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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : रविवार, 3 मई 2020 (23:10 IST)

भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी जाम्बवन्ती के 5 रहस्य

Jambavati story | भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी जाम्बवन्ती के 5 रहस्य
भगवान श्रीकृष्ण की आठ पत्नियां थीं। आठों की पत्नियों की कहानियां बड़ी ही रोचक है। सभी का अपना अपना व्यक्तित्व और महत्व रहा है। महाभारत और श्रीमद्भागवत में सभी की चर्चा विस्तार से मिलती है। आओ जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी जाम्बवंती के 5 रहस्य।
 
 
1.कौन हैं जाम्बवंती : जाम्बवंती रामायण काल के जाम्बवंत जी की बेटी हैं। जाम्बवंत जी को प्रभु श्रीराम ने चिरंजीवी होने का वरदान दिया था। इसलिए वे अभी तक जिंदा हैं। स्यमंतक मणि लेने श्रीकृष्ण जंगल में गए तो उन्हें पता चला की एक गुफा में रहने वाले जाम्बवंतजी के पास वह मणि है।

 
श्रीकृष्ण ने जाम्बवंतजी से कहा यह मणि मुझे दे दो क्योंकि यह सत्राजित की है। जामवंत ने कहा इसके लिए तुम्हें मुझसे युद्ध करना होगा। जामवंतजी तो महाशक्तिशाली थे। घमासान युद्ध हुआ। 28 दिन तक युद्ध हुआ और जाम्बवन हारने लगे तब उन्होंने थक हार कर श्रीकृष्ण को ध्यान से देखा और कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान गया आप ही मेरे राम हैं। आपकी एक तिरछी नजर से ही समुद्र के जीव जंतु और समुद्र विचलित हो गए थे और समुद्र ने आपको मार्ग दे दिया था। जामवंतजी को आश्चर्य हुआ और उनकी आंखों से आंसू बह निकले। उन्हें इस बात का पश्चाताप हुआ कि मैं अपने आराध्य से लड़ा। उन्होंने तब श्रीकृष्ण से कहा कि आपको मेरी बेटी से विवाह करना होगा। इस तरह जाम्बवंती श्रीकृष्ण की पत्नी बनीं।

 
2.जाम्बवन्ती का पुत्र साम्ब : श्रीकृष्ण अपनी सभी पत्नियों से समान रूप से प्रेम करते थे। रुक्मिणी श्रीकृष्ण की प्रधान पटरानी थी। उनका एक पुत्र प्रद्युम्न था जिसे वह खाना खिला रही थी। जाम्बवती भी वहीं निकट बैठी हुई थी। वह अभी निस्संतान थी। मातापुत्र का प्रेम देखकर उसका ह्रदय भी पुत्र के लिए मचल उठा। अतः वह श्रीकृष्ण के समक्ष मन की बात रखते हुए बोली, 'स्वामी,रुक्मिणी कितनी भाग्यशाली है, जिसे आपकी कृपा से प्रद्युम्न जैसे श्रेष्ठ पुत्र की माता बनने का गौरव प्राप्त हुआ। मेरा मन भी पुत्र प्रेम के लिए मचल रहा है। तब श्रीकृष्ण ने कहा, देवी, तुम्हारी यह इच्छा अवश्य पूर्ण होगी। इसके लिए मैं कठोर तप करूंगा। मेरे तप से उत्पन्न पुत्र तुम्हें असीमित सुख प्रदान करेगा।" 

 
यह कहकर श्री कृष्ण ने जाम्बवती को कुछ दिन प्रतीक्षा करने को कहा। द्वारका के निकट एक वन था। उस वन में परम शिव भक्त उपमन्यु मुनि रहते थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन शिव उपासना में व्यतीत कर दिया था। भगवान् शिव की उनपर अनन्य कृपा थी। श्रीकृष्ण उनके पास गए और बोले, "मुनिवर! भगवान् शिव और भगवती पार्वती भक्तों की संपूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले हैं। उनकी शरण में जाने वाला निराश नहीं लौटता। मैंने जाम्बवती को एक तेजस्वी पुत्र प्रदान करने का वचन दिया है। परन्तु इससे पूर्व मैं भगवान् शिव और भगवती पार्वती की उपासना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता हूं। मुनिवर, संसार में आपके समान शिव भक्त दूसरा कोई नहीं है। इसलिए अपना शिष्य बनाकर मुझे शिव मंत्र और स्तोत्र की दीक्षा दें। उपमन्यु मुनि ने श्री कृष्ण को शिष्य बनाया। कठोर तप के बाद अंततः भगवान् शिव प्रसन्न हुए और देवी पार्वती के साथ के साथ साक्षात् प्रकट होकर श्री कृष्ण से वर मांगने के लिए कहा। श्रीकृष्ण ने उनसे वरदान में एक पुत्र प्रदान करने की प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया की प्रत्येक रानी से उन्हें दस-दस पुत्र प्राप्त होंगे। तपस्या पूर्ण होने के बाद श्री कृष्ण द्वारका लौट आए। उनके तप के तेज से जाम्बवती ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, 'जो साम्बा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

 
3. साम्ब के कारण हुआ कुल का नाश : इस साम्ब के कारण ही कृष्ण कुल का नाश हो गया था। महाभारत अनुसार इस साम्ब का दिल दुर्योधन और भानुमती की पुत्री लक्ष्मणा पर आ गया था और वे दोनों प्रेम करने लगे थे। दुर्योधन अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के पुत्र से नहीं करना चाहता था। इसको लेकर दोनों पक्ष में युद्ध भी हुआ था।

 
4. जाम्बवती-कृष्ण के पुत्र-पुत्री के नाम : साम्ब, सुमित्र, पुरुजित, शतजित, सहस्त्रजित, विजय, चित्रकेतु, वसुमान, द्रविड़ और क्रतु।

 
5. जाम्बवन्ती का निधन : महाभारत के मौसुल पर्व के अनुसार भगवान कृष्ण के वंश के बचे हुए एकमात्र यदुवंशी और उनके प्रपौत्र (पोते का पुत्र) वज्र को इन्द्रप्रस्थ का राजा बनाने के बाद अर्जुन महर्षि वेदव्यास के आश्रम पहुंचते हैं। यहां आकर अर्जुन ने महर्षि वेदव्यास को बताया कि श्रीकृष्ण, बलराम सहित सारे यदुवंशी कैसे और किस तरह समाप्त हो चुके हैं। तब महर्षि ने कहा कि यह सब इसी प्रकार होना था इसलिए इसके लिए शोक नहीं करना चाहिए। अर्जुन यह भी बताते हैं कि किस प्रकार साधारण लुटेरे उनके सामने यदुवंश की स्त्रियों का हरण करके ले गए और वे कुछ भी न कर पाए। इसके बाद किस तरह श्रीकृष्ण की पत्नियों ने अग्नि में कूदकर जान दे दी और कुछ तपस्या करने वन चली गईं।