानी की कमी से जिन 8 प्रमुख देशों के फसल उत्पादन में गिरावट दर्ज होगी उनमें भारत पहले नंबर पर है। प्रोफेसर सिंह के अनुसार उत्पादन में यह कमी इस प्रकार होगी, भारत 28.8, मैक्सिको 25.7, ऑस्ट्रेलिया 15.6, संयुक्त राज्य अमेरिका 8, अर्जेंटीना 2.2, सोवियत रूस 6.2, दक्षिण पूर्व के देश 18 फीसद। भारत में इसकी मुख्य वजह कम बारिश होगी। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड पानी के लिहाज से सबसे संकट ग्रस्त इलाका है। यहां 76 वर्षों में औसत बारिश में करीब 320 मिलीमीटर की कमी आई है।
2023 का साल हो सकता है सबसे गर्म : वैश्विक परिदृश्य पर देखें तो क्लाइमेट चेंज का मौसम पर असर साफ-साफ दिखने लगा है। ग्रीनहाउस गैसों का बेतहाशा उत्सर्जन इसकी मुख्य वजहों में से एक है। इसी के चलते 2000 वर्षों की समयावधि में हाल के कुछ दशकों में तापमान तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2022 में फ्रांस, स्पेन, बिटेन सहित कई यूरोपीय देशों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर चला गया। हजारों लोग लू की चपेट में आने से मरे। ब्रिटेन के मौसम विभाग के अनुसार 2023 में धरती के औसत तापमान में 1.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी। यह दुनिया का अब तक का सबसे गर्म साल हो सकता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक अगर ग्लोबल वार्मिंग के नाते दुनिया का तापमान 3 से 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो 36 से 45 फीसद आबादी प्रभावित होगी। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के मुताबिक 1950 से 1911 की तुलना में पिछले 30 वर्षों में मौसम जनित कारणों से खेतीबाड़ी के क्षेत्र की तबाही में 41 फीसद का इजाफा हुआ है। कुछ राज्यों में तो यह 50 फीसद तक है। मसलन हर दो साल में एक बार खेतीबाड़ी पर मौसम की मार पड़ती है।
स्वाभाविक है कि तापमान बढ़ने का सबसे अधिक असर फसलों ख़ासकर नमी एवं तापमान के प्रति संवेदनशील धान एवं गेहूं पर पड़ेगा। अगर हम इनका समय से विकल्प नहीं खोज सके तो पोषण सुरक्षा तो दूर भविष्य में पूरी दुनिया को खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ सकता है।
इन सारे सवालों का जवाब हैं मिलेट्स (मोटे अनाज)। कम पानी, खराब जमीन, रोगों एवं तापमान के प्रति प्रतिरोधी, बिना किसी खास उपाय के अधिक समय तक भंडारण योग्य बाजरा, ज्वार, कोदो, सावां इस संकट का एक हद तक समाधान बन सकते हैं। इन फसलों के तैयार होने की अवधि 70 से 100 दिन होती है, जबकि धान एवं गेहूं की फसल को तैयार होने में 100 से 150 दिन लगते हैं। समय के इस अंतराल में किसान मौसम के अनुसार अतरिक्त फसल लेकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
इंटरनेशनल मिलेट ईयर की मंशा भी यही है। यह आयोजन सामयिक भी है। भारत के लिए तो और भी। कोरोना के बाद लोगों की सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ी हैं। रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए लोग पोषण के प्रति जागरूक हुए हैं। खासकर सर्वाधिक संख्या वाला मध्यम वर्ग। ऐसे में इंटरनेशनल मिलेट ईयर के जरिए पोषण से भरपूर इन अनाजों और इनके प्रसंस्करण से बने उत्पादों लोकप्रियता बढ़ेगी। मांग बढ़ने से इनके दाम बेहतर मिलेंगे। नतीजन किसान अधिक उपज के लिए इनका रकबा भी बढ़ाएंगे।
शुरू हुआ मोटे अनाजों को लोकप्रिय बनाने का सिलसिला : मोटे कहे जाने इन अनाजों को लोकप्रिय बनाने का सिलसिला शुरू भी हो चुका है। पिछले दिनों केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के दिल्ली स्थित आवास पर आयोजित दोपहर भोज में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत अन्य गणमान्य लोगों की मौजूदगी इसी की कड़ी है।
दरअसल इंटरनेशनल मिलेट वर्ष को सफल बनाने में भारत की जवाबदेही बाकी देशों से अधिक है। क्योंकि भारत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर भारत 2018 में नेशनल मिलेट ईयर मना चुका है। भारत में मोटे अनाजों की परंपरा एवं उनकी खूबियों के मद्देनजर उनकी ही पहल पर ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस आयोजन की घोषणा की है। ऐसे में इसकी सफलता को लेकर भारत की भूमिका भी बढ़ जाती है। केंद्र सरकार की ओर से तैयारियां भी उसी अनुसार है।
योगी सरकार भी तैयार : हर महत्वपूर्ण मुद्दे पर बड़ी लकीर खींचने वाली योगी सरकार भी इसके लिए तैयार है। वैसे भी देश की सबसे उर्वर भूमि (इंडो गंगेटिक बेल्ट), 9 तरह की वैविध्य पूर्ण कृषि जलवायु (एग्रो क्लाईमेट जोन), भरपूर बारिश, गंगा, यमुना, सरयू जैसी सदानीरा नदियां, सबसे बड़ी आबादी के नाते प्रचुर मानव संसाधन एवं बड़ा बाजार होने की वजह से खेतीबाड़ी से जुड़े किसी भी कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है। ऊपर से खेतीबाड़ी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की निजी दिलचस्पी सोने पर सुहागा का काम करती है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala