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रेल बजट : मोदी के कार्यकाल में हुई हैं रेलवे के कायाकल्प की कोशिशें

रेल बजट : मोदी के कार्यकाल में हुई हैं रेलवे के कायाकल्प की कोशिशें - rail budget 2019
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में रेलवे के कायाकल्प की कोशिशें लगातार चल रही हैं। पिछले साढ़े चार साल में सरकार ने ऐसे कई कदम उठाए हैं, जिससे भारतीय रेलवे की स्थिति बहुत बेहतर हुई है। मोदी सरकार की हमेशा से प्राथमिकता रही है कि रेल का सफर सुहाना होने के साथ-साथ पूरी तरह सुरक्षित भी हो। अंतरिम बजट आने में ज्यादा वक़्त नहीं है, सबकी निगाहें रेल मंत्री पीयूष गोयल की तरफ है की इस बार आम बजट में उन्होंने क्या कुछ प्रावधान किए हैं जिससे रेल यात्रा विश्वस्तरीय हो सकें, हालांकि ये तीसरी बार है जब रेल बजट आम बजट से अलग प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है, क्योंकि इसको अब आम बजट में विलय कर दिया गया है।
 
रेल एवं आम बजट के विलय से, रेलवे बेहतर अवस्था में आ गया है, क्योंकि रेलों में यात्री से ज्यादा पहले राजनीति सफर किया करती थी और विकास को पता नहीं कब का चलती ट्रेन से धकेल दिया गया था। गठबंधन सरकारों के दौर में रेलवे सिर्फ राजनीति साधने का माध्यम भर रही जिसके कारण रेलवे का ढांचा चरमरता चला गया। यात्री सुविधाओं के नाम पर गिनाने भर को कुछ ट्रेन थी मगर जितना काम पिछले 70 वर्षों में किया जाना चाहिए था उतना नहीं हो सका। लोकलुभावनवाद के कारण सैंकड़ों परियोजनाएं जिनके लिए शिलान्यास रखा जा चुका था, केवल कागज़ों पर धरी रह गईं एवं संसाधनों के अभाव में अधिक प्रगति नहीं की जा सकी।

 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने शुरुआती कदम में ही लोकलुभावनवाद से बचने का निर्णय लिया ताकि दुनिया में सबसे बड़े रेल निकायों में से एक भारतीय रेल को बचाकर रास्ते पर लाया जा सके। भारत के इतिहास में पहली बार भारतीय रेल के वैभव को पुनर्स्थापित करने एवं संभवतः सबसे आधुनिक रेलवे में से एक रेलवे बनाने का ईमानदार प्रयास किया गया, जिससे संपूर्ण देश में बुलेट ट्रेनों एवं ध्वनि की गति से तेज़ चलने वाली हाइपर लूप ट्रेनों समेत सुरक्षित, आरामदायक एवं तीव्र यात्री ट्रेनें हों तथा नया एवं बेहतर माल-ढुलाई गलियारा हो।

 
अगर हम पिछले कुछ समय में रेलवे द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों पर नज़र दौड़ाए तो कई बड़ी योजनाओं पर काम हुआ है। आज भारत में सेमी हाई स्पीड स्व-चालित ट्रेन 18 के स्वदेशी विनिर्माण द्वारा 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा दिया गया, साथ ही ये समकालीन सुविधाओं के साथ वैश्विक मानकों के अनुरूप भी हैं, वहीं जल्द से जल्द माल पहुंचे इसके लिए समर्पित मालवाहक कॉरिडोर जैसी रणनीतिक परियोजनाएं चालू करके क्षमता बढ़ोतरी करने की व्यापक पहल हुई है। वहीं उत्तर-पूर्व की लेकर ये सरकार संवेदनशील रही है खास तौर से रेल और सड़क कनेक्टिविटी को लेकर।

 
भारत के सबसे लंबे रेल-रोड ब्रिज के माध्यम से असम और अरुणाचल प्रदेश का जुड़ाव अन्य भागों से किया, सेवन सिस्टर राज्य आज रेल नेटवर्क के माध्यम से पूरी तरह से जुड़े हुए हैं। वहीं जान-माल की हानी रोकना रेलवे की प्राथमिकताओं में शुमार है, इसके लिए मानवरहित लेवल क्रॉसिंग का उन्मूलन, प्रौद्योगिकी का उपयोग, रोलिंग स्टॉक की ऑनलाइन निगरानी और रेलवे यात्रियों की सुरक्षा के लिए कोचों को एलएचबी कोचों में बदलने सहित कई जमीनी प्रयास हुए हैं। चालू वर्ष के दौरान अब तक 3478 मानवरहित लेवल क्रॉसिंग फाटकों को समाप्त कर दिया गया है।

 
मानवरहित रेलवे क्रोसिंग्स पर होने वाली दुर्घटनाएं अतीत का हिस्सा हो जाएगी, क्योंकि भारतीय रेलवे के ब्रॉड गेज पर सभी मानवरहित लेवल क्रॉसिंग को समाप्त कर दिया गया है, रेलवे द्वारा किए गए अथक प्रयासों के कारण, पिछले वर्ष की इस अवधि की तुलना में 2017-18 के दौरान रेल दुर्घटनाएं 104 से घटकर 73 रह गई है। वर्ष 2018-19 ट्रेन दुर्घटनाओं में पिछले वर्ष की इस अवधि की तुलना में 51 से लेकर 44 तक की कमी आई। वहीं अगर पटरियों के नवीनीकरण की बात करें तो 2017-18 में अबतक का सर्वाधिक 4405 किमी का रेल नवीनीकरण किया गया है और वर्तमान वर्ष के दौरान 11,450 करोड़ के परिव्यय के साथ 5,000 किमी रेल नवीनीकरण की योजना बनाई गई है। चालू वर्ष के दौरान अब तक 2812 किलोमीटर का काम पूरा हो चुका है। ट्रैक मशीनों के लिए अब तक की सबसे अधिक मंजूरी: 2014-18 के दौरान पूर्ण मशीनीकरण के लिए प्रति वर्ष मशीनों की औसत मंजूरी लगभग 1547 करोड़ रुपए की लागत से 117 हो गई है, जबकि 2014 में यह लगभग 560 करोड़ रुपए की लागत 63 थी। सरकार ने ट्रेन के इलेक्ट्रिक इंजनों में यूरोपियन ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम लगाकर उसे पहले से कहीं अधिक सुरक्षित बनाने का निर्णय लिया है।

