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राजनैतिक स्वार्थ साधने के चक्कर में राष्ट्रद्रोह क्यों?

राजनैतिक स्वार्थ साधने के चक्कर में राष्ट्रद्रोह क्यों? - independent india
हमारा राष्ट्र चीन की कुटिलताओं के विरुध्द सामरिक-राजनैतिक- आर्थिक-कूटनीतिक मोर्चों पर प्रखरता के साथ सशक्त तौर पर उठ खड़ा हुआ है। अब प्रत्येक परिस्थिति में चीन हो या कि कोई भी विदेशी राज्य जो भारत के विरुद्ध तिरछी नजर डालेगा, उसे हम मात देने में हिचकिचाएंगे नहीं।

विश्व व्यापार संधि‍ के इतर प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भरता एवं स्वदेशी के लिए राष्ट्र के नागरिकों से अपेक्षा की है। अप्रत्यक्ष तौर पर चीन के आर्थिक बहिष्‍कार का सन्देशा पूरे विश्व को दिया है।

आत्मनिर्भरता व स्वदेशी ही वह कुंजी है, जिसमें राष्ट्र का आर्थिक विकास एवं उन्नति संभव है। जिसके लिए राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी अहम भूमिका निभानी पड़ेगी।

लेकिन राजनैतिक विपक्षी दल व भारतीय संस्कृति की खिलाफत करने वाले कम्युनिस्ट "आत्मनिर्भरता-स्वदेशी" का मजाक उड़ाते हुए चुटकुलेबाजी कर रहे हैं।  ये सब वही लोग हैं जो कभी भी भारत को एक राष्ट्र के तौर पर देखना पसंद नहीं करते। विदेशी आयातित विचारधाराओं के गुलाम लोग विदेशी टुकड़ों को पाने के चक्कर में भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विरासत के विरुद्ध हमेशा कोई न कोई प्रोपेगैंडा रचते रहते हैं क्योंकि इनके ऐशोआराम के लिए तभी विदेशी टुकड़े प्राप्त होते हैं।

इन सभी की घ्रणित मानसिकता को देश का नागरिक अच्छी तरह से देख भी रहा है और समझ भी रहा है। इनकी कुत्सितता को हर बार चुनाव में जवाब देता आया है लेकिन ये सभी सुधरने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। इनकी मदान्धता इतनी बढ़ चुकी है कि ये स्वयं को  सर्वश्रेष्ठ मानने की सनक के चलते अपने एजेंडा को चलाने में मशगूल हो चुके हैं।

आखिर इन्हें आत्मनिर्भर भारत एवं स्वदेशी उपयोग से इतनी चिढ़ क्यों है? समूचे विश्व में वही राष्ट्र सुखी-सम्पन्न है जो इन बिन्दुओं पर प्रतिबध्द है। यदि हम एक राष्ट्र के तौर पर आर्थिक-सामरिक-कूटनीतिक तौर पर आत्मनिर्भर हो जाएंगे तो इससे बेहतर हमारे राष्ट्र के लिए क्या होगा। राजनैतिक दल/विचारधारा /जाति/धर्म/इत्यादि के इतर  जहां इस अभियान के लिए समूचे देश को एकीकृत होकर निष्ठा पूर्वक इस अभियान में अपनी भूमिका निभाने के जरूरत है तथा सम्पूर्ण विश्व को यह एहसास दिलाने की आवश्यकता है कि हम अनेकानेक असहमतियों के बावजूद भी जहां बात भारत राष्ट्र की अस्मिता की होगी  वहां हम सब एक हैं।

किन्तु चाहे विपक्ष हो या विपक्ष को एनर्जी बूस्टर प्रदान करने वाले बौध्दिक नक्सली यथा- पत्रकार, बुध्दिजीवी, अकादमिक संस्थाओं में बैठे स्याह काले चेहरे, सिनेमाई दलाल इत्यादि सरकार को नीचा दिखाने के चक्कर में राष्ट्र की अस्मिता के विरुद्ध अपने प्रोपेगैंडा चलाने में मदमस्त हो चुके हैं। यह सब करके यह क्या हासिल करेंगे? कितने बड़े दुर्भाग्य की बात है कि जहां चीन के विरुद्ध सरकार द्वारा उठाए जाने वाले प्रत्येक कदम के साथ एक स्वर में अपनी सहमति दर्ज करवानी चाहिए वहीं तथाकथित विपक्षी एवं यह वर्ग इस पर सरकार के पैर खींचने में जुटने लग जाता है। इन्हें आखिरकार कब समझ में आएगा कि यह मसला राजनैतिक प्रतिद्वंदिता एवं अपनी निजी दुश्मनी निकालने का नहीं है बल्कि यह तो राष्ट्र को सशक्त करने के लिए उठाया जाने वाला सशक्‍त कदम है।

