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शकुनि की ये 3 चाल पड़ गई पांडवों पर भारी, वर्ना नहीं होता महाभारत का युद्ध

शकुनि की ये 3 चाल पड़ गई पांडवों पर भारी, वर्ना नहीं होता महाभारत का युद्ध - shakuni mama ki chaal
महाभारत की गाथा में कौरवों के मामाश्री शकुनि को अपनी कुटिल बुद्धि के लिए विख्‍यात माना जाता है। छल, कपट और दुष्कृत्यों में माहिर शकुनि ने युद्ध तक पांडवों के विनाश के लिए कई चालें चली। कहते हैं कि इन्हीं चालों के कारण पांडवों के जीवन में उथल पुथल रही और अंतत: युद्ध की नौबत आ गई।
 
 
1.पहली चाल- दुर्योधन और गांधारी का भाई शकुनि, कुंती के पुत्रों को मारने के लिए नई-नई योजनाएं बनाते थे। इसी योजना के तहत एक बार दुष्ट दुर्योधन ने भीम को जहर देने की योजना बनाई। सभी को गंगा के तट पर प्रणामकोटि स्थान में जलक्रीड़ा करने और उत्सव मनाने के लिए एकत्रित किया और दुर्योधन की योजना अनुसार भीमसेन के भोजन में विष मिला दिया गया। कहते हैं कि यह कालकूट विष था जिसका असर धीरे-धीरे होता है। निश्चेष्‍ठ भीम को दुर्योधन लता की रस्सियों से मुर्दे की तरह बांधकर गंगा के ऊंचे तट से जल में ढकेल देता है। अन्य पांडवों को इसका भान भी नहीं होता है।
 
 
भीम बेहोश अवस्था में ही गंगा के भीतर स्थित नागलोक जा पहुंचता है। वहां विषैले सांप भीमसेन को खूब डसते हैं। सर्पों के द्वारा डसने से दुर्योधन द्वारा दिए गए विष का प्रभाव कम हो जाता है। भीमसेन जाग्रत हो जाता है। तब वह सर्पों को पकड़ पकड़ कर मारने लगता है। यह देख बाकी के सर्प भाग जाते हैं। भागकर वे नागराज वासुकि के पास जाते हैं और उन्हें सारा वृत्तांत सुनाते हैं। ऐसे में वासुकि नाग स्वयं भीमसेन के पास जाते हैं। उनके साथ गए आर्यक नाम के एक नाग भीमसेन को देखकर पहचान लेते हैं। आर्यक नाग भीमसेन के नाना का नाना था। तब वासुकि पूछते हैं, 'हम इसको क्या भेंट दें। इसको बहुत सारे धन और रत्न दे दों।'... आर्यक कहते हैं कि नागेंद्र यह धन और रत्न लेकर क्या करेगा। यदि आप इस पर प्रसन्न हैं तो इस उन कुण्डों का रस पीने की आज्ञा दीजिए, जिनसे सहस्रों हाथियों का बल प्राप्त होता है।' इस प्रकार भीमसेन के शरीर में दस हजार हाथियों का बल प्राप्त हो जाता है।
 
 
2.दूसरी चाल- जब धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का युवराज घोषित किया। तब दुर्योधन और शकुनि के मन में आग लग गई। तब शकुनि ने पांचों पांडवों को मारने की योजना बनाई। उसने पांचों पांडवों को धृतराष्ट्र पर दबाव डालकर वारणावत भेज दिया जहां लाक्षागृह में आग लगाकर पांडवों को जिंदा जला कर मारने की योजना बनाई। लेकिन एन वक्त पर महात्मा विदुर ने पांडवों को गुप्त संदेश भिजवाया और शकुनि की चाल का खुलासा हुआ। तब पांचों पांडवों ने विदुर के एक विश्‍वासपात्र से सुरंग खुदवाई और उसी सुरंग के माध्यम से वे लाक्षागृह से बाहर निकलकर गंगापार जंगल में चले गए। इधर हस्तिनापुर में खबर फैला दी गई की पांडव लाक्षागृह की दुर्घटना में मारे गए हैं। लेकिन कुछ काल के बाद विदुरजी ही पांडवों को हस्तिनापुर लेकर आए और फिर उनको इंद्रप्रस्थ का राज्य दिया गया।
 