 
वहीं यात्री सुविधाओं के मद्देनजर विकसित कोचों और ट्रेनों के माध्यम से शीघ्र और आरामदायक यात्री सेवाएं, यूटीएस मोबाइल ऐप, विकल्प योजना और ऑनलाइन टिकट आरक्षण के लिए डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने पर काफी काम हुआ है। आज भारतीय रेलवे की उत्पादन इकाइयों में अत्याधुनिक 4.0 रोबोटिक्स और उद्योग प्रौद्योगिकियों का उपयोग हो रहा है वहीं गति बढ़ाने के लिए 'मिशन रफ़्तार' पर काफी तेज़ी से काम चल रहा है। सभी रेलवे स्टेशनों पर 100 प्रतिशत एलईडी रोशनी का उपयोग करके रेलवे ने नया कीर्तिमान रचा है।

 
रेलवे द्वारा मेक इन इंडिया पॉलिसी के अंतर्गत, अब स्थानीय सामग्री के उपयोग को न्यूनतम 51 प्रतिशत से बढ़ाकर 80 प्रतिशत किया जा रहा है। मेक इन इंडिया से प्रोत्साहित होकर, ट्रैक मशीनों का उत्पादन करनेवाली दुनिया की एक प्रमुख कंपनी द्वारा गुजरात में एक विनिर्माण संयंत्र की स्थापना की जा रही है और जिसमें मई 2019 तक उत्पादन के शुरू होने की उम्मीद है। वहीं कर्मचारियों की कमी की स्थिति को ठीक करने के लिए भारतीय रेलवे भर्ती की प्रक्रिया को आसान और तेज बनाने के विकल्पों पर काम कर रहा है।

रेलवे में जल्द ही 2 लाख 32 हज़ार नई नौकरियां निकलने वाली है जैसा कि रेलमंत्री ने हाल ही में ऐलान किया है और भर्ती की प्रक्रिया अगले ढाई महीनों में पूरी होनी है फ़िलहाल रेलवे में 1 लाख 32 हज़ार पद खाली हैं और अगले दो साल में 1 लाख रेलकर्मी रिटायर हो जाएंगे। वहीं इस बात का भी ध्यान रखा जा रह है कि भविष्य में योग्य प्रोफेशनल्स का चुनाव किया जा सके, इसके लिए पिछले वर्ष भारत की पहली रेल और परिवहन विश्वविद्यालय के प्रथम सत्र की शुरुआत भी की गई है, जो स्वागत योग्य कदम है। वहीं  स्टेशनों के सौंदर्यीकरण के लिए एक नई पहल की शुरुआत की है। स्थानीय कलाकारों, निजी समूहों और स्वयंसेवकों की भागीदारी के साथ पेंट, भित्तिचित्रों और स्थानीय दीवार कला के माध्यम से उन्हें खूबसूरत बनाया जा रहा है। अब तक 65 स्टेशनों को इस पहल के अंतर्गत सौंदर्यीकरण किया जा चुका है।
 
यकीननन तेजस, हमसफर, अंत्योदय गाड़ियों से रेलयात्रा सुखद हुई है और दीनदयालु कोच, विस्टाडोम कोचों से एक नए युग की शुरुआत हुई है जिसके मॉडल कोचों में सभी अत्याधुनिक सुख-सुविधाएं है जिसकी कल्पना कभी आप यूरोपीय ट्रेनों में ही कर सकते थे। आपकी यात्रा को और बेहतर बनाने को तत्पर रेलवे ने 9 आयामों को शामिल किया है जिसमें कोच की आंतरिक साज-सज्जा, शौचालय, ऑनबोर्ड सफाई, कर्मचारी व्यवहार, खानपान, लिनेन, समय की पाबंदी, सुरक्षा शामिल हैं और उन पर काम लगातार जारी है। निसंदेह आज भी कुछ रूट्स पर खासतौर पर त्योहारों पर भारी भीड़ चुनौती है और मानवीय रेल दुर्घटनाओं को कैसे शून्य पर लाया जाए इस पर काम जारी है।

उम्मीद है इस बजट में इस बात का ध्यान रखा जाएगा, साथ ही साथ लगातार विश्वस्तरीय हो रही सेवाएं आम आदमी की पहुंच के भीतर हो, हर आम और खास आदमी की ज़ेब को ध्यान में रखते हुए रेलवे को घाटे से बचाना भी अपने आपमें बड़ी चुनौती है। साथ ही आज बड़ी चुनौती इसे सड़क और हवाई मार्ग से भी मिल रही है। एक बड़ी प्रतियोगिता की स्थिति है रेलवे के सामने इससे निपटना भी आसान नहीं है क्योंकि आज भारत में सदकों का जाल है सुरशित आरामदायक सफर है, वहीं उड़ान जैसे हवाई स्कीमे आम आदमी की पहुंच के भीतर है। इन सबके बीच वो रेल को वरीयता क्यों दें, इसके लिए निरंतर रेल मंत्रालय को अपनी सेवाएं और बेहतर करनी होगी।
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