इस दिशा में आपके पास जितने बेहतर सुझाव हों उन सभी को सरकार के साथ रखना ही चाहिए साथ ही प्रत्येक परिस्थिति में समर्थन के लिए साथ खड़े रहना चाहिए, लेकिन सभी सत्तापक्ष के विरोध में इतने निचले स्तर तक गिरते चले जा रहे हैं कि इन्हें- राजनैतिक विरोध और राष्ट्रद्रोह में कोई भी अंतर समझ में नहीं आ रहा है।

वे अपनी कुण्ठित मानसिकता और खोई हुई राजनैतिक जमीन को तलाशने के लिए इसे सुनहरा मौका मान रहे हैं। आश्चर्य होता है कि चाहे विपक्षी दल हों या सत्ता के साथ खटमल की तरह चिपके बौध्दिक नक्सली हों इन्हें सरकार के विरुद्ध हर हाल में नैरेटिव सेट करना है। भले ही इससे भारत के आत्मबल को ही क्यों न धक्का लगता हो लेकिन ये अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। इनके कुकृत्यों और वक्तव्यों से ऐसा लग रहा है मानों लद्दाख के घटनाक्रम को लेकर ये इतने उत्साहित बैठे हुए जैसे इन्हें सरकार के विरुद्ध कोई अमोघ अस्त्र व खुद को मुख्यधारा में लाने के लिए कोई संजीवनी बूटी मिल गई हो।

चाहे सोशल मीडिया हो या मीडिया में दिए जाने वाले इनके बयान हों, जब वे ‘आत्मनिर्भर एवं स्वदेशी’ अभियान का विरोध करते हुए अपना पक्ष रखते हैं तो क्या समूचा विश्व इनके कृत्यों को नहीं देखता है? इससे तो वे बड़े ही खुश होते होंगें कि जो काम और बात हमें करना चाहिए वह भारत का विपक्ष और बौध्दिक नक्सली वर्ग करने पर जुटा हुआ है। लेकिन इन्हें तो हर हाल में सरकार का विरोध करना है भले ही इससे राष्ट्र की एकता के विरुद्ध कोई सन्देश क्यों न जाए।

इनकी निकृष्टता पर ताज्जुब होता है कि ये चीन/पाक की भाषा बोलकर क्या हासिल कर पाएंगे? ध्यान रहे ये वही लोग हैं जो गला फाड़कर चीख रहे हैं कि भारत के लद्दाख की फला-फला घाटियों के इतने -उतने हिस्से पर चीन ने कब्जा कर लिया है। ये बता रहे हैं कि सेटेलाईट से तस्वीरे मिल रही हैं, लेकिन कोई इनसे पूछे कि इन्हें यह जानकारी कहां से मिल रही है? ये देश के प्रधानमंत्री की बातों का विश्वास नहीं करेंगे जबकि सरकार के प्रमुख के पास ही सम्पूर्ण जानकारियां होती हैं जो सेना उन्हें उपलब्ध करवाती है।

भई! ये लोग तो गजब का तमाशा कर रहे हैं, पता नहीं इन्हें कौन सी दिव्य दृष्टि मिल गई है कि अपने आलीशान बंगलों में जाम छलकाते हुए ये सीमा पर चीन के कब्जा करने की पुष्टि करते चले जा रहे हैं, अब इसे राष्ट्रद्रोह न कहा जाए तो क्या कहा जाए? कितना हास्यास्पद है न कि ये और इनके पुरखे सत्ता में रहने के दौरान चीन को अक्साई चिन खैरात सरीखे बांटते रहे तथा चीन इनके सत्तारूढ़ होने पर हमेशा अतिक्रमण पर उतारू रहा आया। लेकिन ये तो चीन और अन्य विदेशी राज्यों से चन्दा लेने पर जुटे हुए थे और अब जब सरकार व सेना चीन की ईंट से ईंट बजाने के लिए तत्पर है तब इनका हाय-तौबा और राष्ट्र के विरुद्ध एजेंडा चालू हो चुका है।

पता नहीं ये लोग कितने बेशर्म हो चुके हैं कि इन्हें शर्म भी नहीं आती। अपने स्वार्थ की रोटी सेंकने के चक्कर में कम से कम देश का विरोध तो न करें। लेकिन ये चीन के उसी एजेंडे को देश में प्रसारित करने पर जुटे हुए हैं जो चीन चाहता है क्योंकि ये लगातार सेना का मनोबल तोड़ने एवं सरकार के प्रति अविश्वास पैदा करने के लिए अपने-अपने तरीके से लगे हुए हैं जिससे हताशा का माहौल बने। इनके कारनामे कुछ ऐसे हैं जैसे ये विदेशी हों तथा भारत की हार ही में इनकी जीत हो लेकिन शायद ये भूल रहे हैं कि देश महाराणा वाली घास की रोटी खा लेने के लिए तत्पर है किन्तु किसी भी हाल में राष्ट्र की सरकार और सेना का साथ नहीं छोड़ेगा।

