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आई (बस) : फजीहत ही फजीहत

आई (बस) : फजीहत ही फजीहत - Indore bus
मप्र के इंदौर शहर में निजी लोक परिवहन वालों की मनमानी, दादागिरी आदि-इत्यादि (सब नहीं) के मद्देनजर इंदौर नगर निगम द्वारा सिटी बस और आई बसों का संचालन शुरू किया गया। इंदौर शहर के निरंजनपुर से लेकर राजीव गांधी चौराहे तक एबी रोड के मध्य बीआरटीएस पर चलने वाली इन आई बसों की खातिर निजी लोक परिवहन वालों को अन्यत्र रूट दे दिया गया। 
 
निरंजनपुर से राजीव गांधी प्रतिमा स्थल तक लगभग 50 बसें चल रही हैं। लेकिन यात्रियों के लिए इनमें सफर करना अब मुफीद नहीं हो रहा है। इन बसों में से अधिकांश में बारिश के दिनों में छतों से पानी टपकता रहता है, तो गर्मी में कई बसों के एसी बंद रहते हैं (ठेकेदारी में ऐसा ही होता है)। कई बार ये बसें रास्ते में ही बंद हो जाती हैं (ज्यादातर नहीं)। 
 
टिकट किराया और स्टॉप की परेशानी
 
इन आई बसों का किराया 5, 10, 15 रुपए से लेकर 20 रुपए तक है (आखिरी स्टॉप)। उतरना आपको कहीं भी हो, चाहे बीच के किसी स्टॉप पर उतरना हो। अगर गलती से आपने सीमा लांघ दी तो आपको दंड लगेगा। साधारण समझ से आप जिस स्टॉप से बैठते हैं उसके बाद 2 स्टॉप तक 5 रुपए, फिर 10, 15 और अंतिम 20 रुपए। निरंजनपुर से सत्यसांईं तक 5 रुपए लगेंगे और निरंजनपुर से विजयनगर चौराहे तक के 10 रुपए। अब विजयनगर उतरो या बीच में ही कहीं उतर जाओ। आपको विजयनगर उतरना है और आप पलासिया पहुंच गए तो भी आपको दंड लगेगा, क्योंकि आपने टिकट विजयनगर तक का लिया है।
 
निरंजनपुर से पलासिया का किराया 10 रुपए है इसलिए किराया तो पूरा लगेगा। हां, आपने एलआईजी से विजयनगर तक का टिकट लिया है और आप एमआर-9 पर ही उतर जाते हैं, तो कोई बात नहीं। वैसे तो इन बसों में यात्रियों की सुविधाओं के लिए स्टॉप आने की सूचना साउंड सिस्टम से की जाती है, मगर ये साउंड सूचना भी कभी-कभी बंद हो जाती है या उलटी टेप चालू हो जाती है। इसके अलावा अधिकांश टिकट चेकर भी स्टॉप की जानकारी नहीं देते। ऐसे में कोई बाहरी यात्री पहली बार आई बस में बैठे तो वह विजयनगर की जगह सत्यसांईं उतर जाए। विजयनगर चौराहे का स्टॉप रसोमा और विजयनगर की सीमा पर है। कई बार यात्री विजयनगर चौराहे की रोटरी पर स्टॉप होने की कल्पना में नहीं उतर पाते।
 
खुल्ले का संताप/ कम वापसी
 
आई बस खिड़की पर भीड़ है या नहीं भी है तो भी वापसी नकदी लेते समय गिन लें, क्योंकि टिकट देने वालों का गणित कमजोर होता है। 10 रुपए के टिकट पर 100 रुपए के कभी-कभी 80 रुपए पकड़ा देते हैं। अकसर मॉडर्न क्लास के लड़के-लड़की बिना नकदी गिने पर्स में रख लेते हैं।
 