 
शकुनि की इस चाल से यह मकसद तो सिद्ध हो गया कि पांडवों को हस्तिनापुर का राज्य नहीं मिलेगा और दुर्योधन ही हस्तिनापुर का युवराज बनेगा। हुआ भी यही। शुनिक की इस चाल से पांडवों को राज्य से दूर जंगल में समय बिताना पड़ा। हालांकि वहां भीम ने जहां हिडिंबा से विवाह किया वहीं पांचों पांडवों ने द्रौपदी से विवाह भी किया।
 
 
3.तीसरी चाल- जब युधिष्ठिर को इंद्रप्रस्थ का राज्य मिला तो उन्होंने अपने राज्य के विस्तार के लिए राजसूय यज्ञ किया। इस यज्ञ के चलते उनके राज्य का विस्तार होता गया और उनकी शक्ति बढ़ती गई। इस बढ़ती शक्ति से चिंतित होकर ही शकुनि ने दुर्योधन के साथ मिलकर कपट की नई योजना बनाई। उसने चौसर अथवा द्यूतक्रीड़ा  (जूए के खेल का आयोजन करवाया)। लेकिन पांडव यह नहीं जानते थे कि शकुनि के पासे केवल उसी के इशारे पर चलते हैं। 
 
खेल की शुरुआत में पांडवों का उत्साह बढ़ाने के लिए शकुनि ने दुर्योधन को आरंभ में कुछ पारियों की जीत युधिष्ठिर के पक्ष में चले जाने को कहा जिससे कि पांडवों में खेल के प्रति उत्साह उत्पन्न हो सके। फिर धीरे-धीरे खेल के उत्साह में युधिष्ठिर अपनी सारी दौलत व साम्राज्य जुए में हार गए। अंत में शकुनि ने युधिष्ठिर को सब कुछ एक शर्त पर वापस लौटा देने का वादा किया कि यदि वे अपने बाकी पांडव भाइयों व अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगाएं। मजबूर होकर युधिष्ठिर ने शकुनि की बात मान ली और अंत में वे यह पारी भी हार गए। इस खेल में पांडवों व द्रौपदी का अपमान ही कुरुक्षेत्र के युद्ध का सबसे बड़ा कारण साबित हुआ।
 
 
फिर धृतराष्ट्र के द्रौपदी के वचन देने पर पांडवो को दासत्व से मुक्त किया गया। धृतराष्ट्र ने सभी को धन और धान्य देकर पुन: इंद्रप्रस्‍थ जाने की आज्ञा दी, लेकिन यह देखकर शकुनि, दुर्योधन और दुशासन भड़क उठे और उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा कि हम वनवास की शर्त पर पांडवों के साथ पुन: जुआ खेलेंगे।
 
युधिष्ठिर से शकुनि ने कहा कि आपको सभी धनराशि लौटा दी गई है। लेकिन अब हम एक दांव और लगाना चाहते हैं। यदि आप इस अंतिम दांव में हा जाएंगे तो आपको बारह वर्ष तक वनवास भोगना होगा और उस समय कोई पहचान ले तो आपको एक वर्ष और अज्ञात वास में रहना होगा। और इस वक्त भी कोई पहचान ले तो फिर से बारह वर्ष वन में ही रहना होगा। इस प्रकार तेरह वर्ष पूर्ण होने पर आप उचितरूप से अपना राज्य पुन: ले सकते हैं। यदि हम हार गए तो अभी ही ले सकते हैं। जुए का खेल शुरू हुआ और पांडव फिर हार गए। इस हार के बाद पांडवों को तेरह वर्ष वनवास में ही रहना पड़ा जिसके चलते उनका जीवन बदल गया।