बस इसीलिए चौतरफा प्रत्येक मोर्चे पर चाहे वह  आत्मनिर्भरता की बात हो या कि स्वदेशी उत्पादों के उपयोग की बात हो सरकार अपने स्तर से तो लगी ही है वहीं अब राष्ट्र का नागरिक इसे मुहिम बना लेने के लिए दृढ़ संकल्पित हो चुका है क्योंकि प्रत्येक भारतीय अपने जवानों के बलिदान से उपजे आक्रोश को सहसा शांत नहीं होने देगा, लेकिन जिस प्रकार से राष्ट्रघाती कार्य विपक्षी दल, बौध्दिक नक्सली कर रहे हैं उसका जवाब देगी। इनके पास मुंह छिपाने के अलावा कुछ भी शेष नहीं बचेगा।

अब हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहने की जरूरत नहीं है बल्कि स्वयं को सशक्त-समर्थवान बनाकर प्रत्येक मोर्चे पर विश्व के सम्मुख दमखम के साथ मजबूती दिखलानी होगी। शुरुआत में कठिनाई होगी लेकिन हमारे साहस के चलते  जल्द ही सभी मोर्चों पर हम कीर्तिमान रचने में सफल होंगें। इसके अनेकानेक उदाहरण हमारे इतिहास में हैं चाहे परमाणु परीक्षण के समय विश्व द्वारा थोपे गए विभिन्न प्रतिबंध रहे हों हम कभी भी न झुके न रुके। राष्ट्र ने अपनी अभूतपूर्व क्षमता का सर्वदा परिचय दिया है तथा यह सिध्द किया है कि हमारी दृढ़ इच्छाशक्ति के समक्ष सबकुछ बौना सा है।

स्वदेशी अपनाने की दिशा में अब कदम आगे बढ़े हैं तो किसी भी हाल में पीछे नहीं हटेंगे इसके लिए राष्ट्र की प्रारंभिक इकाई गांवों से लेकर महानगरों तक सफर में विभिन्न उद्यम, भारतीय पारम्परिक लघु-कुटीर उद्योगों, विज्ञान, शिक्षा -तकनीकी, आयुष, सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक सहित समस्त क्षेत्रों में सर्जनात्मकता की ऐसी परिपाटी गढ़ने के लिए राष्ट्र धीरे-धीरे तैयार हो रहा है।

एक प्रकार से आत्मनिर्भर और स्वदेशी के मंत्र के साथ आर्थिक क्रांति की दिशा में अग्रसर होना होगा। इससे जहां रोजगार, जीवन प्रत्याशा, प्रति व्यक्ति आय, श्रेष्ठ सस्ते एवं सहज उपलब्ध उत्पादों की बढ़ोत्तरी होगी वहीं राष्ट्र का इन्फ्रास्ट्रक्चर आर्थिक तौर पर बेहद सशक्त बनकर उभरने में कामयाब होगा।

आत्मनिर्भरता और स्वदेशी से  हम विश्व को एक साफ सन्देश देने में कामयाब होंगे कि भारत की सम्प्रभुता, अस्मिता, अखंडता के साथ कभी भी किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जा सकता।

चाहे कोई भी देश हो जो सीमा पर हमारे जवानों का खून बहाएगा और उसके बावजूद भी यह सोचेगा  कि हम ठसक के साथ मुनाफा कमाएंगे तो यह कतई नहीं चलने वाला है। उसे सीमा पर तो ठिकाने लगाया ही जाएगा साथ ही आर्थिक तौर पर भी नेस्तनाबूद करने की दिशा में राष्ट्र आगे की राह बढ़ाएगा। इनको जितना हो हल्ला मचाना हो मचा लें किन्तु-परन्तु राष्ट्र अब आत्मनिर्भर एवं स्वदेशी उपयोग के मंत्र के साथ आगे बढ़ चुका है।

उन सभी की पीठ एवं कमर तोड़ने से कतराएंगे नहीं  जो भारत की ओर कुदृष्टि डालने का दुस्साहस कर रहे हैं।

राष्ट्र उन सभी को भी बेहद बारीकी से देख और परख रहा है जो कि अपनी निकृष्टता से बाज नहीं आ रहे हैं। समय आने पर इसका जवाब अच्छी तरह से देगा क्योंकि सीमा पर तैनात जवान जिस मिट्टी से जाते हैं उसकी राष्ट्रनिष्ठा/राष्ट्रभक्ति के सम्मुख महाकाय पर्वत एवं चट्टानें भी धराशायी हो जाते हैं तो इन प्रोपेगैंडा फैलाने वालों की क्या बिसात।

नोट: इस लेख में व्‍यक्‍त वि‍चार लेखक की नि‍जी अनुभूति‍ है, वेबदुनि‍या का इससे कोई संबंध या लेना-देना नहीं है।