भीड़/जेबकतरों से सावधान
 
आई बसें फायदे में चल रही हैं तभी तो ठेकेदार और आकागण चैन की बंसी बजा रहे हैं। आई बसों में भीड़ आम बात है। एक बस में कितनी सवारी का परमिट है, इससे किसी को कुछ लेना-देना नहीं। आरटीओ या संबंधित विभाग ने तो आज तक शायद चालान नहीं ठोंका। शायद इन विभागों को परमिशन नहीं है। विशेषकर संडे यानी रविवार को आई बस में सफर काफी दुष्कर है। प्राइवेट बस वालों को पीछे छोड़ दिया जाता है।
 
स्टॉप की सूचना देने वाले साउंड सिस्टम में स्टॉप की जानकारी देने के अलावा 'जेबकतरों से सावधान', 'बगैर टिकट यात्रा करना दंडनीय अपराध है' की जानकारी भी दी जाती है। जब इन आई बसों में कैमरे लगे हैं, तो फिर जेबकतरों से सावधानी कैसी? क्या कैमरे दिखावटी हैं? बस के गेट के पास भीड़ रहती है। टिकट चेकर चाहकर भी सवारी पीछे नहीं कर पाता। ऐसे में जेब कटना स्वाभाविक है। परमिट से ज्यादा सवारी भरना और सवारी को व्यवस्थित नहीं करना जेबकटाई को आमंत्रण देगा ही। सोचने की बात यह है कि बार-बार यात्रियों को सुविधाएं देने की पुंगी क्यों बजाई जाती है? और तुर्रा यह कि अपनी जेबें संभालकर रखें। क्या पता उतरते समय बस के गेट तक आपकी जेब खाली हो जाए।
 
बुजुर्गों की परेशानी
 
विदेशी शहरों और महानगरों की नकल कर इंदौर में बीआरटीएस तो तैयार कर दिया गया, मगर नकल में पूरी तरह अकल नहीं लगाई गई। आई बसों में सीनियर सिटीजंस के लिए कोई सीट आरक्षित नहीं रहती। बुजुर्गों को अकसर खड़े-खड़े सफर करना पड़ता है। अगर कोई आदमी 60 साल से ऊपर का ग्रामीण है, तो वह आरक्षित सीट पर बैठ ही नहीं सकता, क्योंकि उसके पास 'सरकारी सर्टिफिकेट' नहीं है। इसके अलावा बुजुर्गों के लिए केवल 2 ही सीटें आरक्षित रहती हैं, वो भी महिला सवारी से भर जाए तो अल्लाह-तौबा।
 
बीआरटीएस पर दौड़ रहीं सिटी और आई बसों में महिलाओं के लिए तो सीटें आरक्षित हैं, लेकिन इनमें बुजुर्गों की खासी फजीहत हो जाती है। आई बस में महिलाओं के लिए तो आधी बस की सीटें आरक्षित रहती हैं। ऐसे में अन्य बुजुर्गों को अन्य सवारियों के बीच धक्का-मुक्की के बीच खड़ा रहना पड़ता है।
 
संख्या में इजाफा, सुविधाएं नाकाफी
 
आई बसों में सफर करने वाले यात्रियों की संख्या में लगातार इजाफा तो हो रहा है, मगर सुविधाएं नाकाफी हैं। दरअसल, ये बसें परिवहन का सबसे बेहतर साधन होने से महिला, बुजुर्ग से लेकर युवा भी इन्हीं से सफर करना पसंद करते हैं। ऐसे में भीड़ बढ़ती है और बुजुर्गों को परेशानी होती है। नई आई बसों में विकलांग और बुजुर्गों के लिए 1-1 सीट आरक्षित होने की लिखित जानकारी तो है, मगर ये अक्सर भरी ही रहती हैं। कुछ पुरानी सिटी बसों को भी मॉडिफाइड कर बीआरटीएस पर दौड़ाया जा रहा है। मगर इनमें भी यही हाल है।
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