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पुलवामा मामला : जिम्मेदार कौन या जिम्मेदार मौन?

पुलवामा आत्मघाती हमला, जिम्मेदार कौन या जिम्मेदार मौन?। Pulwama Terror Attack - Pulwama Terror Attack
सरहद और संसद दोनों पर ही मानसिक हमला हुआ है। न केवल घाटी दहल गई बल्कि उसी के साथ भारत की वो पीढ़ी भी दहल रही है जिसके ख्वाबों में सरहद पर जाकर देश सेवा करना आता है। वो भी दहल गए जिनके दिल में राष्ट्र सर्वोपरि है। वो भी दहल गए, जो सेना से प्रेम करते हैं। वो अवाम भी दहल गई, जो घाटी में रहती है। वो भी दहल गए, जो देश के सुरक्षित होने का अभिमान करते हैं। वो भी दहल गए जिन्होंने 56 इंची सीने की दहाड़ सुनी थी। वे सब दहल गए जिन्होंने राष्ट्र नहीं बिकने दूंगा, राष्ट्र नहीं झुकने दूंगा सुना था। वे सभी दहल गए जिनके दिल में राष्ट्र है... और कयास यही कि जिम्मेदार कौन?
 
गुरुवार को श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवंतीपोरा के पास गोरीपोरा में एक स्थानीय आत्मघाती आदिल अहमद उर्फ वकास ने कार बम से सीआरपीएफ के एक काफिले में शामिल बस को उड़ा दिया। हमले में 40 जवान शहीद हो गए। 

हमले की जिम्मेदारी तो आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ले ली है। समाचार तो कह रहे हैं कि आत्मघाती आदिल अहमद उर्फ वकास-हमला जैश-ए-मोहम्मद द्वारा बनाए गए अफजल गुरु स्क्वॉड ने किया है। हमले से कुछ समय पहले का आदिल का वीडियो, जो अफजल गुरु स्कवॉड का है, मीडिया ने जारी किया है।

 
इसके बाद भी कहां गए वो जिम्मेदार जिनके कंधों पर देश की सुरक्षा का जिम्मा है। कहा गए वो अजीत डोभाल जो ये कहते कभी थकते नहीं थे कि देश सुरक्षित हाथों में है। देश के सुरक्षा जवानों के शीश नहीं कटने देंगे या उनके प्राणों की आहुति नहीं होने दी जाएगी। आखिरकार पुलवामा हमले ने बता दिया कि देश की अस्मत के साथ खेलने वाले यथावत जिंदा हैं। नोटबंदी के बाद उन आतताइयों के पास 'नकली नोट खत्म होने से कमजोर हो गए आतंकी' ये कहने वालों के मुंह पर करारा तमाचा है पुलवामा हमला।

 
कई सुहागनों का सिंदूर उजड़ गया, बहनों की राखी मौन हो गई। उसके बाद भी देश के प्रधान अपनी चुप्पी पर मुग्ध हैं। यहां घाटी ने ललकार खोई है और वह लुटियन दिल्ली केवल वैश्विक दबाव का इंतजार करती हुई। मौत पर तमाशे मना रही है।
 
देश में बजने वाले तानपुरे भी कवि हरिओम पंवार के वीर रस की रचना कहने लगे हैं-
 
'सेना को आदेश थमा दो/ घाटी गैर नहीं होगी।
जहां तिरंगा नहीं मिलेगा, उसकी खैर नहीं होगी।'
 
और आज तो जिम्मेदारों की शांति-वार्ताओं के चलते सेना ही असुरक्षित हो गई है। फिर काहे की राफेल खरीदी और काहे की हथियारों की खरीदी?
 
लुटियन दिल्ली की आदत में शुमार हो गया है जम्मू-कश्मीर मसले पर केवल शांति पैगाम भेजना, शांतिदूत बनकर जाना। देश में ज्यादा बवाल हो जाए तो यूएन में जाकर बच्चों की तरह केवल चुगली करके आ जाना, क्योंकि यहां कोई 56 इंची सीना है ही नहीं, जो दम-खम से आतंक के हर एक नापाक मसूबों पर पानी फेर सके। यहां तो हिन्दी की कहावत 'थोथा चना, बाजे घना' ही चरितार्थ है। केवल चुनावी बरसाती मेंढकों की तरह चुनाव आते हैं तो चिल्लाना शुरू कर देंगे, जुमलेबाजी का दौर आ जाएगा, देश को झूठे वादे, झूठी कसमें दी जाएंगी, पर अंततोगत्वा देश की सीमा और आंतरिक हालात असुरक्षित हैं। इसके जिम्मेदार कौन हैं, यह तो सवाल नहीं, क्योंकि जो जिम्मेदार हैं, वो मौन हैं।

 
पुलवामा हमले में धमाके की आवाज से पूरा इलाका दहल गया और आसमान में काले धुएं के गुब्बार के साथ सड़क पर लोगों को रोने-चिल्लाने की आवाजें आने लगी थीं। उन रुदन के बदले तुम तो इतना भी आदेश नहीं थमा पाए कि जम्मू और कश्मीर की तरफ निगाह उठाने वालों को दुनिया के नक्शे से उठा दो। आखिर किस मजबूरी के चलते अब तक केवल शांति के श्वेत कबूतर ही उड़ाए जा रहे हैं?
 
क्यों घाटी में छिपे बंकर नहीं उड़ा दिए जाते? सियासत को लहू पीने की आदत तो है, साथ-साथ मातम पर भी सियासत करके शांति का राब्ता कायम करने की भी आदत है। देश की सल्तनत को कठोर निर्णय लेकर राष्ट्र को सुरक्षित होने का एहसास दिलाना होगा, वरना ये राष्ट्र भी रणबांकुरे पैदा करता है। वो शांति नहीं सुरक्षा चाहते हैं, वार्ता नहीं परिणाम मांगते हैं। समय को समझकर राष्ट्र की अस्मत और सुरक्षा की व्यवस्था करना ही राजा का दायित्व है, न कि खोखली बातों से देश को बरगलाना। याद रहे, नायक तुम्हारी जबान में राष्ट्र की अखंडता और सुरक्षा महत्वपूर्ण होनी चाहिए।